ध्यान दें! 'शादी का वादा तोड़ना रेप नहीं, सहमति से Sex और Breakup पर Supreme Court ने क्या कहा?
SC on Consent vs Rape: सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने सोमवार को स्पष्ट किया कि यदि किसी सहमति से बने संबंध में ब्रेकअप हो जाता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि पुरुष के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज किया जा सकता है। इस निर्णय में अदालत ने आरोपी के खिलाफ दर्ज केस को खारिज कर दिया। जस्टिस बीवी नागरत्न और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि शादी का झूठा वादा करके बलात्कार करने के आरोपों में स्पष्ट और ठोस सबूत होना अनिवार्य है।
Supreme Court Breakup Case: कोर्ट रूम में क्या- क्या हुआ?
कोर्ट ने यह भी कहा कि एक रिश्ते के टूटने को केवल इसलिए बलात्कार मानना सही नहीं है क्योंकि संबंध खत्म होने के पीछे निराशा या असहमति का कारण है। बेंच ने स्पष्ट किया कि अगर शुरुआत में संबंध सहमति से बना था और बाद में वह शादी में नहीं बदल सका, तो इसे आपराधिक रंग नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा, "सहमति से संबंध में रहे कपल के बीच ब्रेकअप होने पर आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती। शुरुआत में बने संबंध अगर शादी में तब्दील नहीं होते, तो इसे अपराध नहीं कहा जा सकता।"
सुप्रीम कोर्ट ने रेप को लेकर क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के मामलों में यह भी रेखांकित किया कि यह साबित करना जरूरी है कि आरोपी ने शुरू से ही शादी का झूठा वादा किया और उसी वादे के आधार पर महिला ने अपनी सहमति दी। बेंच ने कहा कि बलात्कार और सहमति से यौन संबंध में अंतर स्पष्ट होना चाहिए। अदालत को यह ध्यानपूर्वक जांच करनी चाहिए कि क्या आरोपी वास्तव में शादी करना चाहता था या सिर्फ अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए झूठा वादा कर रहा था।
Supreme Court News: 2024 की घटना पर कोर्ट ने सुनाया फैसला
इससे पहले, बॉम्बे हाईकोर्ट ने औरंगाबाद के एक वकील के खिलाफ दर्ज केस को खारिज करने से इनकार किया था। यह मामला 2024 में छत्रपति संभाजीनगर में दर्ज किया गया था। शिकायतकर्ता एक शादीशुदा महिला थीं, जो अपने पति से अलग रह रही थीं। उनकी मुलाकात वकील से 2022 में हुई थी। एक केस में सहयोग के दौरान दोनों की नजदीकियाँ बढ़ीं और शारीरिक संबंध भी बने।
क्या है पूरा मामला?
महिला ने आरोप लगाया कि वकील ने शादी का वादा किया था, लेकिन बाद में मुकर गया। उन्होंने यह भी कहा कि इस दौरान वह कई बार गर्भवती हुई, लेकिन सहमति से गर्भपात कराया। जब वकील ने शादी से इंकार किया और धमकी दी, तब महिला ने झूठे शादी के वादे के आधार पर FIR दर्ज कराई। वहीं, आरोपी वकील ने शीर्ष न्यायालय में कहा कि यह शिकायत बदले की भावना से की गई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि महिला ने तब शिकायत दर्ज कराई जब उन्होंने डेढ़ लाख रुपये देने से इनकार किया। वकील ने यह भी बताया कि तीन साल तक चले संबंध के दौरान महिला ने कभी यौन हिंसा की शिकायत नहीं की।
जांच में कोर्ट को मिले कई सबूत
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच में पाया कि संबंध सहमति से बने थे और किसी भी समय जबरदस्ती या धोखे का प्रयोग नहीं हुआ। बेंच ने कहा कि आपसी लगाव के चलते हुए यौन संबंधों को केवल इसलिए अपराध नहीं माना जा सकता कि शादी का वादा पूरा नहीं हुआ। अदालत ने यह भी नोट किया कि अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता को केवल शारीरिक सुख के लिए फुसलाया और छोड़ दिया, ऐसा कोई प्रमाण नहीं है। रिश्ते की अवधि तीन साल तक रही, जो कि लंबा समय माना जाता है।
बेंच ने महिला प्रेमिका को लेकर क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने भविष्य में असफल रिश्तों के मामले में बलात्कार के प्रावधानों के गलत उपयोग के प्रति भी चेतावनी दी। बेंच ने कहा कि महिला शिक्षित है और शादीशुदा होने के बावजूद सहमति से रिश्ता जारी रखा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी घटना से जबरदस्ती या शारीरिक धमकी का कोई संकेत नहीं मिलता। इस फैसले से यह साफ हो गया है कि केवल ब्रेकअप या शादी का वादा न निभाने जैसी परिस्थितियों को बलात्कार का आधार नहीं बनाया जा सकता। अदालत ने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल करते हुए यह सुनिश्चित किया कि कानून का गलत इस्तेमाल नहीं हो और वास्तविक बलात्कार मामलों में ही आपराधिक कार्रवाई हो।