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वैज्ञानिकों ने जीती जिन्दगी बचाने की जंग

कोरोना महामारी के अंधकार में अब उम्मीद की किरणें आने लगी हैं और हर कोई ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि कोरोना वैक्सीन कामयाब हो और पूरे विश्व को कोरोना वायरस से मुक्ति मिल जाए।

04:12 AM Dec 05, 2020 IST | Aditya Chopra

कोरोना महामारी के अंधकार में अब उम्मीद की किरणें आने लगी हैं और हर कोई ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि कोरोना वैक्सीन कामयाब हो और पूरे विश्व को कोरोना वायरस से मुक्ति मिल जाए।

कोरोना महामारी के अंधकार में अब उम्मीद की किरणें आने लगी हैं और हर कोई ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि कोरोना वैक्सीन कामयाब हो और पूरे विश्व को कोरोना वायरस से मुक्ति मिल जाए। ​प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना पर सर्वदलीय बैठक को सम्बोधित करते हुए उम्मीद जताई है कि दो-तीन सप्ताहों में कोरोना की वैक्सीन तैयार हो जाएगी और वैज्ञानिकों की हरी झंडी मिलते ही उसका इस्तेमाल शुरू कर दिया जाएगा। एक तरफ पूरे विश्व की नजरें भारत पर लगी हुई हैं तो दूसरी ओर ब्रिटेन दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है जिसने फाइजर बायोएनटेक की कोरोना वायरस वैक्सीन को व्यापक इस्तेमाल की मंजूरी दी है। ब्रिटेन के स्वास्थ्य नियामक मेडिसिन एंड हैल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजैंसी ने बताया कि यह वैक्सीन कोरोना वायरस के संक्रमितों को 95 फीसदी तक ठीक कर सकती है और अगले हफ्ते से लांच किये जाने के लिहाज से यह सुरक्षित है। अमेरिका भी इसी माह 12 दिसम्बर से कोरोना वैक्सीन इस्तेमाल शुरू करने वाला है। यह दुनिया की सबसे तेजी से विकसित वैक्सीन है जिसे बनाने में दस महीने लगे। आमतौर पर ऐसी वैक्सीन के तैयार होने में एक दशक तक का वक्त लग जाता है।

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भारत में भी कोरोना वैक्सीन का अंतिम ट्रायल चल रहा है और एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने उम्मीद जताई है कि नए वर्ष में भारत को सुरक्षित वैक्सीन मिल जाएगी। फाइजर द्वारा तैयार की एमआरएनए वैक्सीन एक नई तरह की वैक्सीन है। जिसमें महामारी के दौरान इकट्ठे किए गए कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड के छोटे टुकड़ों को इस्तेमाल किया गया। यह जेनेटिक कोड के छोटे-छोटे टुकड़े शरीर के भीतर प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और मरीज के शरीर को कोरोना वायरस से लड़ने के ​लिए तैयार करते हैं। इससे पहले कभी इंसानों के इस्तेमाल के लिए एमआरएनए वैक्सीन को मंजूरी नहीं दी गई। हालांकि क्लिनिकल ट्रायल के दौरान लोगों को इस तरह की वैक्सीन के डोज दिए गए हैं। जब वैक्सीन इंसान के शरीर में इंजेक्ट की जाती है तो यह इम्यून सिस्टम को कोरोना वायरस से लड़ने के ​लिए एंटीबाॅडी बनाने और टी-सैल को एक्टीवेट कर संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए कहती है। अगर कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित होता है तो उसके शरीर में बनी एंटीबाॅडी और टी-सैल वायरस से लड़ने का काम करना शुरू कर देते हैं।
कुछ अन्य वैक्सीन परियोजनाओं पर अभी काम चल रहा है, जिन्हें लेकर माना जा रहा है कि उन्हें भी जल्द ही मंजूरी मिल सकती है। इनमें से एक मार्डना वैक्सीन है जिसमें फाइजर की तरह ही एमआरएनए तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। रूस पहले ही स्पूतनिक वैक्सीन का इस्तेमाल करने लगा है। इसके अलावा चीन की मिलिट्री ने एक वैक्सीन को मंजूरी दी है।
दुनिया में इससे पहले सबसे तेजी से वैक्सीन मम्पस बीमारी का खोजा गया था। यह वैक्सीन तैयार करने में वैज्ञानिकों को चार वर्ष का समय लगा था। वर्ष 2002-2003 के बीच जब सार्स महामारी फैली थी तो इससे दुनिया भर में 774 लोगों की जानें गई थीं तब सिनोवैक ने पहले चरण के ट्रायल शुरू कर ​दिए थे, लेकिन वह महामारी अचानक ही खत्म हो गई। हालांकि तब कम्पनी को वैक्सीन प्रोजैक्ट बंद करने से बड़ा नुक्सान हुआ था। अब जब कोरोना महामारी फैली तो कम्पनी ने फिर से अनुसंधान करना शुरू किया है। जहां तक भारत का सवाल है, लोगों को वैक्सीन का इंतजार है। अब सवाल इस बात का है कि सवा अरब की आबादी वाले देश में हर किसी को वैक्सीन मिलेगी या नहीं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि पूरे देश का टीकाकरण करने की जरूरत नहीं। टीकाकरण सीमित जनसंख्या का किया जाएगा। 
आईसीएमआर के महानिदेशक डाक्टर बलराम भार्गव ने कहा है कि सरकार का उद्देश्य वायरस की ट्रांसमिशन चेन को तोड़ना है। भारत में आबादी के उस हिस्से को, जिसकी कोरोना की चपेट में आने की ज्यादा आशंका है, वैक्सीन लगाकर कोरोना संक्रमण रोकने में कामयाब रहे तो शायद पूरी आबादी को वैक्सीन लगाने की जरूरत न पड़े। केन्द्र सरकार ने वैक्सीन की आपूर्ति का पूरा कार्यक्रम तैयार कर लिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि टीके के बावजूद लोगों को संक्रमण रोकने के ​नियमों का पालन करते रहना चाहिए। वैक्सीन आ जाने से भी लोगों को चिंता मुक्त नहीं होना चाहिए। लोगों का अपना आचार व्यवहार कोरोना से बचाव करने वाला ही होना चा​हिए। वैक्सीन की सहज उपलब्धता भारत जैसे बड़े देश में बड़ी चुनौती है। वैज्ञानिकों ने तो जिन्दगी बचाने की जंग जीत ली है। अब वैक्सीन की उपलब्धता का कार्यक्रम राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के साथ चलाने की जरूरत है। जिसे सुनियोजित ढंग से चलाया जाए तथा इससे केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित हो। साथ ही नागरिकों को भी इसके लिए जागरूक करने की जरूरत है। किसी भी तरह की लापरवाही से कोराेना संक्रमण लम्बे अर्से तक हमारे बीच रहेगा। संक्रमण से पूरी तरह मुक्त होने में अभी समय लगेगा। इसलिए लोग मास्क पहनना जारी रखें और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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