नए भाजपाध्यक्ष पर संघ का मंथन
अभी बेंगलुरु में संघ की तीन दिवसीय ‘अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा’ की बैठक जारी…
अभी बेंगलुरु में संघ की तीन दिवसीय ‘अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा’ की बैठक जारी है, बैठक 21 मार्च को शुरू हुई है जिसे 23 मार्च तक चलना है। भले ही इस बैठक का घोषित एजेंडा संघ के शताब्दी वर्ष की तैयारियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करना है और यह भी तय करना है कि शताब्दी वर्ष को लेकर विभिन्न आयोजनों, कार्यक्रमों और अभियानों का स्वरूप कैसा रहेगा। पर सब जानते हैं कि इस प्रतिनिधि सभा का एक अघोषित एजेंडा और भी है जिसकी भावनाएं नए भाजपाध्यक्ष के चयन से जुड़ी हैं।
सूत्र यह भी बताते हैं कि इस प्रतिनिधि सभा की बैठक से ऐन पहले भाजपा के संगठन महासचिव बी.एल. संतोष और संघ व भाजपा के बीच बेहतर तालमेल की जिम्मेदारी निभाने वाले अरुण कुमार की एक ‘वन-टू-वन’ बैठक हुई थी जिसमें नए भाजपाध्यक्ष के नाम को लेकर गंभीर चर्चा भी हुई। दरअसल, संघ की चिंता इस बात को लेकर ज्यादा थी कि तमाम प्रयासों के बावजूद संघ की अपेक्षाओं व मंशाओं से भाजपा के नेतृत्व को ठीक से अवगत नहीं कराया गया है। संघ ने यह जिम्मेदारी पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ बी.एल. संतोष और अरुण कुमार को भी सौंपी थी, पर वे संघ की वाजिब चिंताओं से समय-समय पर भाजपा नेतृत्व को अवगत नहीं करा पाए।
यह भी माना जा रहा है कि संगठन महासचिव बी.एल. संतोष की कार्य प्रणालियों से कहीं न कहीं संघ नेतृत्व भी नाखुश है, सो एक नई चर्चा चल पड़ी है कि चूंकि संतोष को सियासी काम-काज में ज्यादा मजा आ रहा है तो क्यों न उन्हें कर्नाटक का नया अध्यक्ष बना कर बंगलुरु भेज दिया जाए। कहते हैं भाजपा के बड़े नेता भी इस राय से सहमत बताए जाते हैं। इसके बाद जब संघ नेतृत्व ने अरुण कुमार से जानना चाहा कि वे अगले भाजपाध्यक्ष के रूप में सबसे उपयुक्त पात्र किसको मानते है तो उन्होंने बेखटके मनोहर लाल खट्टर का नाम आगे कर दिया।
इस पर संघ नेतृत्व ने उनसे कहा कि जब आप हरियाणा के प्रांत प्रचारक थे आप तब से ही मनोहर लाल जी का नाम आगे बढ़ाते रहे हैं। वैसे भी खट्टर साहब आपसे कहीं ज्यादा नरेंद्र भाई की पसंद हैं। पर अरुण कुमार अपनी बात पर मजबूती से जमे रहे और कहा कि इस वक्त हमारे पास मनोहर लाल जी से बेहतर कोई और संगठनकर्ता नहीं, वैसे भी संघ तो कूट-कूट कर उनकी रगों में भरा है वे बतौर भाजपाध्यक्ष जो भी करेंगे हमारी भावनाओं के अनुरूप करेंगे।
संगमा की ऐसे बदली भंगिमा
मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनरेड संगमा भली-भांति इस तथ्य से वाकिफ हैं कि वे चूंकि एक कैथोलिक बहुल राज्य के सीएम हैं और राज्य की राजनीति भी क्रिश्चियन वोटरों के आस-पास ही कदमताल करती है, ऐसे में उनका लंबे समय तक एनडीए में बने रहना उनके वोट बैंक के लिए घातक साबित हो सकता है। सो, वे कोई न कोई बहाना कर एनडीए से बाहर आने की जुगत भिड़ा रहे थे। जब यह ख़बर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता को लगी तो कॉनरेड को मिलने के लिए उन्हें दिल्ली तलब कर लिया गया।
सूत्र बताते हैं कि जब कॉनरेड इस बड़े नेता से मिलने पहुंचे तो उन्होंने दो-टूक कहा-आप एनडीए छोड़ना चाहते हैं मगर क्यों? हमने तो आपको हमेशा स्नेह दिया, कभी कोई व्यक्तिगत हमला भी नहीं किया। आपकी कमियों को भी नजरअंदाज़ करते रहे यह जानते हुए कि आपको किस चीज़ से लगाव है, आप शाम चार बजे से ही ग्लास साथ रख कर गिटार बजाते हैं और आपका चीफ सैक्रेटरी आपको तबले पर संगत देता है, हमने कभी इस बात का भी बुरा नहीं माना और आप हैं कि एनडीए छोड़ना चाहते हैं।’
कॉनरेड को तो मानों सांप ही सूंघ गया था। लौट कर जब मेघालय भवन आए तो वहां पहले से उनकी खास मंडली उनका इंतजार कर रही थी। कॉनरेड ने अपने खास लोगों से कहा कि ‘भाजपा मेरे लिए माता-पिता तुल्य है, इस महान पार्टी की कोई बात मैं टाल नहीं सकता, पर हां ध्यान रखो इस मुलाकात की खबर मीडिया में लीक नहीं होनी चाहिए।
थरूर क्यों हैं इतने मगरूर?
पिछले काफी समय से कांग्रेस नेता शशि थरूर के अंदाज़ किंचित बदले-बदले से हैं, मना करने के बावजूद भी वे मोदी और भाजपा की तारीफों में कसीदे पढ़ रहे हैं और गाहे-बगाहे अपने पार्टी नेतृत्व पर हल्ला बोल रहे हैं। जैसे-जैसे केरल के विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, थरूर के भाजपा में जाने की अटकलें और रफ्तार पकड़ रही हैं। वैसे भी भाजपा में शशि थरूर की पीयूष गोयल से गहरी छनती है। गोयल के साथ पिछले दिनों उन्होंने अपनी एक फोटो ‘एक्स’ पर पोस्ट भी की थी।
सूत्र बताते हैं कि गोयल ने थरूर से कहा कि आने वाले कुछ दिनों में वे उनकी मीटिंग भाजपा के बड़े नेता से करवाने वाले हैं, कहते हैं इस पर थरूर ने कहा कि संभव हो तो वे उन्हें सीधे भाजपा हाईकमान से मिलवा दें। इस पर गोयल ने कहा कि हम आपको केरल में अपना ‘सीएम फेस’ बनाने पर विचार कर सकते हैं। थरूर ने कहा कि चलो यह ठीक है, पर सब जानते हैं कि इस दफे केरल में भाजपा नहीं आने वाली है, फिर भी मैं भाजपा का राज्य भर में घूम-घूम कर अलख जगाऊंगा, उनके लिए जमीन तैयार करूंगा। पर बदले में मैं हाईकमान से बस इतना सा आश्वासन चाहूंगा कि केरल में चुनाव खत्म होने के बाद वे दिल्ली में मुझे अपनी कैबिनेट में शामिल कर लें। थरूर की इस बात पर पीयूष गोयल की ओर से कोई ठोस आश्वासन प्राप्त नहीं हुआ।
‘पाक’ रिपोर्ट से दूरी बनाते राहुल
हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव गंवाने के बाद अब कांग्रेस भी अपना हर कदम बेहद फूंक-फूंक कर रख रही है। पिछले दिनों कड़ी मशक्कत और तमाम जमीनी सर्वेक्षणों और उसके सम्यक विश्लेषणों के बाद हाईकमान के समक्ष एक रिपोर्ट टेबल हुई कि पंजाब, असम और केरल के आने वाले विधानसभा चुनावों में कैसे जीत हासिल हो सकती है। इस रिपोर्ट में पूरी ‘स्ट्रेटजी’ पेश की गई थी।
इस रिपोर्ट को नाम दिया गया था ‘पाक रिपोर्ट’ पाक यानी ‘पी’ से पंजाब, ‘ए’ से असम और ‘के’ से केरल। राहुल गांधी को इस रिपोर्ट का मजमून बेहद पसंद आया पर उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा-‘क्या आपको नहीं लगता कि हमें इस रिपोर्ट का नाम बदलना चाहिए, कम से कम ‘पाक’ नाम तो मत दो, वैसे भी भाजपा वाले हमें देशद्रोही बताते हैं, रिपोर्ट बाहर आ गई तो फिर ये हमारी जान के पीछे ही पड़ जाएंगे। सो, अब तय हुआ है कि रिपोर्ट तो यही रहेगी, पर इसका नाम बदला जाएगा। क्या पता रिपोर्ट का नाम ‘काप रिपोर्ट’ हो जाए, पर इससे खाप वाले नाराज़ ना हो जाएं।
जब अखिलेश से मिले राहुल
अखिलेश प्रसाद के बिहार कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटते ही उनके नेता पुत्र ने राज्य में हंगामा ही बरपा दिया। जब यह खबर राहुल को लगी तो उन्होंने मौके की नज़ाकत को भांपते हुए अखिलेश को मिलने को बुलाया। चूंकि उस वक्त अखिलेश दिल्ली में ही थे सो वे फौरन राहुल दरबार में हाज़िर हो गए। राहुल पूरी गर्मजोशी से अखिलेश से मिले और उनके साथ बैठकर काफी समय तक बिहार चुनाव पर चर्चा की।
दरअसल राहुल को इस बात का इल्म था कि कांग्रेस ने बिहार में जिस-जिस को अध्यक्ष पद से हटाया है वे नेता फौरन अन्य दलों की गोद में जाकर बैठ गए हैं, फिर चाहे वे अशोक चौधरी हों, अनिल शर्मा, राम जतन सिंह हों या महबूब अली कैसर। वैसे भी अखिलेश की लालू यादव से नज़दीकियां जगजाहिर हैं। कांग्रेस नेतृत्व को पहले से ख़बर है कि राज्य में उनके 12 विधायकों पर जनता दल यू और भाजपा ने गिद्ध दृष्टि लगा रखी है।