आत्मनिर्भर नारी शक्ति : विकसित भारत का गुणात्मक बल
हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस निकट आने पर महिला सशक्तिकरण पर चर्चा शुरू…
हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस निकट आने पर महिला सशक्तिकरण पर चर्चा शुरू हो जाती है। तब इस वैश्विक आयोजन के अर्थ और महत्व को पुनर्मूल्यांकित किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में महिला दिवस के अर्थ और इससे संबंधित गतिविधियां महिलाओं को सशक्त बनाने की हमारी समझ को नए सिरे से पुनर्भाषित करते हैं। इस विशेष दिवस को मनाने के अवसर पर महिला दिवस के गहरे अर्थ और इतिहास के साथ ही इसके वर्तमान महत्व को समझना आवश्यक है।
जब हम वैश्विक संदर्भ में महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, तो इसे विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक गतिशीलता की दृष्टि से देखना आवश्यक है। एक समय भारतीय महिलाओं को आम तौर पर तीसरी दुनिया की महिलाओं की श्रेणी में रखा जाता था। यह शब्द विश्व बैंक द्वारा गढ़ा गया है। विश्व बैंक ने तीसरी दुनिया की महिलाओं को सार्वभौमिक रूप से अनुत्पादक, आर्थिक रूप से निष्क्रिय, घरेलू और परंपराओं से जकड़ी, कौशलहीन और पुरुषों की तुलना में निम्न दर्जे के कार्य करने वाली के रूप में परिभाषित किया था।
तब से लेकर वर्तमान संदर्भ में, जब विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविड मालपास ने महिला सशक्तिकरण के लिए भारत सरकार के प्रयासों की सराहना की तो यह जैसे अवास्तविक सा लगता है। अब वास्तविकता यह है कि भारत अब सक्रियता से हर रूढ़िवादिता को समाप्त कर नई इबारत लिख रहा है जो कभी भारतीय महिलाओं को परिभाषित करती थी। अब भारतीय महिलाओं के लिए प्रगति, स्वतंत्रता और आर्थिक सहभागिता के उदाहरण दिए जा रहे हैं।
भारतीय परिदृश्य में पिछले एक दशक में महिला सशक्तिकरण की अवधारणा को अलग तरह से देखा-समझा जाने लगा है। यह उल्लेखनीय बदलाव तब हुआ जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महिलाओं के विकास से महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास की ओर विमर्श को आगे बढ़ाया। इसके बाद सरकार के नीति-निर्माण और शासन दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव आ गया है। उदाहरण के लिए, जब सरकार के पीएम आवास के फैसले में 70 प्रतिशत से अधिक घरों का स्वामित्व महिलाओं को दिया गया तो भारतीय महिलाओं में स्वामित्व अधिकार और उत्थान के साथ-साथ सुरक्षा की भावना भी आई और वास्तविक अर्थों में इससे वे सशक्त हुईं।
सरकार ने सबसे पहले भारतीय महिलाओं की अशक्तीता दूर करने पर ध्यान केंद्रित किया। सरकार ने महिला कल्याण-केंद्रित नीतियों को आगे बढ़ाते हुए उनकी सुरक्षा, सम्मान और बुनियादी आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी। स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालयों का प्रावधान और जल जीवन मिशन के तहत पेय जल कनेक्शन जैसी पहल ने उन्हें न केवल बड़ी राहत दी बल्कि करोड़ों महिलाओं के सम्मान को फिर से बहाल किया और वे अब अधिक स्वस्थ और सुरक्षित जीवन जी पा रही हैं।
महिलाओं की इन मूलभूत आवश्यकताएं पूरी करने के बाद सरकार ने एजेंसी-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया जो महिलाओं को उनकी क्षमता उजागर करने के लिए सशक्त बनाता है। महिलाओं को भविष्य के दायित्व उठाने में सक्षम बनाने में यह बदलाव बेहद महत्वपूर्ण रहा है। महिलाओं के संदर्भ में प्रभावशाली निर्णय की यह तो शुरुआत है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में अधिकांश भारतीय महिलाओं के योगदान को समझते हुए सरकार ने उनके क्षमतावर्धन के लिए कई पहल की हैं। चाहे स्वीकृत मुद्रा ऋणों का 68 प्रतिशत महिला उद्यमियों को वितरित करना हो जिससे सरकार महिला उद्यमियों का एक बड़ा समूह खड़ा कर रही है या स्टैंड-अप इंडिया कार्यक्रम हो जिसके लाभार्थियों में 77.7 प्रतिशत महिलाएं हैं।
महिलाओं के नेतृत्व में ग्रामीण समृद्धि को रेखांकित करते हुए सरकार देश में 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को 90.87 लाख स्वयं सहायता समूहों में संगठित कर रही है। इन कदमों ने पहले से ही कई गुना प्रभाव दर्शाना आरंभ कर दिया है। ये पहल महिलाओं के आत्मसम्मान, व्यक्तित्व विकास और अर्थव्यवस्था में उनका योगदान तेजी से बढ़ा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी में भी बढ़ोतरी हो रही है। यह 2017-18 में 24.6 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में अब 47.6 प्रतिशत हो गई है। इसके अलावा लखपति दीदियों को वित्तीय स्वतंत्रता, सशक्तिकरण और नेतृत्व के रोल मॉडल के तौर पर देखा जा रहा है जो अपने समुदायों की अन्य महिलाओं को अपने समान बनने के लिए प्रेरित कर रही हैं। स्टार्टअप आरंभ करने से लेकर रोजगार प्रदान करने तक, महिला उद्यमी अब आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की दिशा में उल्लेखनीय भूमिका निभा रही हैं। सरकार ने महिला उद्यमियों के लिए व्यवसाय सुगमता बेहतर बनाने में सफलतापूर्वक सहयोग दिया है। इससे महिला उद्यमियों को स्वयं को सशक्त बनाने के साथ ही जमीनी स्तर पर रोजगार के व्यापक अवसर उत्पन्न करने में काफी मदद मिली है। यह इस तथ्य से परिलक्षित होता है कि भारत में लगभग आधे स्टार्टअप्स में कम से कम एक महिला निदेशक शामिल है।
महिला दिवस का असली सार केवल इसके नुमाइशी आयोजनों से कहीं बढ़कर है। यह जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं के समग्र विकास का मंत्र देता है। अब भारत में हर दिन महिला दिवस है क्योंकि यहां महिलाएं विकास यात्रा का नेतृत्व कर रही हैं और नए क्षितिज का विस्तार कर रही हैं। अंतरिक्ष अन्वेषण हो या खेल का मैदान, या हो व्यवसाय, भारतीय महिलाएं हर वर्जनाओं-बाधाओं को तोड़ कर नए कीर्तिमान रच रही हैं जिससे देश गौरवान्वित हो रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अब नारी शक्ति सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रही है और महत्वपूर्ण प्रगति कर रही है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, 88 प्रतिशत से अधिक महिलाओं की अब अहम घरेलू निर्णयों में सक्रिय भूमिका होती है।
वर्तमान सरकार द्वारा आरंभ किए गए प्रगतिशील सुधारों ने महिलाओं को राष्ट्र के साथ ही घरेलू स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी अग्रणी बना दिया है। इसी कड़ी में नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तहत संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण सरकार का एक और सराहनीय कदम है। अभी जमीनी स्तर पर ग्रामीण स्थानीय निकायों में 46 प्रतिशत निर्वाचित प्रतिनिधि महिलाएं हैं जो स्थानीय शासन में उनकी बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
प्रधानमंत्री मोदी की भविष्यी दृष्टि के अनुरूप, अब महिलाएं राष्ट्रीय स्तर पर नीति निर्माण और शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को तैयार हैं। यह विकास क्रम निर्णायक बदलाव है, जो सुनिश्चित करता है कि नारी शक्ति 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को आगे बढ़ाने में केंद्रीय भूमिका निभाएगी।