नई दिल्ली में शिवराज सिंह चौहान ने लॉन्च की दो जीनोम-एडिटेड धान की किस्में
कम अवधि वाली धान किस्में बदलेंगी कृषि परिदृश्य
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रविवार को राजधानी दिल्ली के भारत रत्न सी. सुब्रमण्यम ऑडिटोरियम में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा विकसित दो जीनोम एडिटेड धान की किस्मों – DRR राइस 100 (कमला) और पूसा DST राइस 1 – को लॉन्च किया। इस मौके पर मंत्री ने बताया कि ये दोनों किस्में भारतीय कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं, खासतौर पर उत्पादन बढ़ाने, जल संरक्षण और जलवायु अनुकूलता के संदर्भ में। चौहान ने कहा कि इन धान किस्मों की एक विशेषता यह है कि इनकी परिपक्वता अवधि कम है, जिससे अगली फसल की समय पर बुवाई संभव हो सकेगी और बहु-फसल प्रणाली को बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ ही, सिंचाई की जरूरत भी कम होगी जिससे कुल 7500 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की बचत संभव होगी। यह किसानों के लिए तो लाभकारी है ही, आम जनता के लिए भी यह एक राहत की बात है क्योंकि इससे उत्पादन लागत में कमी आएगी और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। चौहान ने कहा, “यदि हमें बढ़ती जनसंख्या की पोषण संबंधी जरूरतें पूरी करनी हैं, तो हमें उत्पादन बढ़ाना ही होगा।”
छह सूत्रीय रणनीति और खाद्य सुरक्षा पर बल
शिवराज सिंह चौहान ने कृषि में किसानों की आय बढ़ाने के लिए छह सूत्रीय रणनीति पर भी विस्तार से चर्चा की – उत्पादन बढ़ाना, उत्पादन लागत घटाना, सही मूल्य प्राप्त करना, नुकसान की भरपाई, विविधीकरण और प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ना। उन्होंने कहा कि आज लॉन्च की गई धान की ये दोनों किस्में इस रणनीति के दो बिंदुओं – लागत में कमी और उत्पादन वृद्धि – को पूरा करती हैं।
भारत को विश्व की खाद्य टोकरी बनाने का संकल्प
चौहान ने कहा, “हमें भारत को दुनिया की ‘फूड बास्केट’ बनाना है और यह तभी संभव होगा जब पोषक उत्पादन में वृद्धि की जाए। हमें गर्व है कि हमारे प्रयासों के चलते हर साल 48,000 करोड़ रुपये मूल्य का बासमती चावल निर्यात किया जाता है।”
सोयाबीन, अरहर और दालों के उत्पादन पर भी दिया जोर
मंत्री ने यह भी कहा कि अब समय है कि हम सोयाबीन, अरहर, मसूर, उड़द, तिलहन और अन्य दालों के उत्पादन को बढ़ाएं। इसके लिए उन्होंने विशेष रूप से युवा किसानों से आग्रह किया कि वे उन्नत कृषि तकनीकों को अपनाएं। उन्होंने कहा, “हमें कृषि अनुसंधान को किसानों तक ले जाना होगा। जब कृषि वैज्ञानिक और किसान एकजुट होंगे, तभी चमत्कार होंगे।”