नए पार्टी अध्यक्ष को लेकर संघ-भाजपा खींचतान
नए भाजपाध्यक्ष का मामला लगातार उलझता जा रहा है, सूत्रों की मानें तो भाजपा
नए भाजपाध्यक्ष का मामला लगातार उलझता जा रहा है, सूत्रों की मानें तो भाजपा व संघ दोनों किसी एक नाम पर सहमत नहीं हो पा रहे। इसी गहराते सस्पेंस के बीच इस 16 जून को नई दिल्ली में संघ व भाजपा के आला नेताओं के दरम्यान एक गंभीर मंत्रणा हुई, सूत्रों की मानें तो इस बैठक में संघ व भाजपा दोनों ही पक्षों से तीन-तीन नेताओं की उपस्थिति दर्ज हुई। बातचीत की शुरूआत बिहार व बंगाल चुनाव की आने वाली आहटों को खंगालने से हुई, यह भी तय हुआ कि इन दोनों प्रदेशों में संघ हरियाणा व महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तर्ज पर ही डोर-टू-डोर कैंपेन को अंजाम देगा। फिर बातचीत असल मुद्दे पर सिमट आई कि आखिरकार भाजपा के नए अध्यक्ष के चुनाव में इतना समय क्यों लग रहा है?
इस पर बैठक में मौजूद भाजपा नेताओं ने संघ से जानना चाहा कि ‘अगर उनके मन में कोई नाम चल रहा है तो वह बता सकते हैं, इस बारे में पार्टी शीर्ष को सूचित कर दिया जाएगा और वहां से निर्णय होने पर आपको बता दिया जाएगा।’ कहते हैं भाजपा नेताओं की इस पेशकश पर संघ कुछ असहज़ हो गया, संघ ने साफ करते हुए कहा कि ‘कृपया आप ऐसा आचरण न करें कि भाजपा संघ से भी बड़ी हो गई है, हमेशा स्मरण रखें कि संघ ही वह ‘मदरशिप’ है जहां से भाजपा का प्रादुर्भाव हुआ है। हम भाजपा को अपने आनुशांगिक संगठनों में से ही एक समझते हैं, सो बेहतर यही रहेगा कि आपका शीर्ष नेतृत्व जिन नामों पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा है, आप वह सूची हमें भेज दें, हम अपने निर्णय से आपको शीघ्र अवगत करा देंगे, और हां यह जरूरी नहीं कि हमारे द्वारा प्रेशित नाम आपकी ही सूची से हों।’ संघ की बदली भाव-भंगिमाओं को देखते हुए अब नए भाजपाध्यक्ष के नाम पर दुबारा से पार्टी मंथन कर सकती है, इस बात का ध्यान रखते हुए कि नाम वही हो जो संघ को भी उतना ही भाए।
ये 50 दिन पूरी दुनिया के लिए उथल-पुथल वाले होंगे
देश के कई नामचीन आचार्यों व ज्योतिषियों की समवेत स्वरों में भविष्यवाणियां हैं कि अगले 50 दिन पूरी दुनिया में भयंकर उथल-पुथल व उठापटक लेकर आए हैं। क्योंकि मंगल अपनी मित्र राशि सिंह में प्रवेश कर गए हैं, वहीं केतु जो एक अग्नि राशि है वह 29 मई से सिंह राशि में पहले से बैठ गया है। यह बेहद विस्फोटककारी मिलन है। 1989 के 36 वर्षों बाद ऐसा योग आया है। जिसका प्रभाव एक साथ पूरी दुनिया पर देखा जा सकेगा। आचार्य सलिल और पंडित मुकेश वत्स जैसे नामचीन ज्योतिषियों की लगभग एक सी भविष्यवाणियां हैरान करने वाली हैं। इन ज्योतिषियों की राय में इन 50 दिनों के दौरान विमान दुर्घटनाओं की आशंकाएं बनी रहेंगी।
आग से नुक्सान पूरी दुनिया को झेलना पड़ सकता है। कई देशों के बीच तनाव और बढ़ेगा, युद्ध के हालात पैदा होंगे, जिन देशों ने अपने को पहले से युद्ध में झोंक रखा है वहां लड़ाई में तेजी आएगी। बड़े व घातक बमों का इस्तेमाल होगा। कई सुप्त ज्वालामुखी भी एक्टिव हो जाएंगे, सुनामी आने की भी संभावना हो सकती है। दुनिया के कई बड़े नेताओं का कैरियर अचानक से ढलान पर आ सकता है। सूर्य के सतह पर तरंगों के भयंकर उथल-पुथल को महसूस किया जा सकेगा, इससे हमारी सैटेलाइट सेवाएं और संचार माध्यमों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। दक्षिणी गोलार्ध के देशों में, खासकर राजनैतिक अस्थिरता बढ़ सकती है, सरकारें अपदस्थ हो सकती हैं।
यूरोप के कई देशों तक इसका प्रभाव देखा जा सकता है। सेना के बड़े अधिकारियों पर संकट आ सकता है, दुनियाभर में आतंकवाद की घटनाओं में तेजी आ सकती है। भारत में धार्मिक उन्माद बढ़ सकता है। चीन में भी हद तक हालात बिगड़ सकते हैं। 36 वर्ष पहले जब ऐसा योग बना था तो सोवियत संघ का विघटन हो गया था, पोलैंड में पहली बार कोई गैर वामपंथी प्रधानमंत्री बना था, आर्थिक बदलाव भी परिलक्षित होंगे, कई जो शीर्ष पर हैं वे जमीन पर औंधे मुंह लुढ़क सकते हैं, कई जो रंक है, वह राजा बनने की रेस में शामिल हो सकते हैं।
दोतरफा असंतोष को हवा देते बीएल
भाजपा के संगठन महासचिव बीएल संतोष इन दिनों एक अजीब सी द्विविधा में फंस गए हैं, उनसे संघ नेतृत्व की भी शिकायतें हैं और भाजपा तो उनसे पहले से खुश नहीं है। संघ ने पिछले दिनों संतोष को दो टूक बता दिया है कि वे बतौर संगठन महासचिव कुछ ऐसा आचरण कर रहे हों मानों वे खुद को खालिस भाजपाई मान रहे हों, जबकि उन्हें संगठन महासचिव का दायित्व संघ के कहने पर सौंपा गया था, इस विचार के साथ कि वे भाजपा संगठन में और भाजपा शीर्ष नेतृत्व के पास संघ की सही भावनाओं को पहुंचाते रहेंगे, पर पिछले कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि वे अपना आर्डर भी भाजपा से लेते हैं और बहुत बार तो संघ की बातों को ही अनसुनी कर देते हैं। इस बात को संघ ने संतोष को उदाहरण के साथ समझाया, यह कहते हुए कि ‘आपसे बहुत पहले ही हमने निवेदन किया था कि मई के अंत तक तमाम प्रदेशों के अध्यक्षों के नाम और उनका चुनाव संपन्न हो जाना चाहिए, पर आज की तारीख में भी कई बड़े प्रदेशों को अब तक उनका अध्यक्ष नहीं मिल पाया है।’
वहीं भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की शिकायत है कि कहां संतोष भाजपा व संघ के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने के लिए लाए गए थे और कहां उन्होंने अपने को कर्नाटक की भगवा राजनीति तक ही सीमित कर लिया। उनकी महत्वाकांक्षा कर्नाटक का सीएम बनने के लिए हिलौरे मारने लगी, वहीं कर्नाटक में पार्टी में आपसी गुटबाजी बेतरह परवान चढ़ने लगी है।
राज्य में कांग्रेस सरकार गलतियाें पर गलतियां करती जा रही है, पर प्रदेश भाजपा इसे कोई बड़ा मुद्दा ही नहीं बना पा रही, वहीं राज्य में पार्टी का ग्राफ भी लगातार गिरता जा रहा है। चुनांचे अब इस बात के काफी स्पष्ट संकेत मिलने लगे हैं कि संतोष से भाजपा जल्द ही अपना पिंड छुड़ाना चाहती है और उनके पक्ष में सदैव कदमताल करने वाला संघ भी इस बार मौन रहने वाला है।
…और अंत में
जब से दिल्ली के प्राचीर पर भगवा रंग का मुलम्मा चढ़ा है नेपथ्य का सियासी शोर थमने का नाम ही नहीं ले रहा। पहला वाक्या इस 16 जून का है, जब दिल्ली सरकार के चाहने पर और दिल्ली के उपराज्यपाल के दस्तखत से 23 आईएएस अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर मुहर लगी। तब ये आरोप लगाए गए कि ‘उन्हीं अधिकारियों को मलाईदार पोस्टिंग दी गई है जिन पर पहले से भ्रष्टाचार के छींटे पड़े थे।’ इसके तुरंत बाद 18 जून को दिल्ली के भगवा हलके में ही एक और बड़ा बावेला मच गया, भाजपा के अंदर ही आरोप-प्रत्यारोप के दौर शुरू हो गए, हवाओं में इन कयासों ने आकार लेना शुरू कर दिया कि जोन चेयरमैन बनने के लिए भाजपा के एक पार्षद ने 70 लाख का चढ़ावा चढ़ाया है, सबसे मजे की बात तो यह कि इन कयासों को भाजपा के अपने ही पार्षद हवा दे रहे हैं।