टॉप न्यूज़भारतविश्वराज्यबिजनस
खेल | क्रिकेटअन्य खेल
बॉलीवुड केसरीराशिफलSarkari Yojanaहेल्थ & लाइफस्टाइलtravelवाइरल न्यूजटेक & ऑटोगैजेटवास्तु शस्त्रएक्सपलाइनेर
Advertisement

‘गुपकर गैंग’ का गुप्त एजेंडा

जम्मू-कश्मीर में इस माह के अन्त में होने वाले जिला विकास परिषदों के चुनाव ने राष्ट्रीय रंग ले लिया है। देश के गृह मन्त्री श्री अमित शाह ने इस राज्य के बगावती तेवर रखने वाले क्षेत्रीय दलों के संगठन गुपकर गठबन्धन को जिस प्रकार चुनौती दी है उससे साफ है

01:01 AM Nov 18, 2020 IST | Aditya Chopra

जम्मू-कश्मीर में इस माह के अन्त में होने वाले जिला विकास परिषदों के चुनाव ने राष्ट्रीय रंग ले लिया है। देश के गृह मन्त्री श्री अमित शाह ने इस राज्य के बगावती तेवर रखने वाले क्षेत्रीय दलों के संगठन गुपकर गठबन्धन को जिस प्रकार चुनौती दी है उससे साफ है

जम्मू-कश्मीर में इस माह के अन्त में होने वाले जिला विकास परिषदों के चुनाव ने राष्ट्रीय रंग ले लिया है। देश के गृह मन्त्री श्री अमित शाह ने इस राज्य के बगावती तेवर रखने वाले क्षेत्रीय दलों के संगठन गुपकर गठबन्धन को जिस प्रकार चुनौती दी है उससे साफ है कि ये चुनाव मामूली चुनाव होने नहीं जा रहे हैं। श्री शाह ने नेशनल कान्फ्रेंस, पीडीपी, पीपुल्स कान्फ्रेंस, भाकपा व माकपा के इस गुपकर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने वाले गठबन्धन को ‘गुपकर गैंग’ या गिरोह  की संज्ञा देते हुए साफ कर दिया है कि राज्य में धारा 370 की बहाली के लिए चीन तक से मदद लेने की गुहार लगाने वाले इस गठबन्धन की मंशा को समझने की जरूरत है। उनके मत में लोग अब किसी भी कीमत पर देश हित के विरुद्ध बयानबाजी करने वाले नेताओं को क्षमा नहीं करेंगे। दरअसल कश्मीर में जिला परिषद के चुनाव बहुत मायने रखते हैं और इनका राजनीतिक महत्व भी दूरगामी होगा। धारा 370 के हटने से जम्मू-कश्मीर का दर्जा अर्ध राज्य का हो जाने के बाद गृह मन्त्रालय ने ही अहम फैसला करके इस क्षेत्र में त्रिस्तरीय पंचायत राज कायम करने की तरफ प्रभावी कदम उठाया और जिला परिषदों को सीधे अपने-अपने विकास की परियोजनाएं लागू करने के लिए अधिकृत किया। प्रत्येक जिले से निर्धारित चुनाव क्षेत्रों से परिषद के सदस्य चुने जायेंगे और वे अपने चेयरमैन का चुनाव करेंगे जिसके पास जिले के विकास की परियोजनाएं लागू करने का सीधा अधिकार होगा। इसे पंचायती राज व्यवस्था का एक नमूना भी समझा जायेगा।
 भारत में पंचायती राज कानून तो स्व. राजीव गांधी के कार्यकाल में बन गया था मगर इस पर बाकायदा अमल कानून की रुह की तर्ज पर शायद ही हो पाया। यह हकीकत है कि जब मनमोहन सरकार में श्री मणिशंकर अय्यर पंचायती राज मन्त्री बने थे तो उन्होंने लोकसभा में ही कहा था कि मूल परिकल्पना यह होनी चाहिए कि पंचायतों से लेकर जिला पंचायतें अपनी विकास परियोजनाओं का खाका योजना आयोग के पास भेजें जिस पर केन्द्रीकृत रूप में अमल हो। श्री अय्यर के कथन को तब व्यावहारिक कम और किताबी ज्यादा समझा गया मगर सुखद यह है कि भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में दलगत पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर लोकहित में निर्णय लेने की शक्ति समाहित होती है। अतः केन्द्र में भाजपा की सरकार ने ऐसा फैसला लिया जिसे गांधीवादी ग्रामीण स्वराज्य के दायरे में डाला जा सकता है। यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि गुपकर गठबन्धन के दलों ने अन्ततः जिला परिषदों के चुनाव में भाग लेने की घोषणा की। इससे यह पता चलता है कि बेशक ये दल जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा समाप्त किये जाने और धारा 370 को समाप्त किये जाने का पुरजोर विरोध कर रहे हों मगर भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली में इनका विश्वास है। इन दलों का मत कई मुद्दों पर राष्ट्रहित विरोधी लग सकता है क्योंकि पीडीपी की प्रमुख श्रीमती महबूबा मुफ्ती कह चुकी हैं कि वह तिरंगा तब तक नहीं उठायेंगी जब तक कश्मीर का झंडा वापस नहीं आ जायेगा और नेशनल कान्फ्रेंस के अध्यक्ष डा. फारूक अब्दुल्ला भी यह बयान दे चुके हैं कि धारा 370 की वापसी के लिए वह चीन की मदद से भी गुरेज नहीं करेंगे मगर एक तथ्य हमें यह भी समझना पड़ेगा कि इस गठबन्धन के नेता इसके साथ यह भी कह रहे हैं कि वे राष्ट्र विरोधी नहीं हंै, केवल भारतीय संविधान के आमूल स्वरूप की वापसी की मांग कर रहे हैं। इसमें इस हकीकत को वे नजरअन्दाज कर रहे हैं कि भारत की सर्वसत्ता सम्पन्न संसद के माध्यम से ही धारा 370 को समाप्त किया गया है।
वैसे दूसरी हकीकत यह भी है कि नेशनल कान्फ्रेंस व पीडीपी दोनों ही कभी न कभी राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस व भाजपा के साथ मिल कर राज्य में सत्ता में भागीदारी करती रही हैं। इनकी विचारधाराओं में तब से लेकर अब तक कोई अन्तर भी नहीं आया है मगर इन्हें अब यह स्वीकार करना ही होगा कि धारा 370 का वजूद समाप्त हो चुका है और यह बीते समय की बात हो चुकी है। जिला परिषदों के चुनावों में इन दलों ने शिरकत का ऐलान करके आंशिक रूप से ही सही इस हकीकत को मंजूर जरूर किया है वरना क्यों ये पार्टियां बदले हुए कश्मीर में चुनाव लड़ने के लिए तैयार होती? जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो वह इस गुपकर गठबन्धन की सदस्य पार्टी नहीं है बल्कि उसने जिला परिषद चुनाव लड़ने के लिए भाजपा के विरोध में इन दलों के साथ चुनावी समझौता करने की घोषणा की है। भारत की बहुदलीय लोकतान्त्रिक प्रणाली में राजनीतिक दल धुर विरोधी विचारधारा वाले दलों के साथ चुनावी गठबन्धन करते रहे हैं। इससे कोई भी राष्ट्रीय पार्टी नहीं बची है, बल्कि 1996 से देश में गठबन्धन की राजनीति का जो दौर शुरू हुआ है उसमें तो हर प्रमुख क्षेत्रीय दल सत्ता तक में भागीदारी इस प्रकार कर चुका है कि कम्युनिस्ट पार्टी के नेता स्व. इन्द्रजीत गुप्त गृह मन्त्री तक रहे थे।
दरअसल यह भारत की कमजोरी नहीं बल्कि इसकी सबसे बड़ी ताकत है कि सत्ता पर बैठते ही हर पार्टी की विचारधारा राष्ट्रीय विचारधारा हो जाती है। इसकी प्रेरणा हमारा संविधान ही सभी राजनी​तिक दलों को देता है। अतः वर्तमान गृह मन्त्री श्री शाह ने सभी राजनीतिक दलों के समक्ष चुनौती फैंकी है कि वे संविधान को सर्वोपरि मान कर राष्ट्रीय धारा में आकर मिलें और जिला परिषदों के चुनावों में कश्मीरी जनता के हितों को ही सर्वोच्च मानें क्योंकि धारा 370 के हटने से जम्मू-कश्मीर के लोगों को वे नागरिक अधिकार मिले हैं जो भारतीय संविधान ने समस्त देशवासियों को दिये हैं। गुपकर गठबन्धन को गैंग कहने का मन्तव्य यही लगता है कि भारतीय संघ में सम्मिलित सभी राज्यों के लोगों के अधिकारों को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता। सभी एक देश के नागरिक हैं और सभी के अधिकार बराबर हैं। अतः गुपकर गठबन्धन  का कोई गुप्त एजेंडा नहीं हो सकता।
Advertisement
Advertisement
Next Article