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संघ-भाजपा के रिश्तों पर बदगुमानियों की छांव

04:00 AM Jun 16, 2024 IST | Rahul Kumar Rawat

‘अपने रोशन सवेरों को बुझाकर
मैंने तेरी चमकती शामें सजायी हैं
तेरी महफिल में हम भी तो थे, पर तू तो किसी और की नजरों में समायी है’

क्या संघ और भाजपा के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा? नहीं तो अब से पहले सोशल मीडिया पर कब संघ को इस तरह से कभी घेरा गया, वह भी भगवा आस्थाओं से लैस ‘डिजिटल आर्मी’ द्वारा। संघ की मंशाओं और भाजपा को लेकर उसकी ​िनष्ठाओं का क्या कभी इस कदर पोस्टमॉर्टम हुआ है? खास कर जब से मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है संघ भाजपा पर किंचित हमलावर नज़र आ रहा है। वहीं सोशल मीडिया पर संघ में दो फाड़ की ख़बरें भी सुर्खियां बटोर रही हैं। कहते हैं संघ नेताओं का एक तबका भाजपा के पक्ष में कदमताल कर रहा है, इन नेताओं में शामिल हैं दत्तात्रेय होसबोले, सुरेश सोनी और अरुण कुमार।

वहीं कृष्ण गोपाल और इंद्रेश कुमार जैसे नेता संघ प्रमुख भागवत के पक्ष में अलख जगा रहे हैं। संघ के मान्य संविधान के अनुसार यह सर संघचालक की इच्छा पर निर्भर है के वो कब तक अपने शीर्ष पद पर बने रहना चाहते हैं, उन्हें किसी दबाव में पद छोड़ने को मजबूर नहीं किया जा सकता। जब राम मंदिर का ‘प्राण प्रतिष्ठा समारोह’ अयोध्या में आहूत था तो भागवत इस विषय में बात करना चाहते थे जो हो न सकी। इसके बाद ही भागवत का चर्चित बयान सामने आया है जिसमें उन्होंने कहा,‘राम मंदिर अब बन गया है, पर इसका यह अर्थ नहीं कि समाज के अन्य वर्गों की उपेक्षा की जाए।’ अभी ताजा-ताजा इंद्रेश कुमार का वह चर्चित बयान भी सुर्खियां बटोर रहा है जिसमें भाजपा को मिली 240 सीटों को उन्होंने इसे अहंकार से जोड़ दिया है। यह मामला यहीं नहीं थमा और आरोप-प्रत्यारोप का कारवां आगे बढ़ता रहा जिसकी परिणति इंद्रेश कुमार के बयान के रूप में सामने आयी। पर इस प्रकरण से एक व्यक्ति को फायदा हो गया वह हैं योगी आदित्यनाथ। भाजपा नेतृत्व यूपी में खराब प्रदर्शन का ठीकरा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर फोड़ना चाहता था इस बाबत नए नेता की खोज भी जारी थी, पर योगी के सितारे बलवती हो गए और संघ का साथ योगी को मिल गया और आज संघ योगी के पीछे मजबूती से खड़ा है।

नीतीश की नई सियासी खिचड़ी

जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार सियासी शह-मात के उस्ताद बाजीगरों में शामिल रहे हैं। पिछले दिनों जब वे एनडीए की बैठक में शामिल होने के लिए पटना से दिल्ली आ रहे थे तो उसी फ्लाइट में राजद नेता तेजस्वी यादव से खूब घुल-मिल कर बतियाते नज़र आए। कहते हैं सोशल मीडिया में यह वीडियो नीतीश के सौजन्य से ही लीक हुआ था ताकि भाजपा पर दबाव बना रहे। रही बात जदयू को ‘मत्स्य पालन’ जैसा लचर मंत्रालय मिलने का, तो यह सब नीतीश की सहमति से ही हुआ। वे लल्लन सिंह को कोई भारी-भरकम मंत्रालय देकर अपने लिए एक और आरसीपी सिंह नहीं खड़ा करना चाहते थे।
कहते हैं दिल्ली आकर नीतीश ने पीएम मोदी को यह भी याद दिलाया कि उनसे वादा हुआ था कि बिहार विधानसभा चुनाव भी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के साथ करा लिए जाएंगे। पर जिस तरह चुनाव आयोग ने आनन-फानन में उपचुनावों की घोषणा कर दी है कम से कम उससे तो ऐसा नहीं दिखता है। लगता है कि बिहार विधानसभा चुनाव नियत समय यानी 2025 में ही होंगे। जब पूरे मीडिया में नीतीश कुमार को ‘किंगमेकर’ के तौर पर दिखाया जा रहा था, ऐसे में बिहार के डिप्टी सीएम विजय सिन्हा का एक बयान सामने आता है जिसमें वे साफगोई से कहते नज़र आते हैं कि ‘देश में कोई ‘किंगमेकर’ नहीं है’ यानी एक तरह से नीतीश को यह इशारा दिया गया कि वे अपनी हद में रहे। क्या इतफाक है कि इसके तुरंत बाद इसी गुरुवार की सुबह-सुबह राजद नेता तेजस्वी यादव ‘जॉगिंग’ करते-करते हाफ पैंट में चचा नीतीश से मिलने उनके घर पहुंच जाते हैं। इस मुलाकात की पहले से किसी को कोई सूचना ही नहीं थी। क्या नीतीश कोई नई सियासी खिचड़ी पकाने में जुट गए हैं।

आखिर अजित पवार की मजबूरी क्या है?

पिछले दिनों एक प्रमुख मराठी दैनिक के संपादक अजित पवार से मिलने उनके घर पहुंचे और उनके इस निर्णय की हौसला अफजाई करते हुए कहा कि कम से कम पीएम के समक्ष उन्होंने अपना ‘स्टैंड’ रखा और अपनी पार्टी के लिए एक कैबिनेट मंत्री पद की मांग की। संपादक महोदय ने अजित पवार से यह भी कहा कि ‘आपने अच्छा किया जो अपनी पार्टी के लिए राज्य मंत्री का ऑफर ठुकरा दिया।’ कहते हैं इस पर अजित पवार ने बड़े दुखी मन से कहा कि ‘क्या खाक अच्छा फैसला किया। देखिए प्रफुल्ल पटेल ने पिछले दिनों अपने सारे काम करवा लिए और जांच एजेंसियों के सारे मामले रफा-दफा हो गए हैं। वहीं उनके पास चुनाव के दौरान ही ईडी का एक नोटिस आ गया, जब चुनाव नतीजे घोषित हो गए तो उन्हें ईडी का दूसरा नोटिस सर्व हुआ। अब भाजपा उन्हें कितना भाव दे रही है यह आप उन नोटिस से ही समझ सकते हैं।’

क्या करें फड़णवीस

महाराष्ट्र में भाजपा के खराब प्रदर्शन का ठीकरा जब देवेंद्र फड़णवीस के सिर फूटा तो उन्होंने आनन-फानन में अपने डिप्टी सीएम पद से इस्तीफा केंद्रीय नेतृत्व को सौंप दिया। फिलहाल, उनका यह इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ और उन्हें अपने पद पर बने रहने को कहा गया। इसके तुरंत बाद फड़णवीस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, जब उनके एक परम मित्र और मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष 47 वर्षीय अमोल काले का अचानक से निधन हो गया। काले टी-20 विश्व कप में भारत-पाकिस्तान मैच देखने के बाद न्यूयार्क के एक होटल में ठहरे थे जहां उन्हें दिल का दौरा पड़ा और डाक्टर उन्हें बचा नहीं पाए। नागपुर के रहने वाले अमोल काले की गिनती बड़े बिजनेसमैन में होती थी, देवेंद्र फड़णवीस से उनकी काफी घनिष्ठता थी। सूत्रों की मानें तो देवेंद्र का सारा आर्थिक तंत्र काले संभालते थे। सो, काले का यूं अचानक जाना फड़णवीस के लिए एक निजी क्षति मानी जा रही है।

क्या होगा पांडियन का ?

नवीन पटनायक के कभी ‘ब्ल्यू आईड ब्याय’ रहे तमिलनाडु के पूर्व आईएएस अफसर वी.के. पांडियन ने चुनाव में मिली बीजेडी की करारी हार के बाद सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया है। सूत्रों की मानें तो जैसे ही ओडिशा विधानसभा और लोकसभा के चुनावी नतीजे आने शुरू हुए तो बीजद के कार्यकर्ताओं-नेताओं की बड़ी भीड़ ने पांडियन के घर को चारों ओर से घेर लिया और उनके घर पर पत्थरबाजी शुरू हो गई। पांडियन को इस बात की आशंका पहले से ही थी सो, उन्होंने एहतियातन कहीं पहले ही अपनी पत्नी और बच्चों को दुबई भेज दिया था। सूत्र बताते हैं कि इसके बाद पांडियन भी चुपके से दुबई के लिए निकल गए। दुबई पहुंच कर 4 दिनों तक उन्होंने अपना फोन बंद रखा। पांचवें दिन जैसे ही उन्होंने अपना फोन ऑन किया तो हैरान-परेशान नवीन पटनायक का फोन आ धमका। कहते हैं नवीन ने उनसे बस इतना ही कहा कि ‘पार्टी का सारा पैसा लेकर तुम दुबई भाग गए।’ पांडियन ने इसके बाद सफाई देनी चाही। वे दुबई से लौट कर वापिस भी आए, पर भुवनेश्वर की बजाए चैन्नई में जा उतरे। सूत्र बताते हैं कि पांडियन ने चैन्नई में अपने लिए एक आलीशान बंगला खरीदा है। यह वही बंगला है जिस पर वहां के सीएम स्टालिन की नज़र भी थी, पर पांडियन ने इससे महंगी कीमत देकर उसे खरीद लिया। अब पांडियन लगातार अपने संकट मोचक अश्विनी वैष्णव के संपर्क में हैं वे जानते हैं कि उन्हें इस मुसीबत से बस वही उबार सकते हैं।

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