Som Pradosh vrat 2025: सोम प्रदोष का व्रत कर रहे हैं? तो जरूर पढ़ें ये कथा, वरना पूर्ण नहीं होगा व्रत
Som Pradosh Vrat 2025: हर महीने की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी 3 नवंबर 2025 (सोमवार) को पड़ रही है। सोमवार होने के कारण सोम प्रदोष व्रत का संयोग बन रहा है। यह दिन भगवान शिव को समर्पित है। प्रदोष का अर्थ है 'संध्या काल', जब दिन और रात का मिलन होता है।
कहते हैं कि इस समय भगवान शिव नंदी पर सवार होकर कैलाश से पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। प्रदोष व्रत की पूजा भी संध्या काल में होती है। मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करने पर मनवांछित फल मिलता है। आइए जानते हैं सोम प्रदोष व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा-
Som Pradosh Vrat 2025: सोम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 03 नवंबर को सुबह 05:07 से अगले दिन यानी 04 नवंबर को पूर्वाह्न 02:05 बजे तक रहेगी। इस हिसाब से सोम प्रदोष व्रत 03 नवंबर को ही रखा जाएगा। प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:34 बजे से रात 8:11 बजे तक है।
Som Pradosh Vrat Katha In Hindi: पढ़ें ये पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रहती थी। उसके पति का निधन हो चुका था, उसके परिवार के पास दूसरा कोई साधन नहीं था। इसलिए वह सुबह होते ही अपने बेटे के साथ भिक्षा के लिए निकल जाती थी, इसी तरह वह अपना जीवनयापन करते थे। इतनी कठिन परिस्थितियों के बावजूद भी वह हर महीने श्रद्धा से प्रदोष व्रत रखती थी।
एक दिन जब ब्राह्मणी भिक्षा मांग करके लौट रही थी, तभी उसे रास्ते में एक बालक मिला, जो बहुत ही दयनीय स्थिति में था। दया दिखाते हुए वह उस बालक को अपने साथ घर ले आई। वह बालक विदर्भ का राजकुमार था, जो युद्ध से बचकर भागा था क्योंकि उसके पिता को शत्रुओं ने बंदी बना लिया था। ब्राह्मणी उस बालक का ख्याल भी अपने बच्चे की तरह रखने लगी।
एक दिन जब ब्राह्मणी का पुत्र और राजकुमार खेल रहे थे, तभी वहां गंधर्व कन्या अंशुमति आती है जो राजकुमार को देखकर मोहित हो जाती है। ब्राह्मणी का बेटा तो घर आ जाता है लेकिन राजकुमार वहीं खड़े होकर अंशुमति नामक गंधर्व कन्या से बात कर रहा था। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलवाने के लिए ले आई, वह भी उसे देखकर प्रभावित हुए।
कुछ दिन बाद अंशुमति के माता-पिता के सपने में भगवान शिव आए और उन्होंने कन्या का विवाह राजकुमार से करने का आदेश दिया। शिव जी की आज्ञा से राजकुमार और अंशुमति का विवाह हुआ। इसके बाद राजकुमार ने गंधर्व राजा की मदद से अपने शत्रुओं को हराया और अपने पिता का राज्य वापस पाकर शासन करने लगा। राजकुमार जब राजा बना तो उसने ब्राह्मणी के बेटे को अपना प्रधानमंत्री बना लिया। इस प्रकार ब्राह्मणी के दिन बदल गए और उसके जीवन से दुःख-दर्द दूर हो गए। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
यह भी पढ़ें: कार्तिक पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी को कैसे करें प्रसन्न? जानें 5 अचूक उपाय