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लड़की के रूप में पैदा हुए समर ने इस लम्बी जंग के बाद पायी अपनी असली पहचान, परिवार का था ऐसा रिएक्शन

आज हम आपके लिए एक ऐसी कहानी लेकर आये है जिसमे पहले एक इंसान उस पहचान के साथ घुट- घुटकर जीने को मजबूर था, जो वो असल में था ही नहीं पर अब उसने अपनी जिंदगी खुद बदली है। ये कहानी है समर कि जो आज हजारों – लाखों युवाओं के लिए एक मिसाल है। आइए जानते है ये कहानी उनकी खुद की जुबानी।

05:14 PM Apr 04, 2020 IST | Ujjwal Jain

आज हम आपके लिए एक ऐसी कहानी लेकर आये है जिसमे पहले एक इंसान उस पहचान के साथ घुट- घुटकर जीने को मजबूर था, जो वो असल में था ही नहीं पर अब उसने अपनी जिंदगी खुद बदली है। ये कहानी है समर कि जो आज हजारों – लाखों युवाओं के लिए एक मिसाल है। आइए जानते है ये कहानी उनकी खुद की जुबानी।

कई बार कुछ ऐसे किस्से सामने आते है जो इस बात का अहसास कराते है कि अगर इंसान ठान ले तो अपनी राह खुद बना सकता है और अपनी पहचान को हासिल कर सकता है। आज हम आपके लिए एक ऐसी कहानी लेकर आये है जिसमे पहले एक इंसान उस पहचान के साथ घुट- घुटकर जीने को मजबूर था, जो वो असल में था ही नहीं पर अब उसने अपनी जिंदगी खुद बदली है। ये कहानी है समर कि जो आज हजारों – लाखों युवाओं के लिए एक मिसाल है। आइए जानते है ये कहानी उनकी खुद की जुबानी। 
समर ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा हैं, ‘ दो साल की उम्र में मुझे महसूस हुआ था कि मैं अलग हूं , मैं एक लड़की के रूप में पैदा हुआ था पर मैं ऐसा महसूस नहीं करता था। मुझे अपने ब्रेस्ट्स से परेशानी होती थी। मुझे लड़कियों के कपड़े पसंद नहीं आते थे और ना ही मैं लेडीज वाशरूम इस्तेमाल करना चाहता था।  हर वक्त ऐसा लगता था कि मैं किसी कैद में हूं।’
समर ने आगे लिखा , ‘ मैं इस पिंजरे से बाहर निकलना चाहता था पर मुझमे इतनी हिम्मत नहीं थी। लड़की होने के बावजूद लड़कों जैसी हरकतों की वजह से मुझे स्कूल में परेशां किया जाता था और छक्का जैसे नामों से बुलाया जाता था। मैं इतना परेशान था कि सुसाइड करना चाहता था लेकिन मेरी हर कोशिश नाकाम होती।  मैंने तब थककर हार मान ली थी। ‘
“23 साल का होने पर मुझे पढ़ाई के लिए दुसरे शहर जाना पड़ा।  यहां मैं अकेले रहता था और खुद को थोड़ा आजाद महसूस करने लगा। मुझे अहसास हुआ कि परेशानियों का हल हार मानने में नही बल्कि उनसे लड़कर निकाला जा सकता है। मैंने तय किया कि मैं अपनी शर्तों पर जिंदगी जीऊंगा। मैंने इंटरनेट पर छानबीन की और मुझे पता चला Gender Corrective Surgery से मैं अपनी असली पहचान पा सकता हूं। “
“मुझे समस्या का हल तो मिल गया पर डर था की घरवाले पता नहीं क्या रिएक्शन देंगे। मैंने ठान लिया कि मैं अपने माता-पिता से इस बारे में बात करुंगा।  मेरी आशंकाओं के विपरीत मेरे पेरेंट्स ने मेरी बात मानते हुए तुरंत साथ देने का वायदा किया। उनकी बात सुनकर मेरे दिल का बोझ हट गया और मैं घर वापस आया। मैंने अपने पेरेंट्स को सर्जरी के बारे में बताया और उन्होंने बिना कोई सवाल किये मेरा साथ दिया। “;
“सर्जरी के दौरान मेरा पूरा परिवार अस्पताल में था , सभी ने मेरा साथ दिया और मेरा हौसला बढ़ाया। मेरी दादी ने बड़े गर्व के साथ मेरा नाम समर रखा। मेरे सभी घरवाले उस दिन से मुझे इसी नाम से बुलाते है। एक लड़के के रूप में अपनी पहचान पाकर में खुद को अब आजाद महसूस करता हूं। “
“कशमा से समर बनने के सफर ने मुझे सिखाया कि जो हमे सही लगता है, हमे वही करना चाहिए। किसी और की परवाह करके कि वो क्या सोचेगा, खुद को घुटन में नहीं रखना चाहिए। सच बताने की हिम्मत रखनी चाहिए। आपकी तकलीफ में वो लोग आपका साथ जरूर देंगे जो आपको प्यार करते है। इस तरह आप अपनी जिंदगी में अजेय बनते है। “

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