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सामूहिक विवाह में भी घोटाला

04:37 AM Feb 06, 2024 IST | Aditya Chopra
सामूहिक विवाह में भी घोटाला

उत्तर प्रदेश में सरकार की सामूहिक विवाह अनुदान योजना में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा सामने आया है। राज्य के बलिया में फर्जी दूल्हों के साथ विवाह करवाए गए। वायरल वीडियो में कई दुल्हनें कथित दूल्हों के गले में वरमाला डालती नजर आईं तो दूल्हें अपना चेहरा छिपाते नजर आए। अनेक दुल्हनों ने स्वयं ही वरमाला अपने गले में डाल ली। किसी भी सरकार की नीतियों और योजनाओं को लागू करने की जिम्मेदारी ब्यूरोक्रेसी यानि अफसरशाही पर होती है। सरकारी योजनाओं में घोटाले होना कोई नई बात नहीं है। विवाह में घोटाला हो जाए या फिर घोटाले से विवाह हो जाए तो चूना किसी न किसी को तो लगता है लेकिन विवाह घोटाले में उत्तर प्रदेश सरकार को ही चूना लग रहा है। माल उड़ा कर ले जाते हैं राजनीतिज्ञ, अफसर और पहले से ही शादीशुदा लोग। ऐसा नहीं है कि सामूहिक विवाह योजना के तहत घोटला पहली बार उजागर हुआ है। औरेया, नोएडा और अन्य कई शहरों में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। बलिया में हुए सामूहिक शादी समारोह में विधायक मुख्य अतिथि थी। मामले का भंडाफोड़ होने पर इस विवाह धोखाधड़ी में दो सरकारी अधिकारियों सहित 15 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। समारोह में काफी संख्या में फर्जी लोगों को ​​बिठाकर शादी अनुदान को हड़पने के लिए शादी कराई गई। कुछ दूल्हें व दुल्हनों को पेमेंट देकर शादी कराने वाला गैंग लाया था। बताया जा रहा है कि दूल्हे और दुल्हन के रूप में समारोह में भाग लेने के लिए अधिकारियों व दलालों ने महिलाओं और पुरुषों को 500 रुपये से लेकर 2 हजार रुपये तक का भुगतान किया था।
फर्जीवाड़े का आलम यह था कि समारोह में मौजूद कई दुल्हनों को जब उनका जोड़ीदार नहीं मिला तो उन्होंने वरमाला खुद ही पहन ली। एक 19 साल के युवक ने बताया कि वह शादी समारोह को देखने गया था लेकिन उसे पैसे की पेशकश करते हुए वहां दूल्हे के रूप में बैठा दिया गया। उसने बताया कि उसकी तरह दर्जनों युवकों को ऐसे ही पकड़कर अधिकारियों और दलालों ने बैठा दिया।
उत्तर प्रदेश की सरकार गरीब परिवारों की लड़कियों का खर्च वहन करती है। शादी अनुदान योजना के तहत 51 हजार रुपए का समान नव दम्पति को दिया जाता है। हर साल भारी-भरकम धनराशि का प्रावधान सरकार द्वारा किया जाता है लेकिन अफसरशाही और लोग इसका बड़ा फायदा उठा रहे हैं। पहले से ही शादीशुदा होते हुए लोग सरकारी धनराशि और उपहारों के लालच में फर्जी शादियां कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या इस फर्जीवाड़े में जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत है या नहीं। दरअसल जिस तरह से राजनीति का चरित्र बदल गया है उसी के अनुरूप अफसरशाही का चरित्र बदल चुका है। विधायक थाने में ही गोलियां चलाने लगे हैं। लूट की सम्प​त्ति पर कब्जा जमाने के लिए निर्वाचित जनप्रतिनिधि ही अपराधी बन रहे हैं। भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों को कानून का कोई डर नहीं रहा क्योंकि उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है। जनप्रतिनिधियों के काले कारनामे समय-समय पर सामने आते रहे हैं जिससे राजनीतिज्ञों की छवि प्रभावित हुई है। इसमें कोई संदेह नहीं कि योगी सरकार भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन देने के लिए वचनबद्ध है और वह भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने के लिए तुरंत एक्शन भी लेती है लेकिन भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ना संभव नहीं है। गरीबों के लिए चल रही कल्याणकारी योजनाएं भ्रष्टाचार का संवाहक बन गई हैं। मनरेगा के तहत कार्य करने वाले मजदूरों की मजदूरी हो या फिर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ​आवास निर्माण के लिए आवंटित की गई राशि, वृद्ध, विधवा, विकलांग की सामाजिक पैंशन की राशि हो या फिर सरकार द्वारा दिए जाने वाले विभिन्न प्रकार के अनुदान की राशि, इन सब में घोटाले और कई तरह की शिकातयें सामने आती रही हैं। निर्वाचित प्रतिनिधि अफसरों पर वसूली के लिए दबाव डालते हैं और अफसर उनकी मांग को पूरा करने के लिए भ्रष्ट तंत्र का ​विस्तार करते हैं। भ्रष्टाचार नीचे से ऊपर तक चलता है।
कल्याणकारी योजनाओं में जनप्रतिनिधियों, सरकारी बाबुओं और दलालों के बीच पूरी तरह से सांठगांठ रहती है। आधार नम्बर को भ्रष्टाचार रोकने के लिए हथियार के तौर पर देखा गया लेकिन यहां भी नाम और फोटो को बदलकर फेरदबल चल रहा है। मरने वाले लोगों के नाम पर अनुदान राशि हड़पी जा रही है। जो जीवित हैं उनके साथ भी फर्जीवाड़ा चल रहा है। ऐसा एक राज्य में नहीं बल्कि कई राज्यों में हो रहा है। सरकारी योजनाओं की विफलता की जड़ में भ्रष्टाचार समाया हुआ है। अक्सर यह देखा जाता है कि विभिन्न कार्यक्रमों सहित अ​धिकांश सरकारी योजनाएं लक्षित लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाती। इसलिए यह योजनाएं जमीन पर कोई बड़ा प्रभाव डालने में​ विफल रहती हैं। विभिन्न कार्यक्रमों के लिए लाभार्थियों का चयन करते समय राजनीतिक सम्पर्क रखने वाले लोगों को प्राथमिकता दी जाती है। राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को लाभ पहुंचाने के लिए उनकी सिफारिशें करते हैं, जो लाभ के वास्तविक पात्र हैं उन्हें लाभ नहीं मिलता। ऐसा ही सामूहिक शादियों में हो रहा है। बेहतर यही है कि गरीब कन्याओं के विवाह में पारदर्शिता हो और दोषियों को दंडित किया जाए ताकि भविष्य में विवाह घोटाले न हो।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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