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आप्रेशन ब्लू स्टार के बारे में सनसनीखेज खुलासा : जब संत भिंडरावाले की मृतक देह का पोस्टमार्टम करने को डॉक्टरों की कोई टीम तैयार नहीं हुई

34 साल पहले 5 जून 1984 को पंजाब के दोआबा और माझा क्षेत्र के 25 डॉक्टरों को आप्रेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना के हाथों श्री हरमंदिर साहिब में मारे गए

09:18 PM Nov 10, 2018 IST | Desk Team

34 साल पहले 5 जून 1984 को पंजाब के दोआबा और माझा क्षेत्र के 25 डॉक्टरों को आप्रेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना के हाथों श्री हरमंदिर साहिब में मारे गए

लुधियाना-जालंधर : 34 साल पहले 5 जून 1984 को पंजाब के दोआबा और माझा क्षेत्र के 25 डॉक्टरों को आप्रेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना के हाथों श्री हरमंदिर साहिब में मारे गए सिखों की लाशों का पोस्टमार्टम करने के लिए सिविल अस्पताल अमृतसर में सैनिक गाडिय़ों में बिठाकर ले जाया गया। ठीक सुबह 9 बजे जब वे मोचरी में पहुंचे जो मारे गए लोगों की लाशें टेक्टर- ट्रालियों में भरकर लाई जा रही थी और एक ट्राली में 25 से 30 व्यक्तियों की खून से लथपथ लाशें लादकर आ रही थी। उस वक्त समस्त पंजाब में करफयू घोषित था और अमृतसर के चारों तरफ सुनसान और वीरानगी छाई हुई थी।

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ट्रालियों में लदकर लाई गई लाशें देखकर चारों तरफ मातम छाया हुआ था और सख्त सैनिक पेहरा भी लगा हुआ था। यह सनसनीखेज खुलासा आज कपूरथला के सिविल अस्पताल में आंखों के प्रसिद्ध डॉ. के सेवानिवृत हुए जो उस वक्त लाशों का पोस्टमार्टम करने वाली टीम का हिस्सा थे। डॉ जेएस वधवा ने अपनी किताब ‘आटो बायोग्राफी आफ एन अननोन डॉक्टर’ के विमोचन समारोह में पत्रकारों से बातचीत करते किया। डॉ वधवा ने बताया कि उनकी टीम ने लगातार 3 दिन, दिन-रात 500 के करीब लाशों का चीरफाड़ किया।

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पहले दिन आई ट्रालीयों की लाशों में जनरल शबेक सिंह और भाई अमरीक सिंह की लाश भी थी। जिनको कई डॉक्टरों ने पहचान लिया था लेकिन अधिकृत तौर पर किसी भी लाश की पहचान नहीं बताई जा रही थी। प्रत्येक लाश के माथे पर सिर्फ उसका नंबर ही पहचान थी और नाम व पते वाली लाइनों में डॉक्टर भी लाश का न. ही दर्ज कर रहे थे। जबकि बाकी लाशों वाली ट्रालियां बाहर ही तरतीबवार खड़ी की हुई थी।

डॉ वधवा ने बताया कि उन्हें हिदायतें थी कि लाशों का पोस्टमार्टम नहीं करना और ना ही बिसरा या अन्य कोई अंग लेने है। बस केवल गोलियों के निशान आधी की शिनाख्त और ब्यौरा ही दर्ज करने है। बाकी लाइनों में सिर्फ कोई विशेष नहीं लिखना है। उन्होंने बताया कि उस दिन वह मोचरी के बाहर खड़े बातें कर रहे थे कि एक लाश ट्रक में भरी सेना के सख्त पहरे में लाई गई तो बाद में पता लगा कि यह मृतक देह संत जरनैल सिंह भिंडरावाले की है। उसको एक कमरे में रखा गया, जबकि अन्य लाशें ट्राली में से उतारकर जमीन पर ही तरतीबवार रखी हुई थी।

किताब में लिखा है कि अगले दिन जब संत भिंडरावाले की मृतक देह का पोस्टमार्टम करना था तो विवाद खड़ा हो गया और बाद में कारवाही होने के डर से अमृतसर टीम का कोई भी डॉक्टर पोस्टमार्टम करने के लिए तैयार नहीं था और वह कह रहे थे कि किसी अन्य जिलों के डॉक्टरों से पोस्टमार्टम करवाएं जाएं। अन्य जिलों के डॉक्टरों ने भी पोस्टमार्टम करने से इंकार कर दिया। आखिर में मामला स्वास्थ्य विभाग के निर्देशक के पास पहुंचा तो उन्होंने अमृतसर के ही डॉक्टर की डयूटी पोस्टमार्टम करने के लिए लगवाई।
डॉ वधवा ने कहा कि यह सनसनी दृश्य लंबा वक्त उनकी आंखों के आंखें बार-बार सवाल बनकर आता रहा है। डॉॅ वधवा ने अपनी आत्मकथा में लंबा सरकारी सेवा के दौरान अनेकों घटनाएं सांझी करते अपनी चार बहनों के साथ देश के बटवारे के दौरान उजडक़र इधर पंजाब के अलग-अलग कैम्पों में धक्के खाने के बाद आखिर जालंधर में आकर स्थाई तौर पर रहने का ब्यौरा भी दर्ज किए है। करीब 2 साल पहले बिछुडक़र जीवन संगनी जसबीर कौर के शब्द उनके कनकन में झलकते है और आत्मकथा में उन्होंने अपनी उधेड़बुन को काफी बारीकी और बेबाकी के साथ पेश किया है। किताब रिलीज करते वक्त उनके साथी रहे डॉक्टर सतमहाजन, डॉ जसबीर सिंह, डॉ सुरजीत कौर और सेवामुक्त डी. पी. आर ओ संत कुमार जुनेजा विशेष तौर पर उपस्थित थे।

– सुनीलराय कामरेड

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