'...संविधान के उल्लंघन का ठोस सबूत', वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई के दौरान क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?
वक्फ संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि संसद द्वारा पारित कानूनों को संवैधानिक माना जाता है जब तक कि असंवैधानिकता का स्पष्ट आधार न हो. कपिल सिब्बल ने तीन मुद्दों तक सुनवाई सीमित रखने के केंद्र के प्रस्ताव का विरोध किया और इसे संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन बताया.
Waqf Amendment Act: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई. मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पक्ष-विपक्ष की दलीलें सुनीं. इस दौरान अदालत ने कहा कि संसद द्वारा पारित कानूनों को प्रारंभिक रूप से संवैधानिक माना जाता है, जब तक कि उनके असंवैधानिक होने का कोई स्पष्ट आधार न हो.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार की तीन मुद्दों तक सुनवाई सीमित रखने की मांग केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से अनुरोध किया कि सुनवाई को तीन प्रमुख बिंदुओं तक सीमित रखा जाए:
1-वक्फ की संपत्तियों को डि-नोटिफाई करने का अधिकार, कोर्ट, यूजर या डीड द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों के संबंध में.
2-वक्फ बोर्ड और परिषद की संरचना, याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इनमें केवल मुस्लिम सदस्य होने चाहिए. (पदेन सदस्यों को छोड़कर)
3-कलेक्टर की जांच रिपोर्ट तक वक्फ की मान्यता स्थगित करना, जब तक यह साबित न हो जाए कि संपत्ति सरकारी नहीं है.
कपिल सिब्बल और सिंघवी का विरोध
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने केंद्र के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि ऐसे गंभीर कानून की जांच को सिर्फ तीन मुद्दों तक सीमित नहीं किया जा सकता. सिब्बल ने इसे संविधान के अनुच्छेद 25 के उल्लंघन के रूप में प्रस्तुत किया.
बाबरी मस्जिद का किया जिक्र
सिब्बल ने वक्फ संपत्तियों को नियंत्रण में लेने के प्रावधान को असंवैधानिक बताया और बाबरी मस्जिद का उल्लेख करते हुए कहा कि उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ संपत्ति का निर्धारण ऐतिहासिक रूप से मान्यता प्राप्त है. उन्होंने कहा कि एक बार संपत्ति वक्फ हो गई तो वह हमेशा के लिए वक्फ मानी जाती है.
वक्फ संपत्ति के पंजीकरण पर बहस
सुनवाई के दौरान सिब्बल ने कहा कि पुराने वक्फ अधिनियमों में पंजीकरण के लिए ‘Shall’ शब्द का उपयोग हुआ है, जिससे यह अनिवार्य होता है. हालांकि, CJI ने पूछा कि ऐसा न करने पर क्या परिणाम होता है. सिब्बल ने उत्तर दिया कि केवल मुत्तवल्ली के अधिकार खत्म होते हैं.
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प्रार्थना के अधिकार पर न्यायालय की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश ने खजुराहो के एएसआई संरक्षित मंदिरों का उदाहरण देते हुए पूछा कि क्या संरक्षित घोषित कर देने से पूजा का अधिकार खत्म हो जाता है. सिब्बल ने जवाब में कहा कि यदि संपत्ति की वक्फ मान्यता रद्द हो जाती है तो धार्मिक आचरण बाधित होता है, जिससे अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होता है.
इस दौरान सिब्बल ने नए कानून के उस प्रावधान पर भी आपत्ति जताई जिसमें वक्फ दान के लिए कम से कम पांच वर्षों से मुस्लिम धर्म का पालन करने की अनिवार्यता है. उन्होंने इसे अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन बताया. इस पर न्यायालय ने कहा कि किसी भी स्थानीय निकाय द्वारा आपत्ति उठाए जाने पर वक्फ की मान्यता स्वतः समाप्त हो सकती है, जो मनमानी प्रक्रिया का संकेत है.
औरंगाबाद की वक्फ संपत्तियों का किया जिक्र
CJI ने औरंगाबाद में वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों की ओर इशारा किया. सिब्बल ने कहा कि ग्राम पंचायत या कोई भी व्यक्ति आपत्ति दर्ज कर सकता है और फिर सरकारी अधिकारी जांच करेगा और निर्णय लेगा, जिससे निष्पक्षता पर प्रश्न उठता है. उन्होंने इसे नागरिक अधिकारों का हनन बताया. यह लेख वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट में हो रही संवैधानिक बहस, संबंधित दलीलों और न्यायालय की टिप्पणियों का निष्पक्ष और मूल सारांश प्रस्तुत करता है.