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Sitaare Zameen Par Public Review | Movie Review | Aamir Khan | Genelia Deshmukh

09:54 AM Jun 21, 2025 IST | Shera Rajput

बीते सालों की तरह इस बार भी सारे देश ने 5 सितंबर को गर्मजोशी से अध्यापक दिवस मनाया। सोशल मीडिया पर तो अध्यापकों का उनके राष्ट्र निर्माण में योगदान के लिए विशेष रूप से आभार व्यक्त किया जा रहा था। पर अब सुधी अध्यापकों, मनोचिकित्सकों और अन्य जागरूक नागरिकों को यह भी सोचना होगा कि नौजवानों का एक बड़ा वर्ग निराशा और नाकामयाबी की स्थितियों में अपनी जीवनलीला खत्म करने पर क्यों आमादा है। अब शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता हो जब अखबारों में किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले युवा के खुदकुशी करने संबंधी दिल दहलाने वाला समाचार ना छपता हो। यह बेहद गंभीर मसला है और इस पर सारे देश को सोचना होगा। इसी तरह से आजकल बिजनेस में घाटा होने के कारण भी आत्म हत्या करने वालों की तादाद लगातार बढ़ती ही चली जा रही है। अभी कुछ दिन पहले एक साइकिल बनाने वाली मशहूर कंपनी के अरबपति मालिक ने भी खुदकुशी कर ली थी।

पिछले साल 6 दिसंबर को लोकसभा में बताया गया था कि देश में 2019 से 2021 के बीच 35,000 से ज़्यादा छात्रों ने आत्महत्या की। छात्रों के खुदकुशी करने के मामले 2019 में 10,335 से बढ़कर 2020 में 12,526 और 2021 में 13,089 हो गए। इसमें कोई शक नहीं है किसी भी हालत में किसी खास परीक्षा में सफल होने के लिए माता-पिता, अध्यापकों और समाज का भारी दबाव और अपेक्षाएं छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव डाल रही हैं। राजस्थान का एक शहर है कोटा। यहां पर हर साल एक अनुमान के मुताबिक, हजारों नहीं लाखों छात्र-छात्राएं देश के शीर्ष कॉलेजों में से एक में प्रवेश पाने की उम्मीद में कोटा पहुंचते हैं। इनके जीवन का एक ही लक्ष्य होता है कि किसी तरह से IIT/NIT या मेडिकल की प्रवेश परीक्षा को क्रैक कर लिया जाए। आप कोटा या फिर देश के किसी भी अन्य शहर में चले जाइये जहां पर मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों के साथ-साथ सिविल सेवाओं वगैरह के लिए कोचिंग संस्थान चल रहे हैं। वहां छात्र अत्यधिक दबाव और असफलता के डर से मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत कष्ट की स्थिति में हैं।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय अग्रवाल कहते हैं कि हमें खुदकुशी के बढ़ते मामलों पर सिर्फ चिंता ही व्यक्त नहीं करनी। हमें इसे रोकना ही होगा। राजधानी के एक कोचिंग सेंटर के प्रमुख ने बताया कि हम छात्रों की लगातार काउंसलिंग भी करते रहते हैं। उनके अभिभावकों के भी संपर्क में रहते हैं। कहा जाता है कि भारत में दुनिया भर में सबसे अधिक युवा आत्महत्या दर है। इस बीच, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, 2020 में हर 42 मिनट में एक छात्र ने अपनी जान दे दी। यह आंकड़ा सच में डराता है।
देखिए, नौजवानों को बिल्कुल रीलेक्स माहौल देना होगा माता-पिता और उनके अध्यापकों को, ताकि वे बिना किसी दबाव में पढ़ें या जो भी करना चाहते हैं, करें। सोशल वर्कर ब्रदर सोलोमन जॉर्ज कहते हैं कि हम पूरी तरह से सुनिश्चित करते हैं कि हमारे पढ़ने वाले बच्चे बिना किसी दबाव में पढ़े-लिखे। हम अपने अध्यापकों की भी क्लास लेते हैं कि किसी भी बच्चे के साथ कक्षा में उसकी जाति न पूछी जाए और या न ही उसके पिता की आय। कुछ गैर-जिम्मेदार अध्यापक अपने विद्यार्थियों से इस तरह के गैर-जरूरी सवाल पूछते हैं। फिर वे एक ही कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों की एक-दूसरे से तुलना भी करने लगते हैं।

इस कारण वे जाने-अनजाने एक बच्चे को बहुत सारे बच्चों को कमजोर साबित कर देते हैं। जाहिर है, इस वजह से उस छात्र पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है जो कमतर साबित कर दिया गया होता है। इसी तरह के बच्चे कई बार निराशा और अवसाद में डूब जाते हैं।
देखिए बच्चे को पालना एक बीस वर्षीय प्लान है। कौन नहीं चाहता कि उसका बच्चा समाज में ऊंचा मुकाम हासिल करे, शोहरत-नाम कमाए? पर इन सबके लिए ज़रूरी है कि बच्चे को उसकी काबिलियत और पसंद के अनुसार मनचाहा करियर चुनने की आज़ादी भी दी जाए। यह एक कड़वा सच है कि हमारे समाज में सफलता का पैमाना अच्छी नौकरी, बड़ा घर और तमाम दूसरी सुख-सुविधाएं ही मानी जाती हैं। अफसोस कि हम भविष्य के चक्कर में अपने बच्चों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर करने लगे हैं। असफलता से हार मान लेने से जीवन नहीं चलता। यह तो कायरता है। महान कवि पद्मभूषण डॉ. गोपाल दास नीरज की पंक्तियां याद आ रही हैं, “छुप- छुप अश्रु बहाने वालों , जीवन व्यर्थ लुटाने वालों, इक सपने के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।” सफलता और असफलता का चक्र तो चला करता है। उसे स्वीकार करने में ही भला है।

जैसा कि मैंने ऊपर जिक्र किया कि बीते दिनों एक अरबपति बिजनेसमैन ने राजधानी के अपने भव्य बंगले में गोली मारकर सुसाइड कर लिया है। पुलिस पूरे मामले की जांच में जुट गई है। कहा जा रहा है कि बिजनेस में नुकसान होने के कारण ही साइकिल बनाने वाली कंपनी के मालिक ने आत्महत्या की। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चला है कि 2020 में, जब कोविड- की लहर ने व्यापार को तबाह कर दिया था, तब 11,716 व्यापारियों ने आत्महत्या की थी, जो 2019 की तुलना में 29% अधिक थी, जब 9,052 व्यापारियों ने अपनी जान ले ली थी। कर्नाटक में 2020 में व्यवसायियों द्वारा आत्महत्या से सबसे अधिक मौतें (1,772) दर्ज की गईं -जो 2019 से 103% अधिक है, जब राज्य में 875 व्यवसायियों ने अपनी जान ले ली थी। महाराष्ट्र में 1610 व्यवसायियों ने आत्महत्या की, जो पिछले वर्ष से 25% अधिक है, और तमिलनाडु में 1447 की मृत्यु हुई, जो 2019 से 36% अधिक है। लब्बो लुआब यह है कि भारत में युवाओं और कारोबारियों के साथ-साथ अन्य लोगों के आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को भी प्रभावी ढंग से रोकना ही होगा।

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