Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

अपमान की गुस्ताखी पर गंभीर सवाल

05:30 AM Oct 14, 2025 IST | विजय दर्डा

पिछले सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में जो कुछ भी हुआ, वह एक बेहद शर्मनाक पल था। भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी. आर. गवई के सम्मान में एक वकील ने जो गुस्ताखी की वह क्या केवल एक व्यक्ति का धर्मांध भावावेग था या फिर एक ऐसी मानसिकता जो हमारे सामाजिक ताने-बाने के लिए गंभीर संकट बनती जा रही है? ये घटना इतनी व्यथित करने वाली है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद गवई साहब से बात की। घटना के बारे में आप सब जानते हैं कि 71 साल की उम्र के एक वकील राकेश किशोर ने प्रधान न्यायाधीश की तरफ अपना जूता उछालने की कोशिश की। सुरक्षाकर्मी सजग थे। उसे पकड़ लिया गया। अपनी इस ओछी हरकत को सही ठहराते हुए उसने कहा- सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान! यानी ये स्पष्ट है कि उसकी मानसिकता क्या है! लेकिन मुद्दे की बात यह है कि प्रधान न्यायाधीश ने किसी की भावना को ठेस पहुंचाया ही नहीं है। उन्होंने खुद कहा है कि वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। हुआ यह था कि खजुराहो के जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की सात फीट ऊंची मूर्ति है जिसके हाथ, पैर और धड़ तो सही सलामत है लेकिन मूर्ति का सिर नहीं है। एक व्यक्ति ने मूर्ति के सिर के पुनर्निर्माण के लिए याचिका दायर की। आमतौर पर पुरातत्व विभाग किसी भी ऐतिहासिक मूर्ति को उसी स्वरूप में रखता है जिस स्वरूप में वह मिली हो।

भगवान विष्णु की मूर्ति का सिर बनाने की याचिका को विशुद्ध रूप से प्रचार के लिए दायर याचिका करार देते हुए न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की खंडपीठ ने निरस्त कर दिया था और कहा था कि प्रतिमा जिस स्थिति में है, उसी में रहेगी। न्यायालय ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को यदि शैव धर्म से परहेज नहीं है तो वह शिव मंदिर में जाकर पूजा कर सकता है। इसी घटना के बाद प्रधान न्यायाधीश को बेबुनियाद तरीके से कोट करते हुए कुछ धर्मांध यूट्यूबर्स ने अभियान चला दिया। एक यूट्यूबर ने तो ऐसी-ऐसी बातें लिखीं और कहीं कि हम उन बातों का जिक्र भी यहां नहीं करना चाहेंगे। इतना ही नहीं, जब न्यायालय में राकेश किशोर नाम के वकील ने ओछी हरकत की तो उसके बाद अजीत भारती नाम के इसी यूट्यूबर ने और भी ओछी बातें लिखीं और यहां तक लिख दिया कि अभी तो यह बस शुरूआत है। धमकी देने के उद्देश्य से उसने एक पौराणिक प्रसंग का जिक्र भी किया था। अजीत भारती ने तो प्रधान न्यायाधीश की कार को घेरने का भी सुझाव सोशल मीडिया पर दिया था। हिंदू कैफे नाम का संगठन चलाने वाले कौशलेश राय ने भी प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ खुलकर आग उगली है और धमकी भी दी है। उसने अपने पोस्ट में वकीलों को हिंसा के लिए प्रेरित करने वाले वाक्य भी लिखे।

सबसे आश्चर्य की बात यह है कि सोशल मीडिया पर गवई साहब के खिलाफ उद्दंडता होती रही और हमारी प्रशासनिक व्यवस्था ने कोई कदम नहीं उठाया। मैं मानता हूं कि लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की आजादी किसी का भी संवैधानिक अधिकार है लेकिन सवाल यह है कि किसी को भी धमकी देने की आजादी नहीं दी जा सकती है, जब प्रधान न्यायाधीश को सोशल मीडिया पर खुलेआम धमकी दी जा रही हो और शासन-प्रशासन के किसी अधिकारी की नजर ही न पड़े तो संदेह होना स्वाभाविक है और यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि गवई साहब के अपमान की कोशिश उसी का नतीजा है। एक सोची-समझी साजिश है, यदि समय रहते अजीत भारती और कौशलेश राय जैसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो जाती तो राकेश किशोर जैसे किसी व्यक्ति की ऐसी हिम्मत ही नहीं होती। न्यायालय और न्यायाधीशों को दबाव में लाने की कोशिशें दुनिया के दूसरे देशों में भी होती रही हैं।

मैक्सिको में ड्रग्स कार्टेल ने न्यायतंत्र को भयभीत करने की बहुत कोशिश की, अब हालात सुधरे हैं क्योंकि सरकार ने सख्त रवैया अपनाया है। पाकिस्तान में जनरल मुशर्रफ ने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश को डराने की बहुत कोशिश की, अभी आपने अमेरिका में देखा कि ट्रम्प ने किस तरह कोर्ट को दबाव में लाने की कोशिश की। मेरा मानना है कि गवई साहब पर हमले की यह कोशिश हमारे न्यायतंत्र को भयभीत करने की कोशिश है। धर्मांधता का पहला सिद्धांत ही भय है, ऐसे लोग यह सोचते हैं कि उनकी सोच ही सही है और उस पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया जाना चाहिए, ऐसे तत्वों पर समय रहते अंकुश बहुत जरूरी है, मगर ऐसे लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि भारतीय न्यायतंत्र निडर भी है और शालीनता से परिपूर्ण भी है। आप इस बात पर गौर करिए कि इतनी बड़ी घटना के बाद भी गवई साहब पूरी तरह शांत बने रहे और न्यायालयीन प्रक्रिया को सुचारु रखा। यह उनकी निडरता और संवेदनशीलता का परिचायक है। उनके पिता आर.एस. गवई सांसद और राज्यपाल रहे और मां कमला गवई भी अत्यंत विचारवान महिला हैं। हमारे प्रधान न्यायाधीश गवई साहब को ये निडरता और संवेदनशीलता माता-पिता से मिली है। सामाजिक उपेक्षा को उन्होंने बचपन से महसूस किया है। वे जरूर सोच रहे होंगे कि जूता फेंकने की कोशिश करने वाले की मानसिकता कितनी संकीर्ण है और अंत में एक बार फिर कहना चाहूंगा कि न्यायतंत्र को डराने की हर कोशिश का हम प्रतिरोध करते हैं। हम सभी भारतीयों को अपने प्रधान न्यायाधीश पर गर्व है। उनका असम्मान हम कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते।

Advertisement
Advertisement
Next Article