देशभर में एसआईआर
हर 5 साल में भारत संवैधानिक लोकतंत्र में चुनावों के जरिए सरकार बनाता है। चुनाव कराने वाली संस्था भारतीय चुनाव आयोग केवल तिथियां निर्धारित करने और मतों की गिनती तक सीमित नहीं है। यह सही है कि चुनाव आयोग की अपनी सत्ता होती है। चुनाव आयोग एक सार्वजनिक विश्वास रखता है कि यह सुनिश्चित हो कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हों बल्कि वास्तव में ऐसा दिखना भी चाहिए। कानून आयोग को शक्ति प्रदान करता है। देश के चुनावी इतिहास में पिछले कुछ वर्षों से चुनाव लोकसभा के हों या राज्यों के। चुनाव आयोग की विश्वस्नीयता को लेकर एक असाधारण स्थिति देखी जा रही है। चुनाव आयोग की साख लगातार कम हुई है। चुनाव आयोग को कई मुद्दों पर चुनौती दी गई। बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष पुनरीक्षण, डुप्लीकेट पीपीआईसी प्रविष्टियां, निर्वाचन क्षेत्रों में अचानक बढ़ी मतदाताओं की संख्या, जो जनसंख्या के हिसाब से अजीब लगती है। मशीन-पठनीय रोल देने से इन्कार और सीसीटीवी, वेबकास्ट फुटेज को 45 दिनों में हटाने आदि को लेकर घमासान मचा रहा। जिससे चुनाव आयोग को जवाब देने के लिए मजबूर होना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग की पहचान को कई मामलों में सशक्त भी बनाया और उसे सीमाओं में बांधा। बिहार में एसआईआर को लेकर मचे घमासान के बाद चुनाव आयोग ने देशभर में एसआईआर कराने का फैसला किया। चुनाव आयोग ने राज्यों आैर केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के साथ बैठक की जिसमें मतदाता सूचियों के स्पेशल इंटेसिव रिविजन (एसआईआर) की तैयारियों की समीक्षा की। नवम्बर महीने से एसआईआर चरणबद्ध तरीके से शुरू हो सकता है। पहले फेस में उन राज्यों को शामिल किया जाएगा जहां अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले वर्ष पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनाव होने हैं। बैठक में मुख्य चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिए गए कि वे अपने राज्यों में पिछले एसआईआर के रोल से अधिकतम वोटरों को मैप करें ताकि दस्तावेज जमा कराने की जरूरत कम से कम पड़े। वहीं शहरी क्षेेत्रों में पलायन के कारण मैपिंग में चुनौतियां सामने आने की संभावना जाहिर की गई।
चुनाव आयोग को मतदाता सूचियों में सुधार का अधिकार है। ऐसे में मृत लोगों के नाम हटाने, डुप्लीकेट मतों को रद्द करने और देश के नागरिकों के वोटर आईडी बनाने का काम बहुत व्यापक है। यह सारा काम निष्पक्ष रूप से कराना बहुत बड़ा जांच का विषय है। मतादाता सूचियों से घुसपैठियों के नाम हटाने आैर देश के नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करने का दायित्व चुनाव आयोग का ही है। अब सवाल यह है कि जिस मॉडल के आधार पर बिहार में एसआईआर करवाया गया उसको लेकर कई तीखे सवाल उठे। आज तक चुनाव आयोग यह नहीं बता पाया कि बिहार की मतदाता सूची से कितने घुसपैठियों के नाम हटाए गए। बहुत सारे सवाल उठने के बाद चुनाव आयोग ने कई सुधार किए। चुनाव आयोग ने इस वर्ष सुधारों में 28 से ज्यादा पहल की है। यह सुधार 6 स्तंबों सभी हितधारकों के साथ जुड़ाव, चुनाव प्रणाली में सुधार, प्रौद्योगिकी अपनाना, मतदाता सूची की शुद्धता, मतदान में आसानी आैर क्षमता िनर्माण से संबंधित है।
चुनाव आयोग ने अपने पोर्टल और ऐप से वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने, नाम डिलीट करवाने या वोटर लिस्ट से संबंधित अन्य कोई काम ऑनलाइन कराने के लिए नया फीचर ई-साइन शुरू किया है। इसमें आवेदन करने वालों को अपने आधार से जुड़े मोबाइल नंबर का ही इस्तेमाल करना होगा। दावा किया जा रहा है कि यह नया फीचर हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी द्वारा कर्नाटक की आलंद सीट पर बड़ी संख्या में वोटरों के नाम हटाने की कोशिश का खुलासा करने के बाद आयोग ने शुरू किया है। ई-साइन फीचर के जरिए वोटर्स की आइडेंटिफिकेशन वेरिफाई होगी। जब वोटर्स वोटर कार्ड के लिए रजिस्ट्रेशन कराएंगे। वोटर लिस्ट से नाम हटाने या नाम में सुधार करने के लिए आवेदन करेंगे, तो आधार कार्ड से लिंक फोन नंबर के जरिए अपनी पहचान वेरिफाई करेंगे। वोटर वेरिफिकेशन की यह प्रक्रिया फर्जी आवेदनों को रोकने में मददगार साबित होगी। इससे न सिर्फ नाम और नंबर वेरिफाई होगा, बल्कि पता चलेगा कि वोटर लिस्ट में पहले से नाम है या नहीं। चुनाव आयोग ने पिछले 6 महीनों में दो दर्जन से अधिक बदलाव किए हैं।
एक फैसला चरणबद्ध ढंग से 808 पंजीकृत किन्तु गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) को सूची से हटाना है। अभी भी कई दल पाइपलाइन में हैं, जिनकी जांच और तहकीकात जारी है। ये दल पंजीकरण की आवश्यक शर्तों को पूरा करने में विफल रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश के लोग आज भी पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन को याद करते हैं। चुनाव सुधारों की शुरूआत उन्होंने ही की थी। लोग चुनावों को शेषन से पहले और शेषन के बाद चुनावों में विभाजित करके देख सकते हैं। सत्तारूढ़ दलों ने उनकी शक्तियां कम करने की कोशिश की फिर भी शेषन ने एक महत्वपूर्ण बदलाव िकया। उन्होंने व्यवस्था और विश्वसनीयता स्थापित करने के लिए कानून की मूल भावना का इस्तेमाल किया। शेषन को जनता की अदालत में बहुत प्रतिष्ठा मिली। आज मुख्य चुनाव आयुक्त की ऐसी प्रतिष्ठा गायब है। चुनाव आयोग को देश में एसआईआर का काम ईमानदारी आैर पारदर्शितापूर्ण ढंग से करना होगा ताकि आयोग की प्रतिष्ठा बहाल हो सके। चुनाव आयोग के काम से हर राजनीतिक दल से लेकर आम मतदाता तक संतुष्ट होना चाहिए तभी लोकतंत्र मजबूत हो सकेगा।

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