Soft Drink Industry में फिर से तेजी की उम्मीद, 10% तक होगी वृद्धि: रिपोर्ट
Soft Drink Industry: सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का शीतल पेय (सॉफ्ट ड्रिंक) उद्योग अगले वर्ष फिर से 10% से अधिक की वृद्धि दर पर लौटने की संभावना में है. इस साल मौसम से जुड़ी बाधाओं जैसे असमय बारिश और गर्मी के उतार-चढ़ाव के कारण इस क्षेत्र की वृद्धि प्रभावित हुई थी.
रिपोर्ट बताती है कि कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक्स (CSD) उद्योग, जिसका आकार लगभग 30,000 करोड़ रुपये है, मध्यम अवधि में यानी अगले कुछ सालों में दो अंकों की वृद्धि दर्ज कर सकता है. ऐतिहासिक रूप से भी यह क्षेत्र हर साल करीब 13-14% की दर से बढ़ा है.
कार्बोनेटेड ड्रिंक्स क्या होते हैं?
कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक्स गैर-मादक पेय होते हैं, जिनमें कार्बोनेटेड पानी (गैस मिला हुआ पानी), विभिन्न स्वाद और चीनी या बिना कैलोरी वाला स्वीटनर मिलाया जाता है. भारत में पेय उद्योग मुख्य रूप से लिक्विड रिफ्रेशमेंट बेवरेज (LRB) से बना है. इसमें निम्नलिखित श्रेणियां शामिल हैं:
- कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक्स (CSD)
- पानी (बोतलबंद)
- जूस और जूस-आधारित पेय
- एनर्जी ड्रिंक्स
- स्पोर्ट्स ड्रिंक्स
हिस्सेदारी का बंटवारा
- सॉफ्ट ड्रिंक्स – 40-45%
- एनर्जी ड्रिंक्स – 8-10%
- जूस – लगभग 5%
- स्पोर्ट्स ड्रिंक्स – 1-2%
- बाकी का हिस्सा पानी का है.
बाजार में हिस्सेदारी बराबर
रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय पेय बाजार का लगभग 50% हिस्सा स्थानीय ब्रांडों के पास है, जबकि बाकी 50% बड़ी कंपनियों के पास है जैसे बिसलेरी, एक्वाफिना, किन्ले और बेली. रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में प्रति व्यक्ति पेय पदार्थों की खपत अब भी बहुत कम है, यहाँ तक कि बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों से भी पीछे है.
GST के बाद प्रतिस्पर्धा में कमी
जीएसटी लागू होने के बाद स्थानीय ब्रांडों की बाजार में पकड़ थोड़ी कमजोर हुई है. उदाहरण के लिए, पहले दक्षिण भारत में 'बिंदु-जीरा' और उत्तर भारत में 'कराची सोडा' जैसे उत्पादों का 75-80% बाजार था, जो अब घट गया है. वहीं आज के उपभोक्ता अब सेहतमंद, कम चीनी वाले विकल्प और क्षेत्रीय स्वादों को प्राथमिकता दे रहे हैं. इससे कंपनियों को नए उत्पाद बनाने और बाजार में नवाचार लाने का मौका मिल रहा है.