Top NewsIndiaWorld
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabJammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Business
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

400 पार का नारा और जमीनी सच !

05:43 AM Jun 09, 2024 IST | Rahul Kumar Rawat

लोकसभा चुनाव के परिणाम असामान्य होते हैं। यह विजेताओं को हारे हुए जैसा महसूस कराता है और हारने वालों को विजेताओं को पसंद करने की ओर आकर्षित करता है। आइये आपको समझाते हैं मोदी 3-0 की पूरी केमिस्ट्री कि आखिर कैसे भाजपा न केवल 272 सीटों के साधारण बहुमत की उम्मीद कर रही थी बल्कि उसने अपने मन में यह बैठा लिया था अब वह आसानी से 400 पार कर सकती है। इसलिए, जब वह केवल 240 जीत पाई तो उसे ऐसा लगा जैसे वह हार गई हो। हालांकि आपको इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि इसकी संख्या दूसरे सबसे बड़े समूह, कांग्रेस पार्टी से कहीं अधिक थी, जो केवल 99 सीटें जीतने में सफल रही। लेकिन बीजेपी निराश थी क्योंकि वह न केवल अपने 400 के आंकड़े से बहुत पीछे रह गई बल्कि 272 के बहुमत आकंड़े से भी 32 सीटें पीछे रह गई।
जहां तक ​​कांग्रेस पार्टी का सवाल है तो वह लगातार तीसरे चुनाव में आधे-अधूरे आंकड़े के आसपास भी पहुंचने में विफल रही। पिछले तीन चुनावों में 44, 52 और 99 की अपनी संख्या जोड़ने के बाद भी, कुल सीटें 2024 के चुनाव में भाजपा द्वारा जो जीती गई हैं कांग्रेस उससे भी 45 सीटें कम है। अब ऐसे में जनता से आप तो पूछ सकते हैं कि राहुल गांधी ऐसे क्यों घूम रहे हैं जैसे कि उन्होंने चुनाव जीत लिया हो।

बेशक, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि राहुल गांधी ने भाजपा को बहुमत से वंचित करने में किसी स्तर तक सफलता हासिल की है, लेकिन फिर भी वह मोदी को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक पाए। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है, जिसे आखिरी बार प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने साल 1962 में हासिल किया था। बता दें कि यदि राहुल गांधी को अभी भी 2024 के चुनाव के नतीजों को परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए एक और सादृश्य की आवश्यकता है, तो उन्हें क्रिकेट की दुनिया से इस पर विचार करना चाहिए। मान लीजिए कि विराट कोहली सार्वजनिक रूप से इतने ही मैचों में लगातार तीन शतक बनाने के लिए प्रतिबद्ध थे। लेकिन लगातार दो शतकों के बाद वह तीसरे मैच में तीन अंकों के स्कोर से दस या उससे अधिक रनों से पीछे रह गए। तो क्या उसे एक हारा हुआ, अच्छा बल्लेबाज़ नहीं कहा जा सकता? उत्तर स्पष्ट है।

वहीं 400 पार के नारे ने बीजेपी के अभियान को बहुत नुकसान पहुंचाया है। क्योंकि इसने कांग्रेस को यह झूठ फैलाने की अनुमति दी कि मोदी 400 सीटें चाहते हैं ताकि वह अंबेडकर के संविधान को खत्म कर सकें और अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी, एसटी) और यहां तक ​​कि अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण बंद कर देंगे। इस प्रचार ने यूपी में दलितों के एक बड़े वर्ग को गुमराह कर दिया। जिन्होंने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को वोट दिया, यहां तक ​​कि उन्होंने मायावती की बसपा को भी छोड़ दिया। हालांकि, वास्तविक प्रभाव में मुस्लिम विरोधी बयानबाजी ने मुसलमानों का भाजपा के खिलाफ वोट करने के दृढ़ संकल्प को ओर अधिक मजबूत किया। नेताओं के उकसावे का जवाब देते हुए मुसलमानों ने ऐसे दल के उम्मीदवारों को वोट किया जो भाजपा को हरा सकें। और यूपी में उन्होंने बसपा या अन्य समूहों द्वारा खड़े किए गए कमजोर मुस्लिम उम्मीदवारों को वोट देकर अपना वोट बर्बाद नहीं किया।

70 हजार से अधिक वोटों से हारने के बाद अधीर रंजन चौधरी ने कहा, कि तीस साल तक बेहरामपुर के लिए अपना पसीना और खून बहाया। मैं क्या कर सकता हूं। मैं अपनी हार स्वीकार करता हूं। गुजरात के एक मुस्लिम ने पठान को सामूहिक रूप से वोट देकर चौधरी को हरा दिया। एक और प्रासंगिक तथ्य, यूपी के रामपुर लोकसभा क्षेत्र में एक ऐसा गांव है जहां सौ फीसदी मुस्लिम आबादी है। इस गांव में योगी सरकार द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत करीब 550 आवास गरीबों को दिये गये थे। 2300 से अधिक वोट पड़े। लेकिन एक भी वोट बीजेपी के पक्ष में नहीं था। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने टिकट वितरण में योगी और राज्य के अन्य नेताओं की इच्छाओं की अनदेखी की। न केवल टिकट वितरण, बल्कि पूरे चुनाव प्रक्रिया के अन्य पहलुओं को दिल्ली द्वारा नियंत्रित किया गया था। इसलिए केंद्रीय नेताओं को पार्टी की विफलता की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

इस बीच, आइए कांग्रेस खेमे में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के मोदी की नैया पार लगाने की उम्मीद से निपटें। एक बात तय है कि जब तक मोदी प्रधानमंत्री रहेंगे व दृढ़ और आश्वत होकर भय मुक्त कार्य करेंगे। वे मनमोहन सिंह की तरह प्रधानमंत्री नहीं रह सकते। उल्लेखनीय है कि यूपीए प्रथम तथा द्वितीय में जितनी पार्टियां भी उतने ही प्रधानमंत्री पद के इच्छुक नेता थे। मोदी एनडीए 3-0 में वैसे ही तेवर में रह सकते हैं जैसे अभी तक रहे हैं। भले ही राहुल गांधी बेतुके आरोप लगाते रहे हैं उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। राहुल की आक्रामकता और टकराव को मोदी सरकार मजबूती से दबा देगी क्योंकि मोदी न तो विवश हैं और न ही मनमोहन सिंह की तरह कमजोर हैं।

Advertisement
Advertisement
Next Article