भारत के सरताज थे ‘नेहरू’
आज स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पुण्यतिथि है। वर्तमान समय में उन्हें स्मरण करना इसलिए जरूरी है क्योंकि उन्ही के अथक प्रयासों गहरी निष्ठा और व्यावहारिक आचरण से भारत में निडर व निष्पक्ष लोकतन्त्र की नींव रखी गई।
12:51 AM May 27, 2020 IST | Aditya Chopra
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आज स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पुण्यतिथि है। वर्तमान समय में उन्हें स्मरण करना इसलिए जरूरी है क्योंकि उन्ही के अथक प्रयासों गहरी निष्ठा और व्यावहारिक आचरण से भारत में निडर व निष्पक्ष लोकतन्त्र की नींव रखी गई। पं. नेहरू सार्वजनिक राजनीतिक जीवन में अपनी आलोचना किये जाने को आवश्यक मानते थे और जब उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके कार्यों की समीक्षा करने में हिचिकिचाहट दिखाई पड़ती थी तो वह आलोचक की भूमिका भी स्वयं ही निभा देते थे। ऐसा स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान कई बार हुआ जब कांग्रेस पार्टी में उनकी नीतियों के विरोध में एक भी स्वर नहीं उभरा तो उन्होंने एक समाचार पत्र में स्वयं ही अपने विचारों के विरोध में तीखा लेख छद्म नाम ‘डा. भट्टाचार्य’ के नाम से लिख दिया। जब इसकी सूचना महात्मा गांधी को दी गई तो उन्होंने तुरन्त पहचान लिया और कहा कि यह डा. भट्टाचार्य सिवाय ‘जवाहर लाल’ के कोई दूसरा नहीं हो सकता।
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अक्सर यह धारणा पैदा की जाती है कि पं. नेहरू व नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के बीच मतभेद थे परन्तु जवाहर लाल जी नेताजी के क्रान्तिकारी विचारों से इतने प्रभावित थे कि आजादी मिलने के बाद देश के विकास के लिए उन्होंने नेताजी की सुझाई गई तरकीब को ही सबसे पहले जमीन पर उतारा और योजना आयोग की स्थापना की। राष्ट्रीय योजना कमेटी बनाने का सुझाव नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने ही 1936 के हरिपुरा कांग्रेस सम्मेलन में पहली बार दिया था। इस सम्मेलन में वह अध्यक्ष चुने गये थे और आजादी से पहले कांग्रेस के अध्यक्ष को ‘राष्ट्रपति’ कहा जाता था। इतना ही नहीं पं. नेहरू ने आजाद भारत में नेताजी की ‘आजाद हिन्द फौज’ के सैनिक गान ‘कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा’ को भी भारतीय सेना का शौर्य गीत बनाया।
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इसी प्रकार सरदार पटेल के साथ भी उनके मतभेद बता कर गफलत फैलाने का सिलसिला चलाया जाता है जबकि हकीकत इसके बिल्कुल उलट है। सरदार पटेल आजादी से पहले अंग्रेज सरकार द्वारा लाये गये कैबिनेट मिशन में गृह विभाग के मुखिया के तौर पर पं. नेहरू के नेतृत्व में काम कर चुके थे। दर असल ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री एटली ने भारत को स्वतन्त्र करने की योजना के तहत 25 मार्च, 1946 को तीन अंग्रेज राजनीतिक उच्च सलाहकारों को भारत भेज कर सुनिश्चित करना चाहा था कि मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना की अलग पाकिस्तान की मांग को बरतरफ करने की कोशिश की जाये और पूरे भारत को एक इकाई के रूप में रखते हुए कांग्रेस व मुस्लिम लीग का संयुक्त मन्त्रिमंडल आजादी से पहले ही वायसराय लार्ड वावेल की देखरेख में गठित किया जाये। अतः भारत की एक अन्तरिम सरकार बनी जिसके मुखिया पं. जावाहर लाल नेहरू बने और इसमें जिन्ना को शामिल होने की दावत दी गई। जिसे उन्होंने नहीं माना और अपनी जगह लियाकत अली खां को नामजद कर दिया। जिन्ना चाहते थे कि इस अन्तरिम सरकार में लियाकत अली को गृह विभाग दिया जाये मगर उन्हें वित्त विभाग दिया गया और सरदार पटेल को कैबिनेट में शामिल करके पं. नेहरू को गृह विभाग दिया। मगर जिन्ना की शह पर लियाकत अली ने इस सरकार को काम ही नहीं करने दिया और दूसरी तरफ मुस्लिम लीग ने भारतीय मुसलमानों पर पाकिस्तान बनाने का जुनून सवार करने की चाले चलनी शुरू कर दीं और सम्प्रदायिक दंगे शुरू करा दिये।
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लार्ड ववेल ने सितम्बर 1946 मे संविधान सभा का गठन कर दिया मगर मुस्लिम लीग ने इसमें शामिल होने से मना कर दिया और इसी साल के शुरू तक हुए प्रान्तीय एसेम्बलियों के चुनावों में पंजाब, सिन्ध व बंगाल जैसे राज्यों में अपनी विजय को आधार बना कर मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग पर अड़ना शुरू कर दिया। यही वजह थी कि महात्मा गांधी ने जिन्ना से कहा था कि वह चाहें तो प्रधानमन्त्री बन जायें और पाकिस्तान बनाने की मांग छोड़ दें। अंग्रेज यहां खेल खेल गये और उन्होंने पाकिस्तान को बनवा डाला। अतः जब स्वतन्त्र भारत की पहली राष्ट्रीय सरकार बनी तो सरदार पटेल सहर्ष इसमें उप प्रधानमन्त्री के रूप में गृह विभाग के मुखिया बन गये। इसकी एक वजह और भी थी कि सरदार की आयु 1947 में 76 वर्ष की थी अतः उन्होंने नेहरू जैसे कम उम्र के देश के युवाओं में लोकप्रिय नेता को प्रधानमन्त्री पद पर देखना स्वीकार किया यह पक्का इतिहास है इसमे जरा भी शक की गुंजाइश नहीं है।
आधुनिक भारत के निर्माता के तौर पर पं. नेहरू को जब याद किया जाता है तो हम भूल जाते हैं कि आज हम जिस पेड़ के फल खा रहे हैं उसका पौधा पं. नेहरू की दूरदर्शिता ने ही लगाया था। स्वास्थ्य, शिक्षा विज्ञान और सुरक्षा के क्षेत्र में नेहरू जी ने ही मुफलिस और अंग्रेजों द्वारा कंगाल बनाये गये भारत को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की नींव रखी। क्योंकि नेहरू पूरी तरह आश्वस्त थे कि भारत कभी भी गरीब मुल्क नहीं रहा है। यह सत्य उन्होंने तब ही खोज लिया था जब वह अंग्रेजों की जेल में बैठे ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ पुस्तक लिख रहे थे और इसके बाद ही उन्होंने आजादी मिलने से पहले लन्दन के प्रसिद्ध अखबार में लेख लिख कर ऐलान किया था कि भारत हजारों साल के इतिहास में कभी भी ‘गरीब देश’ नहीं रहा। आजादी के बाद गरीब भारत की साख पूरी दुनिया में बुलन्दी तक पहुंचाने में नेहरू जी का व्यक्तित्व स्वयं में एक ऐसा शक्ति पुंज्ज था कि अमेरिका के राष्ट्रपति आईजनहावर सभी लोकाचार तोड़ कर उन्हें स्वयं हवाई अड्डे पर लेने आया करते थे।
ध्यान रखिये भारत तब विदेशी मदद और अनुदान लेकर अपना औद्योगीकरण व विकास कर रहा था। नेहरू के व्यक्तित्व का ही रुतबा था कि जब तक पाकिस्तान में 1956 तक लोकतन्त्र रहा तब तक पाकिस्तान की हिम्मत नहीं हुई कि वह 1950 में हुए उस ‘नेहरू-लियाकत समझौते’ का उल्लंघन कर सके जो दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों के बीच हुआ था। पाकिस्तान में शैतानी हरकतें 1956 के बाद सैनिक शासन आने के बाद ही शुरू हुईं। कश्मीर समस्या का हल भी हो गया होता अगर 27 मई, 1964 को पं. नेहरू की मृत्यु न हुई होती क्योंकि जून महीने के शुरू में पाक के हुक्मरान जनरल अयूब के नई दिल्ली आने की योजना बन चुकी थी जिसमें कश्मीर पर ही फैसला होना था। क्योंकि राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव को सबसे पहले नेहरू ने ही कूड़े की टोकरी फेंक कर ऐलान किया था वैधानिक तरीके से पूरा कश्मीर भारत का ही अंग है। ऐसे महान राष्ट्र निर्माता को करोड़ों देशवासी आज फिर वैसे ही याद करते हैं जैसे उनके निधन पर एक शायर ने याद किया था
‘‘हाय जवाहर लाल हमारे, हाय जवाहर लाल हमारे
भारत के सरताज थे नेहरू, हिन्द के हमराज थे नेहरू
उनके गम में सब रोते हैं, एसे लीडर कम होते हैं
कहते हैं सब गम के मारे , हाय जवाहर लाल हमारे।’’

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