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मथुरा में ‘श्री कृष्ण जन्म स्थल’

भगवान श्री कृष्ण भारत के एेसे आराध्य देव हैं जो जीवन के सामाजिक व भौतिक यथार्थ की आवश्यकताओं की आपूर्ति का मार्ग देशकाल परिस्थितियों के अन्तर्गत धर्मानुसार तय करते हैं

02:21 AM May 20, 2022 IST | Aditya Chopra

भगवान श्री कृष्ण भारत के एेसे आराध्य देव हैं जो जीवन के सामाजिक व भौतिक यथार्थ की आवश्यकताओं की आपूर्ति का मार्ग देशकाल परिस्थितियों के अन्तर्गत धर्मानुसार तय करते हैं

भगवान श्री कृष्ण भारत के एेसे आराध्य देव हैं जो जीवन के सामाजिक व भौतिक यथार्थ की आवश्यकताओं की आपूर्ति का मार्ग देशकाल परिस्थितियों के अन्तर्गत धर्मानुसार तय करते हैं और मनुष्य में उचित-अनुचित का विवेक स्वयं ही जागृत करने का आह्वान करते हैं। अतः वह ‘नटखट’ होने के साथ ‘रणछोड़’ भी कहलाते हैं और ‘माखन चोर’ भी बोले जाते हैं। गौवंश के पालक बन कर वह समाज के पिछड़े वर्ग को सम्मान के शिखर पर पहुंचाते हैं और ‘द्वारकाधीश’ बन कर राजा के रूप में अपने राजधर्म का निर्वाह इस प्रकार करते हैं कि अपने दरिद्र मित्र सुदामा की पत्नी के ‘मित्रता’ के प्रति स्थापित भाव को नई ऊंचाई देते हुए उसके जीवन में सम्पन्नता बिखेर देते हैं। कौरवों की भरी राजसभा में नारी सम्मान को रुंधते देख वह द्रोपदी की ‘लाज’ बचा कर वह स्त्री के अस्तित्व को असीमित सत्व के धरातल तक ले जाते हैं और सिद्ध करते हैं कि अधर्म की राजनीति स्वार्थों की लाचारी का विवेकहीन अंध पुंज्ज बन जाती है। गोपियों के साथ महारास रचा कर श्री कृष्ण ईश्वर के सर्वव्यापी स्वरूप का प्रेम मार्गी दर्शन स्थापित करते हैं। और न जाने कितनी ही श्रीकृष्ण की लालीएं हिन्दुओं की सनातनी संस्कृति के धर्मनिष्ठ भावों की अभिव्यक्ति भौतिक स्वरूप मेें करती हैं।
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अतः यह बेवजह नहीं है कि प्रख्यात साहित्यकार व मीमांसक बाबू वासुदेव शरण अग्रवाल ने उन्हें ‘योगेश्वर श्री कृष्ण’ कहा और महान शिक्षाविद् व दर्शनशास्त्र के मनीषी व राजनीतिक विचारक स्व. कन्हैयालाल मणिकराम मुंशी ने अपना ग्रन्थ ‘श्री कृष्णावतार’ लिखा। युद्ध क्षेत्र कुरुक्षेत्र में ही अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर अन्त में अर्जुन से यही कहा कि ‘मैंने सभी ईश्वरीय व सांसारिक पक्षों को तुम्हारे समक्ष रख दिया है, अब यह तुम्हारी इच्छा है कि जैसा तुम चाहे आचरण करो’। इससे कम से कम यह तो सिद्ध होता ही है कि भारत में लोकतान्त्रिक बहु विचारवादी अभिव्यक्ति के स्वातन्त्र्य से जुड़ी परंपरा बहुत गहरी है और स्थायी है। अतः श्री कृष्ण किसी भी स्तर पर कोई काल्पनिक या मिथीकीय चरित्र नहीं है बल्कि भारत के सत्य की एेसी अभिव्यक्ति है जिनमें इस देश का हिन्दू समाज अपने अस्तित्व के निशान या चिन्ह पाता है लेकिन मथुरा में श्री कृष्ण जन्म स्थान को लेकर भारत का ही मुस्लिम समाज जिस प्रकार से इतिहास में की गई भीषण गलती से जुड़ा रहने की जिद पर अड़ना चाहता है उससे यही सन्देश जाता है कि मुस्लिम मुल्ला और उलेमा उन्हें भारत की धरती से जुड़ा रहने देना नहीं चाहते और इसकी सांस्कृतिक धरोहर को भी इस्लामी चश्मा पहनाना चाहते हैं।
मथुरा जाने वाला कोई अन्जान सामान्य व्यक्ति भी यहां बने श्री कृष्ण जन्मस्थान परिसर को देख कर बता सकता है कि पूरे किलेनुमा इमारत के एक हिस्से में जिस तरह मस्जिद की मीनारें तामीर करा कर इसे ईदगाह मस्जिद का नाम दिया गया, वह हिन्दुओं की छाती में ठोकी गई किसी कील के अलावा और कुछ नहीं है। पुष्ट इतिहास के साक्ष्यों के अनुसार निश्चित रूप से यह काम क्रूर मुगल शासक औरंगजेब के जमाने में किया गया क्योंकि औरंगजेब कट्टर इस्लामी सुन्नी शासक था और मूर्ति पूजा को कुफ्र मानता था। बुतशिकनी उसका अकीदा था और हिन्दुओं को वह काफिर मानता था जिसकी वजह से उसने उनसे जजिया वसूलना शुरू किया था। जजिया कोई टैक्स नहीं था बल्कि गैर मुस्लिमों को दी जाने वाली सजा थी। जजिया उनका कत्ल न किये जाने का मुआवजा था। जजिया देकर ही वे हिन्दोस्तान में रह सकते थे अथवा मुसलमान बन कर इससे मुक्त हो सकते थे वरना कत्ल के कारण बन सकते थे। जो कम्युनिस्ट इतिहासकार औरंगजेब का महिमा मंडन करते हैं अथवा जो लोग औरंगजेब के निजाम की बेशर्म पैरोकारी करते हैं वे भूल जाते हैं कि जजिया केवल इस्लामी निजाम में ही लगाया जा सकता है। इसलिए औरंगजेब हर नुक्ते से हिन्दोस्तान में शरीयत को लागू करके हुकूमत कर रहा था।
एक बार भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार में लेख लिख कर कहा था कि यदि औरंगजेब कट्टर इस्लामी होता तो वह शरीयत लागू करता। उसने ऐसा नहीं किया। मगर सवाल यह है कि उसने जजिया कानून की किस रुह से लाजिम किया? इसका जवाब इतिहासकार श्रीमती रोमिला थापर को भी देना चाहिए। मगर मूल सवाल मथुरा के श्री कृष्ण जन्मस्थान की किलेनुमा इमारत है जो पूर्णतः हिन्दू स्थापत्य के अनुसार बनी हुई है मगर उसी के एक हिस्से को मस्जिद बना कर औरंगजेब ने अपनी हिन्दू विरोधी मानसिकता का स्थायी चिन्ह छोड़ने की गुस्ताखी की। इस गुस्ताखी को भारतीय समाज क्या केवल इसलिए कबूल कर ले कि यह काम मुस्लिम शासन के दौरान किया गया। मुस्लिम शासकों ने यहां कानून की जगह इस्लाम को प्रतिस्थापित किया और कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने उन्हें ‘ग्रेट मुगल्स’ बना कर प्रस्तुत किया।
इरफान हबीब जैसे इतिहसकार ने तो मुगलों को भारत को एक समुच्य में जोड़ने वाला तक बता डाला जबकि भारत का इतिहास तो सम्राट अशोक से लेकर सम्राट समुद्रगुप्त व हर्षवर्धन और उसके बाद राजा भोज तक एकल साम्राज्य के गठन की गवाही देता है। हिन्दुओं के मान मर्दन से भरे इतिहास को इन इतिहासकारों ने महान शासन की श्रेणी में डालने तक की हिमाकत कर डाली और हम चुप बैठे रहे लेकिन अब समय बदल चुका है और भारत के हर उस मन्दिर और बौद्ध मठ को मुल्ला- मौलवियों के चंगुल से छुड़ाने का समय आ गया है जो हिन्दू दासता के अवशेषों की तरह सम्पूर्ण भारतीयों को मुंह चिढ़ा रही है।  भारत माता के शरीर पर स्वतन्त्र भारत में भी पड़ी इन जंजीरों को तोड़ना ही होगा। भारत माता की जय।
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