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शाह ने गैस सब्सिडी छोड़ने के मोदी के आह्वान की तुलना शास्त्री जी के आह्वान से की 

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07:16 PM Feb 05, 2018 IST | Desk Team

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नयी दिल्ली : भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने गरीबों के हित में अमीरों से गैस सब्सिडी छोड़ने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के भारत पाक युद्ध के समय देशवासियों से सप्ताह में एक दिन शक्कर नहीं खाने के आह्वान से की। राज्यसभा में आज राष्ट्रपति के अभिभाषाण पर धन्यवाद प्रस्ताव पेश करते हुये शाह ने केन्द्र सरकार के कामों की जनता में स्वीकार्यता के पीछे सरकार की सदिच्छा को मुख्य वजह बताते हुये इसकी तुलना शास्त्री जी से की। शाह ने सरकार की साफ मंशा का हवाला देते हुये कहा ‘‘वोटबैंक की राजनीति के चलते देश में किसी को कुछ छोड़ने के लिये कहना मुश्किल हो गया था, इतिहास में जाकर देखें तो अंतिम घटना लालबहादुर शास्त्री जी की है जब उन्होंने पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय कहा था कि देश में चावल नहीं है और लोग सप्ताह में एक दिन सोमवार को उपवास करें और सभी लोगों ने उनकी अपील का सम्मान रखा था। शास्त्री जी के बाद पहली बार इस तरह की हिम्मत मोदी जी ने दिखाते हुये सम्पन्न लोगों से गैस सब्सिडी छोड़ने का आह्वान किया।’’

शाह ने कहा कि उन्हें यह बताते हुये खुशी है कि 1.3 करोड़ लोगों ने प्रधानमंत्री के आह्वान का सम्मान करते हुये गरीबों के हित में अपनी गैस सब्सिडी छोड़ दी। इतना ही नहीं इससे बचे पैसे में कुछ और पैसा मिलाकर उज्ज्वला योजना शुरू की। शाह ने कहा कि इस योजना में पांच करोड़ महिलाओं को पांच साल में गैस सिलेंडर देने के लक्ष्य में से अब तक साढ़े तीन करोड़ महिलाओं को गैस सिलेंडर दे दिये गये और लक्षित संख्या में इजाफा कर आठ करोड़ तक किया। योजना के लाभार्थियों में 30 प्रतिशत महिलायें अनुसूचित जनजाति और 13 प्रतिशत महिलायें अनुसूचित जाति की हैं। शाह ने लगभग सवा घंटे के अपने भाषण में कांग्रेस के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों के कार्यो का जिक्र करते हुये तारीफ की। उन्होंने लालबहादुरी शास्त्री के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने के फैसले को ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा ‘‘इदिरा जी का भाषण था कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों के दरवाजे गरीबों के लिये खुल गये हैं।’’ महज राष्ट्रीयकरण को नाकाफी बताते हुये शाह ने कहा कि इतने मात्र से बैंकों के दरवाजे गरीबों के लिये नहीं खुले क्योंकि न तो गरीबों के पास बैंक खाते थे न उन्हें कर्ज मिलता था। उन्होंने कहा कि मुद्रा बैंक के जरिये साढ़े दस करोड़ लोगों के खाते खुल गये है जिनके माध्यम से युवाओं को दस लाख रुपये तक का कुल साढ़े चार लाख करोड़ रुपये लोन दिया जा चुका है।

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