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सर्वधर्म समभाव और भाजपा

पैगंबर हजरत मोहम्मद के बारे में दिए गए कथित विवादास्पद बयान या की गई टिप्पणी पर भारतीय जनता पार्टी हाईकमान ने जिस तरह अपनी ही पार्टी के दो सदस्यों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की है उसका अनुमोदन भारत के आम आदमी को इसलिए करना चाहिए क्योंकि भारतीय संस्कृति में किसी भी धर्म के पूज्य व्यक्तित्व या देव की निंदा करने की कभी कोई परंपरा नहीं रही।

04:40 AM Jun 07, 2022 IST | Aditya Chopra

पैगंबर हजरत मोहम्मद के बारे में दिए गए कथित विवादास्पद बयान या की गई टिप्पणी पर भारतीय जनता पार्टी हाईकमान ने जिस तरह अपनी ही पार्टी के दो सदस्यों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की है उसका अनुमोदन भारत के आम आदमी को इसलिए करना चाहिए क्योंकि भारतीय संस्कृति में किसी भी धर्म के पूज्य व्यक्तित्व या देव की निंदा करने की कभी कोई परंपरा नहीं रही।

पैगंबर हजरत मोहम्मद के बारे में दिए गए कथित विवादास्पद बयान या की गई टिप्पणी पर भारतीय जनता पार्टी हाईकमान ने जिस तरह अपनी ही पार्टी के दो सदस्यों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की है उसका अनुमोदन भारत के आम आदमी को इसलिए करना चाहिए क्योंकि भारतीय संस्कृति में किसी भी धर्म के पूज्य व्यक्तित्व या देव की निंदा करने की कभी कोई परंपरा नहीं रही। बेशक सैद्धांतिक या धार्मिक विचारों को लेकर तर्क-वितर्क या शास्त्रार्थ होता रहा है और इस प्रकार होता रहा है कि प्रत्येक धर्म का व्यक्ति या विद्वान अपने धर्म की संस्थापना का विवेचन अपने दर्शन की शक्ति के साथ कर सके। परंतु इसका अर्थ कभी भी एक- दूसरे के धर्म के पूज्य व्यक्तियों का अपमान करना नहीं रहा। अतः हजरत मोहम्मद साहब के बारे में की गई टिप्पणी पर जो मुस्लिम समुदाय में विवाद खड़ा हुआ और मुस्लिम विद्वानों ने भाजापा की प्रवक्ता नूपुर शर्मा और दिल्ली प्रदेश मीडिया के प्रभारी नवीन जिंदल को पार्टी से जिस वजह से निलंबित किया वह इस पार्टी के अन्य नेताओं के लिए भी एक नजीर की तरह भविष्य में काम आएगा।
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बेशक भाजपा अपने जन्म काल जनसंघ के समय से ही राष्ट्रवाद के सिद्धांत को लेकर चलने वाली पार्टी रही है परंतु भारतीय संविधान में इस पार्टी का पूर्ण विश्वास रहा है और संवैधानिक लोकतांत्रिक रास्तों से ही यह पार्टी आज सत्ता के शिखर पर पहुंची है। अतः संविधान के अनुसार सभी धर्मों को एक निगाह से देखना और उनका आदर करना प्रत्येक राजनीतिक पार्टी का कर्त्तव्य बन जाता है। भाजपा कहीं भारतीय दार्शनिक सिद्धांतों के अनुसार इससे भी ऊपर जाकर सर्वधर्म समभाव की भारतीय या हिंदू संस्कृति की मानने वाली पार्टी मानी जाती है और इसके अनुसार वह यह मानती है कि भारत में विभिन्न पंथ हैं जिनकी पूजा पद्धति अलग-अलग हो सकती है और ऐसा करने से किसी भी नागरिक की भारतीयता पर कोई अंतर नहीं पड़ता है। वैसे भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष और धर्म को संवैधानिक रूप से निजी मामला माना गया है जिसके अनुसार प्रत्येक नागरिक को अपनी आस्था और विश्वास के अनुसार अपने मजहब का पालन करने का अधिकार है।
निश्चित रूप से ऐसे अवसर भी प्रायः आते रहते हैं जब धर्म को लेकर विभिन्न संप्रदायों के खुद को नेता कहने वाले लोग भड़काऊ भाषण देते हैं। इनकी ऐसी कार्रवाइयों से समाज में तनाव ही बढ़ता है और सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचता है। किसी भी देश के विकास के लिए सांप्रदायिक सौहार्द बहुत आवश्यक होता है अतः भारतीय जनता पार्टी ने एक सत्तारूढ़ दल की हैसियत आने पर अपनी ही पार्टी के भड़काऊ बयान देने वाले दो नेताओं को पार्टी से निकाल कर उदाहरण प्रस्तुत किया है। अब उन लोगों को सब्र करना चाहिए और भड़काऊ बयान देने से बाज आना चाहिए जो नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की टिप्पणियों को लेकर हिंदू समाज के विरुद्ध अनर्गल टिप्पणियां कर रहे थे। अतः मुस्लिम उलेमाओं को भी अब शांति के साथ समाज को यह पैगाम देना चाहिए ​कि काशी विश्वनाथ धाम के ज्ञानवापी क्षेत्र में मिले शिवलिंग को लेकर वे कोई भी अश्लील या असभ्यता के दायरे में आने वाली टिप्पणी ना करें और इस मामले को अदालत के फैसले पर छोड़ें। भारत की वास्तविकता तो यही है कि हिंदू और मुस्लिम दोनों यहां सदियों से इकट्ठा रहते आ रहे हैं यह बात और है कि पिछली सदी में कुछ खुदगर्ज नेताओं ने मुस्लिमों को बहका कर पाकिस्तान का निर्माण करा लिया मगर हम देख सकते हैं कि आज पाकिस्तान की हालत क्या है और वह किस जगह खड़ा हुआ है। भारत की स्थिति आज विश्व में शिखर के देशों में इसीलिए है क्योंकि यहां के लोग शांति और सद्भावना को अपने जीवन का लक्ष्य मानते हैं और आपस में मिलजुल कर तरक्की के रास्ते पर जाना चाहते हैं इसमें उनका निजी धर्म कभी आड़े नहीं आता। भारत की तरक्की का यह भी एक राज है। हम एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करते हैं और उनके पूज्य व्यक्तियों के बारे में अपमानजनक शब्द कहने से परहेज भी रखते आए हैं।
हिंदू धर्म की संस्कृति तो इस बात की साक्षी है कि नाथ संप्रदाय पूरे भारत के हिंदू और मुसलमानों में एकता और समरसता कायम रखने में सबसे आगे रहा इसी प्रकार सिख मत के प्रवर्तक गुरु नानक देव जी महाराज ने भी हिंदू मुस्लिम एकता में भारतीय संस्कृति के उस पक्ष पर सर्वाधिक जोर दिया जिसमें दोनों धर्मों के बीच अधिकाधिक सामंजस्य स्थापित किया जा सकता था। इसके मूल में भी सर्वधर्म समभाव ही था क्योंकि हिंदू संस्कृति में कभी भी किसी दूसरे मत को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं की गई। भारत में जितने भी मत या पंथ अथवा धर्म उपजे उनमें सर्वाधिक जोर व्यक्ति के निजी उत्थान पर दिया गया। जैन धर्म का अनेकांत वाद और स्यादवाद हमें यही सिखाता है कि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति का पवित्र होना बहुत आवश्यक है और प्रत्येक विचार या मत का सम्मान करना उसका धर्म है। वास्तव में इसे हम लोकतंत्र का प्रथम सिद्धांत भी कह सकते हैं। अतः सर्वधर्म समभाव भारतीय संस्कृति में घुला हुआ है यह कोई ऊपर से थोपा हुआ दर्शन नहीं है इसका अनुभव प्रत्येक भारतीय विशेष रूप से हिंदू नागरिक अपने दैनिक जीवन में भी करता है। कुछ अपवाद हो सकते हैं मगर जो अपवाद हैं वह भारत में बाहर से आए हुए असहिष्णु दर्शन सिद्धांतों के कारण हैं। इसकी तफ्सील में जाने का यह वक्त नहीं है बल्कि यह समय प्रत्येक हिंदू-मुसलमान को अपना दायित्व समझने का है। मूल बात यह है की हिंदू प्रतीकों का मुसलमान दिल से सम्मान करें और इस्लाम धर्म की प्रवर्तक पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की शान में हिंदू कोई भी गुस्ताखी करने की कोशिश न करे तभी तो सर्वधर्म समभाव की भावना पैदा होगी और हम सच्चे भारतीय कहलाएंगे। प्रश्न भाजपा या कांग्रेस का नहीं हो सकता जब हम भारत राष्ट्र की शक्ल संस्कृति की बात करते हैं, सबसे पहले प्रत्येक व्यक्ति भारत का नागरिक है और संविधान का पालन करना उसका परम कर्त्तव्य है।
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