सिंध हमारा है
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह विषधर पाकिस्तान की भाषा और उसके बाद डसने के दुस्साहस से परिचित हैं। अनुभवी राजनीतिज्ञ के तौर पर उन्होंने पाकिस्तान पर उसी लहजे में वार किया है जिस लहजे में उसके सियासतदान बात करते हैं। रक्षामंत्री ने पाकिस्तान पर यह कहकर जबरदस्त प्रहार किया कि बॉर्डर कभी भी बदल सकते हैं और उसका सिंध प्रांत फिर से भारत में आ सकता है। इससे पहले अक्तूबर माह में सरक्रीक के क्षेत्र में पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य गतिविधियों और बुनियादी ढांचे के निर्माण पर सीधी चेतावनी दी थी कि अगर पाकिस्तान कोई गलत हरकत करता है तो उसे याद रखना चाहिए कि कराची का रास्ता सरक्रीक से होकर गुजरता है।
सरक्रीक भारत और पाकिस्तान के बीच गुजरात के कच्छ क्षेत्र और सिंध प्रांत के बीच 96 किलोमीटर लंबी खाड़ी जो अरब सागर में जाकर मिलती है। राजनाथ सिंह ने सिंधी समाज के योगदान का महत्व और सिंध के साथ जुड़ाव को बताते हुए कहा कि भले ही आज सिंध भौगोलिक रूप से भारत का हिस्सा नहीं है लेकिन सभ्यतामत रूप से यह हमेशा भारत का अभिन्न अंग रहेगा। जहां तक भूमि का प्रश्न है सीमाएं बदल सकती हैं। सिंध के हमारे लोग जो सिंधु नदी को पवित्र मानते हैं, हमेशा हमारे अपने रहेंगे। रक्षा मंत्री के बयान पर पाकिस्तान तिलमिला उठा है। क्योंकि वह वास्तविकता जनता है कि उसके भीतर के हालात ऐसे हैं कि वह कभी भी खंड-खंड हो सकता है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, बलूचिस्तान, खैबर पख्तून और सिंध में पहले से ही आजादी की मांग उठ रही है। कहीं पाकिस्तान टूट गया तो वह उत्तर प्रदेश से भी छोटा देश बन जाएगा।
सिंध के वर्तमान हालात से पहले इसके इतिहास को जानना बेहद जरूरी है। ये तब की बात है जब दुनिया ऐसे अदृश्य लकीरों में नहीं बटी थी। तब एक देश से दूसरे देश जाने के लिए वीज़ा नहीं लगता था। उस वक्त भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। महीनों की पैदल यात्रा के बाद जब कोई यात्री हिंदुकुश पार करके इस ओर आता था तब उसे सिंधु नदी नजर आती थी। सिंधु नदी का जिक्र ऋग्वेद में भी आता है। प्रोटो-ईरानिक भाषाओं में सिंधू को हिंदू कहा जाता था और इस तरह हिंदू के पार बसी जगह हिंदुस्तान हो गई। ईरान के पार ग्रीक में लोग इसे इंडोस और रोम के लोग इंडस कहने लगे और इस तरह इंडस के पार बसे लोगों को 'पीपल ऑफ द इंडस' यानी, इंडिका कहा जाता था जो अब इंडिया कहलाता है। अब इस ऐतिहासिक इलाके के राजनीतिक परिदृश्य को समझते हैं। सिंधु नदी के साथ सटा इलाका सिंध कहलाता है और 1947 में हुए भारत-पाक बंटवारे के बाद ये जगह पाकिस्तान में चली गई।
ये इलाका पाकिस्तान के चार प्रांतों में से एक बन गया। बंटवारे के बाद कई सारे सिंधी लोग बचकर भारत आ गए और यहां से कई मुसलमान सिंध में जाकर बस गए जिससे सिंध की आबादी का बैलेंस बिगड़ गया और वहां के मूल बाशिंदे कम हो गए। मूल सिंधियों ने पाकिस्तान को कभी दिल से नहीं अपनाया। इसी के चलते वो मांग करते हैं अलग 'सिंधुदेश' की। यानी अलग सिंध देश की जो पाकिस्तान से बिल्कुल अलग हो। सिंध में अलग सिंधु देश बनाने की मांग ने तब जोर पकड़ा जब 1967 में पाकिस्तान ने उन पर उर्दू भाषा थोप दी। सिंधियों के लिए सिंध महज एक प्रांत नहीं, बल्कि उनकी पहचान का एक बड़ा हिस्सा है। उन्हें लगता है कि पाकिस्तान में उनकी पहचान सुरक्षित नहीं। पाकिस्तान के हुकमरानों ने सिंध में हमेशा ही अत्याचार ढाए हैं।
सिंध से हिन्दू समुदाय की लड़कियों का अपहरण और जबरन इस्लाम में धर्मांतरण करके मुस्लिमों से निकाह कराने की खबरें आती रहती हैं। हिन्दू मंदिरों में तोड़फोड़ और लूटपाट की खबरें भी मिलती रहती हैं। सिंधियों की आवाज को दबाने के लिए पाकिस्तान की सरकारें और सेना हमेशा ही जुर्म करती आई है। हजारों सिंधी ऐसे हैं जिनका आज तक पता नहीं चला। अपनी आवाज बुलंद करने वालों को रातों-रात गायब करवा दिया जाता है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे बलूचिस्तान में सालों से चल रहा है। सिंध के लोगों ने मानवाधिकारों को लगातार कुचले जाने के विरोध में दुनियाभर में आवाज उठाई है। सिंध ने पाकिस्तान को दो प्रधानमंत्री दिए हैं। जुल्फीकार अली भुट्टो और उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो। उनके रहते सिंधियों का संघर्ष कुछ धीमा जरूर पड़ा लेकिन बाकी दुकमरानों के सत्ता में रहते विद्रोह हमेशा तेज रहा। सिंधियों ने भारत से यह गुहार भी लगाई थी कि जैसे कश्मीरियों को 370 से आजादी दिलाई उसी तरह उन्हें भी आजादी दिलाई जाए। सिंध का पूरा इलाका सम्पदाओं से भरपूर है।
हर फसल की खेतीबाड़ी, जड़ी-बूटियां, प्राकृतिक औषधियां, ड्राईफ्रूट्स के लिए यह क्षेत्र मशहूर है। यह क्षेत्र पाकिस्तान के दूसरे इलाकों से कहीं ज्यादा सम्पन्न है। यहां की आबोहवा भारत की सभ्यता से एकदम मेल खाती है। कोई जमाना था जब सिंध प्रांत वैदिक सभ्याताओं का हब था लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इसे खून-खराबे के क्षेत्र में बदल दिया। पाकिस्तान सिंध की सम्पदा का इस्तेमाल तो करता है लेकिन आज तक सिंधियों को अधिकार नहीं दिए गए। सिंध कट्टरपंथियों की दुर्दांत सोच का शिकार सदियों से हो रहा है। बंटवारे के समय भारत से गए मुस्लिमों को भी वहां अपमान झेलना पड़ा। भारत से गए मुस्लमानों को वहां मुहाजिर कहा गया और स्थानीय मुस्लिमों ने उन्हें हमेशा दूसरे दर्जे का नागरिक माना। दशकों तक उन्हें उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान की दुःखती रग पर हाथ रख दिया है और जय सिंध मुत्तहिदा महाज के नेताओं ने उनके बयान का स्वागत करते हुए कहा कि अलग सिंध देश के लिए संघर्ष तेज होगा और अलग सिंधु देश भारत के साथ एक संघीय रिश्ता बना सकता है। इससे स्पष्ट है कि सिंध के लोग भारत से जुड़ना चाहते हैं।

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