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शिंजो आबे : सायोनारा दोस्त

दुनिया में सबसे ज्यादा सुरक्षित और शांत माने गए जापान में पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की गोली मारकर नृृशंस हत्या से पूरा विश्व सकते में है।

01:11 AM Jul 09, 2022 IST | Aditya Chopra

दुनिया में सबसे ज्यादा सुरक्षित और शांत माने गए जापान में पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की गोली मारकर नृृशंस हत्या से पूरा विश्व सकते में है।

शिंजो आबे   सायोनारा दोस्त
दुनिया में सबसे ज्यादा सुरक्षित और शांत माने गए जापान में पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की गोली मारकर नृृशंस हत्या से पूरा विश्व सकते में है। उन्हें गोलियों से निशाना बनाने वाले पूर्व सैनिक का कहना है कि वह आबे की वैश्विक नीतियों से खुश नहीं था। हत्यारे का यह बयान भी स्तब्ध करने वाला है क्योंकि शिंजो आबे के नेतृत्व में पूरी दुनिया में जापान की छवि बेहतरीन हुई। शिंजो आबे की हत्या संसदीय चुनावों से दो दिन पहले की गई। क्या यह हत्या राजनीतिक असहिष्णुता का परिणाम है या यह कोई अन्तर्राष्ट्रीय साजिश है। इसका पता तो जांच से ही होगा। जापान में बंदूक नियंत्रण कानून इतने सख्त हैं कि वहां बंदूक का लाइसेंस लेना आसान काम नहीं है। जापान में आतंकवादी ताकतें सक्रिय हैं, ऐसा भी कभी सुनने को नहीं आया। यह भी हो सकता है कि शिंजो आबे जापानी सेना को लेकर संविधान में संशोधन के समर्थक थे। इस समय जापानी सेना को सैल्फ डिफेंस आर्मी कहा जाता है। चीन से मिलती लगातार चुनौतियों और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बदले परिदृश्य में शिंजो आबे चाहते थे कि  जापान की सेना को मजबूत किया  जाए। उनके निधन से भारत ने अपना एक सच्चा मित्र खो दिया है।
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भारत और जापान के रिश्ते जिस बेहद ऊंचे मुकाम पर पहुंचे हुए हैं उसका श्रेय शिंजो आबे को ही जाता है। भारत और  जापान की दोस्ती पहले से ही अच्छी थी लेकिन शिंजो आबे ने अपने कार्यकाल में दोनों देशों की दोस्ती को चार चांद लगा दिए। भारत ने पिछले वर्ष भी उनको देश के द्वितीय सर्वोच्च सम्मान पदम विभूषण से सम्मानित किया था। शिंजो आबे ने हमेशा अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का पक्ष लिया। भारत प्रशांत क्षेत्र में भागीदारी के साथ वे दोनों देशों के संबंधों को शिखर पर ले गए। आज हम जिस मैट्रो में सफर कर रहे हैं उस परियोजना में भी जापान की अहम भूमिका रही है। आज मुम्बई,  बेंगलुरु, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में भारत ने मैट्रो का विस्तार किया है। भारत में पहला बुलेट ट्रेन प्रोजैक्ट मुम्बई और अहमदाबाद के बीच तैयार हो रहा है। यह प्रोजैक्ट जापान के सहयोग से ही बन रहा है। शिंजो आबे ने हमेशा भारत को तकनीकी तौर पर मदद देने में पहल की। उनके कार्यकाल के दौरान ही जापान ने भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश के रूप में स्वीकार किया और 2016 में भारत और जापान के बीच नागरिक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर ​भी किए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदो और शिंजो आबे में व्यक्तिगत रूप से काफी छनती रही है। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी और शिंजो आबे में लगभग 15 से ज्यादा मुलाकातें हुई थीं। जापान ने भारत के मेक इन इंडिया कार्यक्रम में काफी रुचि दिखाई। जापान ने भारत की सामर्थ्य में कमी को दूर करने में मदद कर रहा है। पाठकों को याद होगा कि 2017 में जब आबे भारत दौरे पर आए थे तो वे सीधे गुजरात गए थे। गुजरात में लगभग 50 जापानी कम्पनियां हैं। वह वाराणसी भी आए और गंगा आरती में शामिल हुए तथा साबरमती आश्रम में बापू को श्रद्धांजलि भी दी थी। भारत जापान संबंधों से यद्यपि चीन हमेशा तिलमिलाया हुआ ही रहा। चीन के साथ जापान के रिश्तों का इतिहास 1962 से ही खराब रहा है। शिंजो आबे भारत के साथ मिलकर चीन की दादागिरी का जमकर जवाब देते रहे हैं। शिंजो आबे को संशोधनवादी, राष्ट्रवादी या व्यावहारिक यथार्थवादी के तौर पर कैसे परिभाषित करें यह काम कोई आसान नहीं होगा। युद्ध के बाद आबे जापान के सबसे लम्बे समय तक प्रधानमंत्री रहे। उनकी छवि को कुछ इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है कि  उन्होंने एक पुरानी और रुढ़िवादी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व किया जिनकी विदेश नीति अत्यधिक मुखर रही।आबे ने जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा को बेहतर बनाने,  तकनीकी विकास करने और देश के लिए शानदार काम किया। यह कहना कोई उचित ही होगा कि आबे की बदौलत ही जापान दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन पाया है। उनके शासनकाल में ही जापान की वैश्विक स्थिति काफी सुधरी। सबसे बड़ी बात यह है ​कि  उन्होंने अपने शासनकाल में राष्ट्रीय पहचान और ऐतिहासिक परम्पराओं को आगे बढ़ाने के लिए लगातार काम किया। उन्होंने जापान के नागरिक जीवन में सम्राट की स्थिति की पुष्टि की। पाठ्यपुस्तकों में व्यापक संशोधन किया। उनका राष्ट्रवादी एजैंडा मुख्य रूप से जापान पर केन्द्रित रहा। विदेश मामलों में भी आबे काफी व्यावहारिक व्यक्ति रहे। अपनी नीतियों के चलते ही शिंजो लगातार 6 चुनावों में जीत हासिल करते रहे। अपनी विदेश नीति के चलते ​शिंजो आबे ने न केवल पड़ोस के देशों के साथ संतुलित संबंध रखे, बल्कि कुछ मुद्दों पर टकराव के बावजूद चीन से संबंधों में सुधार का रुख अपनाया। जापान के अमेरिका जैसी महाशक्ति से भी मजबूत संबंध हैं। शिंजो आबे को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बेहतर संबंध बनाए रखने में सफलता मिली, क्योंकि ट्रंप की बदमाशी वाली राजनीति से वे कूटनीति के जरिये पार पाने में सफल रहे। उनके शासनकाल में ही जापान के भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और  अन्य दक्षिण पूर्वी देशों के साथ नई रणनीतिक सांझेदारियां विकसित हुईं। प्रशांत और भारतीय महासागरों में फैले देशों की एक शृंखला के साथ जापान ने नया तालमेल कायम किया। चार देशों के समूह क्वाड के कर्ताधर्ता भी शिंजो आबे ही रहे हैं। उनके जाने के बाद जापान की राजनीति, विदेश नीति और आर्थिक नीतियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका आकलन आने वाले दिनों में हो सकता है। उनकी हत्या से लोकतंत्र तो लहूलुहान हुआ ही बल्कि भारतीयों का दिल भी छलनी हो गया। सायोनारा दोस्त अब केवल तुम्हारी स्मृतियां ही शेष रहेंगी।
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Aditya Chopra

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