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शंकराचार्य : आदि से अंत तक

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10:54 PM Mar 01, 2018 IST | Desk Team

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धर्म विशुद्ध सात्विक मापदंडों के आधार पर अगर केवल धारण करने योग्य गुणों का परिचायक माना जाए तो एक धार्मिक व्यक्ति सदा ही पूज्य और नमनीय है। क्षमा, परोपकार, करुणा, दया ये वास्तव में धारण करने योग्य हैं और संभवतः धार्मिक मर्यादा और धार्मिक मूल्य हर युग में सर्वोपरि रहे हैं। धर्म एक कालजयी शब्द है, अतः यह शाश्वत है। धर्म और युग धर्म में परन्तु फर्क है। परिस्थितियों और परिवेश के कारण धर्म और युग धर्म में फर्क नज़र आता है, परन्तु आत्मिक रूप से दोनों एक ही हैं। सदियों से हम यह देखते आए हैं कि जो व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र धर्मविहीन हो जाता है, अधार्मिक हो जाता है, वह विनष्ट हो जाता है। वैदिक धर्म को कई बार खतरों का सामना करना पड़ा परन्तु छठी सदी में कुमारिल भट्ट आैर आदि शंकराचार्य जैसे मनीषियों ने धर्म की ध्वजा को संभाले रखा। आदि शंकराचार्य ने अपने समय में चार मठों की स्थापना की। आदि शंकराचार्य का जीवन हम पढ़ते हैं तो अभिभूत हो जाते हैं। आदि शंकराचार्य की परम्परा का निर्वाह करने वाले तमिलनाडु स्थित हिन्दू धर्म के सबसे अहम और ताकतवर कांची पीठ के पीठाधीश्वर शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती का महाप्रयाण धर्म जगत को बड़ा आघात है। एक संत के साथ-साथ उनकी छवि एक समाज सुधारक की थी।

उन्होंने रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ा आैर मठ की गतिविधियों का विस्तार समाज कल्याण, विशेष रूप से दलितों की शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कार्यों तक किया। पहले उनका मठ कांचीपुरम और राज्य के भीतर तक सीमित था। उनका आंदोलन समाज के सबसे निचले स्तर पर खड़े लोगों को मदद पहुंचाने के लिए था। वह मठ को उत्तर पूर्वी राज्यों तक लेकर गए। वहां उन्होंने स्कूल और अस्पताल शुरू किए। पहले मठ सिर्फ आध्यात्मिक कार्यों तक सीमित होता था। उन्होंने मठ को सामाजिक कार्यों से जोड़ा। उनके मतभेद उन लोगों के साथ थे जो मठ को रूढ़िवादी ढंग से चला रहे थे। हिन्दू धर्म के पारंपरिक मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांतों को मजबूत बनाने में उनके योगदान की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है। नियम, संयम, अनुशासन आैर धर्म की डोर से बंधा संन्यासी दिन-रात बस यही सोचा करता था कि देश, धर्म आैर मानव का उत्थान और सेवा किस तरह की जाए।

वर्तमान में कांची मठ की 400 से अधिक संस्थाओं से पूरे देश में और विशेष रूप से तमिलनाडु में लोक कल्याणकारी कार्यों की शृंखला निर्माण करते समय उन्होंने वेद विद्या, बाल संस्कार, वनवासी सेवा, विपन्न सेवा, कृषि, पशु संर्वधन, चित्रकला, संगीत इत्यादि कला, स्वास्थ्य एवं शिक्षा संस्थान जैसे सेवा कार्यों को आरंभ किया। उनके अधिकांश शिक्षा संस्थानों में सूचना प्रौद्योगिकी को विशेष महत्व दिया गया। मुझे इस बात का हमेशा दुःख रहा कि ऐसे संत व्यक्तित्व को शंकररामन हत्याकांड मामले में 11 नवम्बर, 2004 को दीपावली की पूर्व संध्या पर गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने उन्हें अपनी सियासत का शिकार बनाया। जयललिता कहती रहीं कि उनके पास पर्याप्त सबूत हैं। मेरे मन में सवाल तब भी उठते रहे कि पुरुलिया मामले में बड़े-बड़े राष्ट्रद्रोही छोड़ दिए, सारा षड्यंत्र गुप्त रखा गया। भारत के भ्रष्ट नेताओं की रक्षा की गई। बड़े-बड़े अपराधी देश छोड़ भाग गए। उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट थे लेकिन पुलिस उन्हें तो गिरफ्तार नहीं कर सकी परन्तु जिन लोगों ने धर्म ध्वजा उठा रखी थी, उन्हें जेल में डाला गया। आज भी कई लोग देश विरोधी बयानबाजी करते हैं। पुलिस उनकी तरफ आंख उठा कर नहीं देखती तो फिर हिन्दू धर्म ध्वजा के रक्षक के साथ ऐसा क्रूर व्यवहार क्यों किया।

सैकड़ों लोगों के हत्यारे चंदन तस्कर वीरप्पन से दो-दो राज्य सरकारें प्रतिनिधि भेज कर बात करती रहीं, सरकारों ने करोड़ों रुपया बहाया परन्तु शंकराचार्य के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। भारत की विडम्बना है कि यहां धर्म को पीड़ा मिलती है और अधर्म को सुख मिलता है। अंततः षड्यंत्र का पर्दाफाश हुआ, शंकराचार्य साफ बरी हुए। पांच अभियुक्तों ने आत्मसमर्पण कर शंकररामन हत्याकांड स्वीकार कर लिया। मठ के भीतर से ही लोगों को पैसे देकर शंकराचार्य को फंसाने का षड्यंत्र रचा गया था। भारत के धर्मनिरपेक्षता के पुरोधाओं और वामपंथियों ने शंकराचार्य की गिरफ्तारी पर बयानबाजी की थी कि ‘कानून की दृष्टि में सब बराबर हैं।’

सचमुच सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं यह शब्द। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपनी किताब ‘द कोएलिशन ईयर्स-1996-2012’ में शंकराचार्य की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए लिखा- मैं इस गिरफ्तारी से बहुत नाराज था और कैबिनेट बैठक में मैंने इस मसले को उठाया भी था, मैंने सवाल पूछा कि क्या देश की धर्मनिरपेक्षता का पैमाना सिर्फ हिन्दू संत-महात्माओं तक ही सीमित है? क्या किसी राज्य की पुलिस किसी मुस्लिम मौलवी को ईद के मौके पर गिरफ्तार करने की हिम्मत दिखा सकती है? शंकराचार्य की गिरफ्तारी हिन्दू समाज के सर्वश्रेष्ठ महात्मा को अपमानित करने के लिए की गई थी। ऐसी बातें भी सामने आई थीं कि दक्षिण भारत में ईसाई धर्म को बेरोक-टोक फैलाने के लिए कांची के शंकराचार्य को जानबूझ कर फंसाया गया था। शंकराचार्य धर्मांतरण में जुटी ईसाई मिशनरियों के खिलाफ सनातन धर्म की रक्षार्थ संघर्ष करते रहे। उन्होंने दलित बस्तियों में आम आदमी के दुःख-दर्द को देखा, समझा और उनकी बेहतरी के लिए काम किया। उनके सामािजक कार्य, हिन्दू धर्म के प्रति अटूट अास्था एवं भारतीय संस्कृति एवं परम्परा को आगे बढ़ाने के प्रयासों के हम आजीवन ऋणी रहेंगे। आज उनको महासमाधि दे दी गई। हम ऐसे संत को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

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