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सरदार सरोवर : सजल ‘जलयात्रा’

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11:36 PM Sep 17, 2017 IST | Desk Team

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56 वर्ष बाद गुजरात में नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध का निर्माण हो गया जिसका उद्घाटन प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने किया। भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा 1961 में शुरू की गई इस परियोजना के पूरा होने से भारत दुनिया का ऐसा दूसरा देश भी बन गया है जिसके पास अमरीका के बाद सबसे बड़ा बांध है। इससे यह स्पष्ट होता है कि 56 साल पहले पं. नेहरू ने जिस विचार को साकार करना चाहा था उसका मूल उद्देश्य भारत के विभिन्न राज्यों में जल की सप्लाई सुनिश्चित करने के साथ ही किसानों की खेती को पर्याप्त सिंचित साधन उपलब्ध कराना था।

हालांकि तब बांध की ऊंचाई केवल 80 मीटर ही रखी गई थी जिससे बांध के डूब क्षेत्र में कम से कम खेती योग्य भूमि और नर्मदा के किनारे बसे लोगों के साथ ही पर्यावरण को ज्यादा नुकसान न हो सके, परन्तु बाद में इस बांध की ऊंचाई को बढ़ाने की प्रक्रिया शुरू की गई और इसके चलते कई बार मामला सर्वोच्च न्यायालय तक में पहुंचा। इसके समानान्तर ही सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री मेधा पाटेकर के नेतृत्व में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भी गति पकड़ी जिसका मुख्य मुद्दा बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने के विरोध में था परन्तु हर बार सर्वोच्च न्यायालय ने देश के व्यापक हितों को देखते हुए इसकी ऊंचाई बढ़ाने को हरी झंडी कुछ शर्तों के साथ दी। अब इस बांध की ऊंचाई 131 मीटर तक की रहेगी जिससे बिजली उत्पादन के साथ ही मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात जैसे राज्यों की जलापूर्ति में सुविधा होगी। दरअसल यह हमारे राष्ट्र निर्माताओं की मान्यता रही कि विकास के सभी अंग इंतजार कर सकते हैं मगर कृषि ऐसा क्षेत्र है जो लम्बी प्रतीक्षा नहीं कर सकता। पं. नेहरू ने जब 1958-59 का बजट संसद में पेश किया था तो उन्होंने कहा था कि हमें कृषि क्षेत्र को प्रथम वरीयता पर रखते हुए अपने औद्योगिक विकास की तरफ तेजी से बढ़ना होगा।

असल में पं. नेहरू ने पंजाब में भाखड़ा नंगल बांध का उद्घाटन किया था तो साफ कर दिया था कि आधुनिक भारत के मन्दिर-मस्जिद बांध व औद्योगिक कल कारखाने होंगे जिनमें रोजगार के अवसर आम हिन्दोस्तानियों को मिलने के साथ ही देश का कायाकल्प होगा, परन्तु यह विकास करते समय हमें स्थानीय जरूरतों का भी ध्यान रखना होगा और वहां के लोगों की सहमति भी उनमें विश्वास जगाकर प्राप्त करनी होगी। इस बांध का नाम प्रथम उपप्रधानमन्त्री व गृहमन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर रखा जाना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि सरदार का मूल राज्य गुजरात ही था, लेकिन सरदार सरोवर की यात्रा इतनी विवादास्पद रही कि १९९४ में विश्व बैंक ने भी इसका वित्तीय पोषण बन्द कर दिया। इसके बावजूद पिछली सरकारों ने इसका निर्माण कार्य कई बाधाओं के बावजूद जारी रखा और इसे पूरा किया। इस बांध को अन्तिम अंजाम तक पहुंचाने में श्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। गुजरात के मुख्यमन्त्री के रूप में उन्होंने इस बांध की ऊंचाई बढ़ाने को जरूरी समझा जिससे अधिकाधिक लोगों को इसका लाभ मिल सके। हालांकि नर्मदा नदी पर कुल 30 बांध बनने हैं मगर सरदार सरोवर का महत्व इसलिए सर्वाधिक है क्योंकि यह परियोजना अन्य राज्यों के सहयोग के बिना पूरी नहीं हो सकती थी।

नर्मदा का वह मुहाना गुजरात में ही है जहां नर्मदा समुद्र में जाकर मिलती है मगर इसका सारा जल इस मायने में व्यर्थ चला जाता था कि इसका सदुपयोग भारत की बढ़ती आबादी की दृष्टि से नहीं हो पाता था, लेकिन हर विकास की कोई न कोई कीमत तो अदा करनी पड़ती है, देखना केवल यह होता है कि किसी के भी बेघरबार होने पर उसकी पुनर्स्थापन पूरी संजीदगी के साथ हो। यही वजह है कि 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में साफ कर दिया था कि बांध की ऊंचाई 131 मीटर तक इस शर्त तक पहुंचेगी कि प्रत्येक पांच मीटर ऊंचाई बढ़ने के बाद उसकी डूब में आने वाले लोगों की बस्तियों का पुनर्स्थापन पहले से ही नियत स्थानों पर पुख्ता तौर पर किया जाए। aनर्मदा का जल सीधे गुजरातवासियों को पहुंचाने की जो प्रणाली इस राज्य में विकसित की गई है उसमें लगातार सुधार होता जाये मगर इसके साथ ही नर्मदा के जल का प्रवाह सतत रखना भी बहुत जरूरी है। हालांकि यह प्राकृतिक स्रोत है जिसका प्रवाह प्रकृति पर ही निर्भर करता है परन्तु हमें एेसी व्यवस्था तो करनी ही होगी जिससे कम से कम प्रदूषण फैलाकर हम इस नदी को स्वच्छ रख सकें।

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