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नगालैंड में स्थिति तनावपूर्ण, लेकिन नियंत्रण में, राज्य मंत्रिमंडल ने आफस्पा हटाने की मांग की

सीमावर्ती राज्य नगालैंड में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 असैन्य नागरिकों की मौत के मद्देनजर प्रदर्शन और हिंसा की घटनाएं होने के बाद मंगलवार को स्थिति तनावपूर्ण, हालांकि, शांत बनी रही

01:08 AM Dec 08, 2021 IST | Shera Rajput

सीमावर्ती राज्य नगालैंड में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 असैन्य नागरिकों की मौत के मद्देनजर प्रदर्शन और हिंसा की घटनाएं होने के बाद मंगलवार को स्थिति तनावपूर्ण, हालांकि, शांत बनी रही

नगालैंड में स्थिति तनावपूर्ण  लेकिन नियंत्रण में  राज्य मंत्रिमंडल ने आफस्पा हटाने की मांग की
सीमावर्ती राज्य नगालैंड में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 असैन्य नागरिकों की मौत के मद्देनजर प्रदर्शन और हिंसा की घटनाएं होने के बाद मंगलवार को स्थिति तनावपूर्ण, हालांकि, शांत बनी रही। वहीं, राज्य मंत्रिमंडल ने केंद्र से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आफ्सपा) को निरस्त किये जाने की मांग करने को लेकर एक बैठक की।
अधिनियम को निरस्त करने की मांग नयी दिल्ली में संसद में भी उठी। नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की सांसद एवं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में मंत्री रह चुकी अगाथा संगमा ने कहा कि यह ऐसा बड़ा मुद्दा है, जिससे हर कोई अवगत है, लेकिन इसे नजरअंदाज किया जा रहा क्योंकि हर कोई उस पर चर्चा करने में असहज महसूस करता है। उन्होंने कहा कि इसका समाधान करने की जरूरत है।
एनपीपी की नेता ने पूर्वोत्तर में पहले की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया और कहा, ‘‘कई नेताओं ने यह मुद्दा उठाया है। अब समय आ गया है कि आफस्पा को हटाया जाए।’’
नगालैंड में उग्रवाद शुरू होने के बाद सशस्त्र बलों को गिरफ्तारी और हिरासत में लेने की शक्तियां देने के लिए आफस्पा को 1958 में लागू किया गया था। आलोचकों का कहना रहा है कि सशस्त्र बलों को पूरी छूट होने के बावजूद यह विवादास्पद कानून उग्रवाद पर काबू पाने में नाकाम रहा है, कभी-कभी यह मानवाधिकारों के हनन का कारण भी बना है।
संगमा ने कहा कि नगालैंड में 14 असैन्य नागरिकों की हत्या ने मालोम नरसंहार की यादें ताजा कर दी, जिसमें इंफाल (मणिपुर) में 10 से अधिक असैन्य नागरिकों की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी तथा इस वजह से 28 वर्षीय इरोम शर्मिला को 16 साल लंबे अनशन पर रहना पड़ा।
नगालैंड मंत्रिमंडल ने मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के नेतृत्व में मंगलवार को एक आपात बैठक की और हत्या के विरोध में हॉर्नबिल उत्सव को समाप्त करने का फैसला किया।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकार ने सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) कानून रद्द करने की मांग करते हुए केंद्र को पत्र लिखने का भी फैसला किया है।
राज्य का सबसे बड़ा पर्यटन आधारित मनोरंजन कार्यक्रम 10 दिवसीय हॉर्नबिल उत्सव राजधानी के समीप किसामा में नगा हेरिटेज विलेज में आयोजित किया जा रहा था। यह उत्सव 10 दिसंबर को खत्म होना था।
नगालैंड के मंत्री निबा क्रोनू और तेमजेन इम्ना अलोंग ने बाद में पत्रकारों को बताया कि एक आपात बैठक के दौरान मंत्रिमंडल को असैन्य नागरिकों के मारे जाने के बाद उठाए गए कदमों की जानकारी दी गयी। इसमें आईजीपी रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करना और राज्य तथा केंद्र सरकारों द्वारा मृतकों के परिजनों को अनुग्रह राशि देना शामिल है।
उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडल ने एसआईटी को एक महीने के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया है। क्रोनू ने बताया कि घटना में कुल 14 नागरिकों की मौत हुई है, जबकि दो गंभीर रूप से घायल हुए हैं, जिनका पड़ोसी राज्य असम में इलाज चल रहा है और छह अन्य का दीमापुर में इलाज चल रहा है।
गौरतलब है कि गोलीबारी की घटनाएं चार दिसंबर को ओटिंग-तिरु में और पांच दिसंबर को मोन शहर में हुई।
नगालैंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) टी जॉन लोंगकुमेर और आयुक्त रोविलातुओ मोर की संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि मोन जिले में शनिवार को एक पिकअप ट्रक पर गोलीबारी करने से पहले सेना ने उसमें सवार लोगों की पहचान करने की कोई कोशिश नहीं की थी।
राज्य सरकार को रविवार को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘चार दिसंबर को शाम चार बजकर 10 मिनट के आसपास, आठ ग्रामीण तिरु स्थित कोयले की एक खान से पिकअप ट्रक में घर लौट रहे थे, उन पर अचानक ही सुरक्षा बलों (कथित तौर पर, असम में स्थित 21 वीं पैरा स्पेशल फोर्स) ने घात लगाकर हमला किया और उनकी हत्या कर दी। वस्तुत: उनकी पहचान करने की कोई कोशिश नहीं की गई थी।’’
अधिकारियों ने बताया कि सभी ग्रामीण निहत्थे थे और कोयले की खान में काम करते थे। उनमें से छह की मौत मौके पर ही हो गई थी और दो गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
अधिकारियों ने रिपोर्ट में बताया कि गोलियों की आवाज सुन कर ग्रामीण मौके पर पहुंचे। ‘‘घटनास्थल पर पहुंचने पर, उन्होंने एक पिकअप ट्रक देखा और विशेष बल के कर्मी छह शवों को लपेटकर उन्हें ट्रक (टाटा मोबाइल) में चढ़ा रहे थे, वे जाहिर तौर पर शवों को उनके आधार शिविर ले जाने के इरादे से ऐसा कर रहे थे।’’
रिपोर्ट में कहा गया कि शवों को तिरपाल में लिपटा देख गांववालों और सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़प हो गई। गुस्साए लोगों ने सुरक्षा बलों के तीन वाहनों में आग लगा दी।
उन्होंने कहा, ‘‘हंगामे में, सुरक्षा बलों ने फिर गांववालों पर गोलियां चलाईं, जिससे सात और ग्रामीण मारे गए। चश्मदीदों ने पुष्टि की है कि विशेष बलों के जवानों ने घटनास्थल से असम की ओर भागते हुए अंधाधुंध गोलियां चलाईं और यहां तक कि रास्ते में कोयला खदान की झोपड़ियों पर भी उन्होंने गोलीबारी की।’’
नगालैंड पुलिस ने थल सेना की 21 वीं पैरा स्पेशल फोर्स के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए एक मामला दर्ज किया है।
वहीं, सेना ने नगालैंड की घटना की मेजर जनरल रैंक के एक अधिकारी से ‘कोर्ट ऑफ इनक्वायरी’ (जांच) कराने का आदेश दिया है।
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को संसद में इस घटना को ‘‘गलत पहचान का मामला’’ बताया था। उन्होंने कहा था, ‘‘ भारत सरकार नगालैंड की घटना पर अत्यंत खेद प्रकट करती है और मृतकों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करती है।
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Shera Rajput

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