सफला एकादशी पर जरूर करें इस कथा का पाठ, सभी मनोकामनाएं होंगी पूर्ण
Saphala Ekadashi Vrat Katha: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सफला एकादशी का व्रत साल में एक बार रखा जाता है। यह व्रत पौष महीने के कृष्ण पक्ष के दिन होता है। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को बहुत उत्तम और पुण्यकारी माना जाता है। इस एकादशी का व्रत करने से बेहद पुण्य फल प्राप्त होता है और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष महत्व होता है, साथ ही पवित्र नदी में स्नान भी किया जाता है। सफला एकादशी पर व्रत और विधि-विधान से पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइए जानते हैं, सफला एकादशी की तिथि और इसका महत्व।
Saphala Ekadashi Vrat Katha: सफला एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में चम्पावती नामक एक नगरी थी, जहां महिष्मान नाम के एक प्रतापी राजा राज्य करता था। उनके पांच पुत्र थे, जिनमें से बड़ा पुत्र लुम्पक बहुत ही पापी और दुराचारी था। वह हमेशा पराई स्त्री और बुरे कामों में लगा रहता था। वह देवताओं, ब्राह्मणों और वैष्णवों की घोर निंदा करता था। जब राजा महिष्मान को लुम्पक के इन कामों का पता चला, तो उन्होंने क्रोधित होकर उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया।
राज्य से निकाले जाने के बाद लुम्पक वन में रहने लगा। दिन में वह पशुओं को मारकर खाता और फलों से अपना गुजारा करता था। रात में वह नगर में घुसकर चोरी करता और लोगों को परेशान करता था। लुम्पक जिस वन में रहता था, वह वन भगवान विष्णु को बहुत प्रिय था। एक बार पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को लुम्पक ने वृक्षों के फल खाए। वस्त्रहीन होने के कारण उसे पूरी रात बहुत अधिक सर्दी लगी और वह ठंड से ठिठुरता रहा, जिसके कारण वह सो नहीं पाया। उसने पूरी रात जागकर बिताई। अगले दिन, यानी एकादशी के दिन भी ठंड के कारण लुम्पक बेहोश हो गया।
दोपहर होने पर जब सूर्य की गर्मी से उसे कुछ होश आया, तो वह भोजन की तलाश में वन में गया, लेकिन शिकार नहीं कर सका। वह जमीन पर गिरे हुए कुछ फल लेकर पीपल के वृक्ष के नीचे आया। जिस पीपल के वृक्ष के नीचे वह रहता था, उसे वन में एक महान देवता माना जाता था।
Ekadashi Katha in Hindi: सफला एकादशी व्रत कथा हिंदी
तब तक सूर्यास्त हो चुका था। भूख लगने पर भी उसने फल नहीं खाए और पीपल के पेड़ की जड़ में रखकर दुःखी मन से कहा: "इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों।" इसके बाद भी लुम्पक रात भर नहीं सोया और अपने कर्मों पर पश्चाताप करता रहा। इस प्रकार, अनजाने में ही लुम्पक से दशमी को रात भर जागरण, एकादशी का उपवास और रात में पीपल के वृक्ष के नीचे जागरण हो गया, जिससे सफला एकादशी व्रत के नियमों का पालन हो गया।
इसलिए सफला एकादशी के व्रत के प्रभाव से लुम्पक के सभी पाप नष्ट हो गए। दूसरे दिन सुबह होते ही, अनेक सुंदर वस्तुओं से सजा हुआ एक दिव्य रथ लुम्पक के सामने आकर खड़ा हो गया। उसी समय एक आवाज निकली, जिसमें कहा गया "हे युवराज! भगवान नारायण के प्रभाव से तेरे सभी पाप नष्ट हो गए हैं। अब तुम अपने पिता के पास जाओ और राज्य प्राप्त करो।" लुम्पक अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने आवाज को सुनकर भगवान को प्रणाम किया।
वह दिव्य रूप धारण कर राजा महिष्मान के पास गया। अपने पुत्र को बदला देखकर राजा बहुत खुश हो गया इसके बाद राजा ने लुम्पक को राज्य का भार सौंप दिया और स्वयं वन में तपस्या करने चला गया। लुम्पक ने धर्म के अनुसार राज्य किया। उसे मनोज्ञ नाम का एक पुत्र हुआ। वृद्धावस्था आने पर लुम्पक ने अपने पुत्र को राज्य सौंपकर भगवान विष्णु का भजन किया और अंत में भगवान विष्णु के परम धाम को प्राप्त हो गया।
Saphala Ekadashi 2025: सफला एकादशी का महत्व
हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि साल की इस एकादशी का व्रत करने से जीवन में हर काम सफल होते हैं और उनके जीवन में किसी भी तरह की परेशानी नहीं आती है। सफला एकादशी के दिन विधि-विधान से पूजा और व्रत करने से जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही, इससे जातक को मोक्ष मिल सकता है।
धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों के अनुसार सभी व्रतों में एकादशी के व्रत को सबसे उत्तम और पुण्यकारी माना गया है। कहा जाता है कि पांच हजार वर्ष तक तप करने के समान फल सफला एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। साथ ही, व्रती को भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त हो सकती है।
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