Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

महापुरुष को नमन

आज मैं इस बात पर गर्व महसूस करता हूं कि मैं उस परिवार का अंश हूं जिसके पूर्वजों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया, अंग्रेजों के शासन के दौरान ​जेलें काटीं और यातनाएं सही।

01:05 AM Sep 09, 2022 IST | Aditya Chopra

आज मैं इस बात पर गर्व महसूस करता हूं कि मैं उस परिवार का अंश हूं जिसके पूर्वजों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया, अंग्रेजों के शासन के दौरान ​जेलें काटीं और यातनाएं सही।

आज मैं इस बात पर गर्व महसूस करता हूं कि मैं उस परिवार का अंश हूं जिसके पूर्वजों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया, अंग्रेजों के शासन के दौरान ​जेलें काटीं और  यातनाएं सही। विडम्बना यह रही कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी उन्हें अपने ही देश में निष्ठुर सत्ता के कारण जेल जाना पड़ा। आतंकवाद का दृढ़ता से मुकाबला करते-करते उन्होंने अपनी शहादत दी थी। आज 9 सितम्बर के दिन मेरे पूज्य पड़दादा लाला जगत नारायण जी का शहादत दिवस है। मस्तिष्क कहता है जब हम किसी ऐसे व्यक्तित्व के बारे में लिखने का प्रयास करते हैं, लेखनी असहज हो जाती है, हृदय भावुक हो जाता है। मेरे पिता स्वर्गीय श्री अश्विनी कुमार  इस दिन भावुक हो जाते थे। एक पौत्र का दादा से स्नेह बहुत होता है। वे कहते थे ‘‘मैं जो कुछ भी हूं उसके पीछे मेरे पितामह लाला जगतनारायण जी का आशीर्वाद और उसके बाद पूज्य पिता रमेश चन्द्र जी का ही मार्गदर्शन है। अगर यह दोनों मेरे जीवन में नहीं होते तो शायद न तो मैं सम्पादक की कुर्सी पर होता और न ही सांसद होता।’’ 
Advertisement
मेरे दादा पूज्य रमेश चन्द्र जी ने भी देश की एकता और  अखंडता के लिए शहादत दी। मैं दादाश्री के स्नेह से वंचित रहा क्योंकि  तब मैं बहुत छोटा था। मेरे पिता अश्विनी जी मुझे कई बार बताते कि उन्होंने पड़दादा जी से पूछा था कि क्या आप खुद की जीवनी लिखेंगे। तब पड़दादा ने जवाब दिया था  ”सत्य पथ पर चलने से रास्ते में कांटे चुभते ही हैं, अत: वीर वही है जो न सन्मार्ग छोड़े और न ही कभी मोहासिक्त हो।’’ ”दूसरे तुम्हारा क्या मूल्यांकन करते हैं, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं, महत्वपूर्ण यह है कि तुम स्वयं को कितना महत्वपूर्ण मानते हो। मेरे पड़दादा  की नजर में शरीर आत्मा का वस्त्र था जो इसे आत्मा का सबसे स्थूल ​वस्त्र मानते थे। अगर वह शरीर के आकर्षण या किसी लोभ में बंधे होते तो उनकी प्रवृत्ति समझौतावादी होती, कभी न कभी वह अपने असूलों, सिद्धांतों पर किसी न किसी से समझौता जरूर कर लेते। वह महापंजाब के मंत्री रहे, सांसद रहे, उनकी राजनीतिक यात्रा के बारे में आप सब जानते हैं। मैं आज उनकी राजनीतिक यात्रा का विश्लेषण नहीं करूंगा, बल्कि इस बात की चर्चा करूंगा कि उन्होंने जीवन भर मूल्यों, संस्कारों और परम्पराओं की रक्षा की। उन्होंने खुद को अनुशासन में ढाले रखा। 
मेरे पड़दादा उस इतिहास का हिस्सा थे, जो इतिहास हमें पढ़ाया ही नहीं गया और वह उन षड्यंत्रों का शिकार हुए जो हर उस संत पुरुष की नियति है जो राजनीति में आ जाए, जबकि पंजाब की पूरी की पूरी राजनीति भारत की स्वाधीनता से 30 वर्ष पहले और लाला जी की शहादत तक उन्हीं के इर्दगिर्द घूमती रही। यह पंजाब आज का नहीं बल्कि हरियाणा, पंजाब और हिमाचल को मिलाकर विशाल पंजाब था। उनके बलिदानी जीवन का इतिहास रोमांचपूर्ण घटनाओं से भरा पड़ा है। अंग्रेजों की जेलों में उन्होंने 10 साल बिताए और देश के आजाद होने के बाद वह पहले कांग्रेसी थे, जिन्हें एक डिप्टी कमिश्रर की करतूतों पर लेख लिखने पर गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्हें पंडित नेहरू का क्रोध भी झेलना पड़ा था। आपातकाल में इंदिरा जी ने उन्हें जेल में डाल दिया था।1980 का दशक शुरू हुआ तो उन्होंने पाक साजिशों के बारे में लिखना शुरू कर दिया। जब आतंकवाद शुरू हुआ तो वह काफी चिंतित हो उठे। उन्होंने सारे नेताओं को बात समझायी। सभी ने उनकी हिन्दू-सिख एकता की अपील को समझा तो अलगाववादियों को लगा कि लाला जी तो अकेले ही उनका बना बनाया खेल बिगाड़ देंगे। पाकिस्तान और आतंकवादी पंजाब में हिन्दू-सिखों को आपस में लड़ाना चाहते थे, लेकिन लाला जी उनके कुत्सित इरादों के आगे डटकर खड़े थे। परिणाम उनकी हत्या कर दी गई। एक दिन वह भी आया जब मेरे दादा जी रमेश चन्द्र जी को भी मेरे दादा जी की तरह आतंकवादियों ने गोलियों का शिकार बनाया। दोनों के महाप्रयाण के बाद न जाने कितनी धमकियां मिलीं, परन्तु मेरे पिता अश्विनी कुमार जी ने भी धमकियों की परवाह न करते हुए जालंधर में ही पंजाब केसरी का प्रकाशन यथावत जारी रखा। परिवार तो चाहता था कि वह पलायन कर हरियाणा या ​िदल्ली चले जाएं। वह न जाने किस सांचे में ढले हुए इंसान थे। 
‘‘उनको रुखसत तो किया था, मगर मालूम न था
 सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
इक मुसाफिर के सफर जैसी है सबकी दुनिया
कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला।’’
मुझे अपने पूर्वजों से यही सीख मिली है कि यह कलम एक तलवार की तरह है, जैसे कोई बहादुर सैनिक किसी निहत्थे, निरीह, निर्दोष के खिलाफ अपने हथियार का इस्तेमाल नहीं करता उसी तरह यह कलम भी सिर्फ जुल्म और अन्याय के खिलाफ देशहित में उठनी चाहिए। यह कलम न किसी की दोस्त है, न किसी की दुश्मन। यह अन्याय के खिलाफ जंग में एक तेज हथियार है जो कभी कुन्द नहीं होनी चाहिए। आज मैं अपनी कलम से कर्त्तव्य का निर्वाह कर रहा हूं। इसमें मेरी मां श्रीमती किरण चोपड़ा का अहम योगदान है। मेरे अनुज अर्जुन और आकाश चोपड़ा भी मुझे सहयोग दे रहे हैं। मैं अपने कर्त्तव्य का कितना पालन कर पाया, इस पर निर्णय लेने का अधिकार मुझे नहीं है। यह अधिकार पाठकों का है। इस बात का स्वाभिमान मुझे है कि पंजाब केसरी पत्र समूह के पुरोधाओं ने दो बहुमूल्य जीवन होम कर दिए। नम आंखों से मैं पड़दादा  को नमन करता हूं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Next Article