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कुछ ऐसी जगहें जहां दशहरे पर रावण का दहन नहीं बल्कि दशानन लंकेश की होती है पूजा

देवी की नौ दिन चली आराधना के बाद दशहरे के दिन असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक रावण के पुतलों का दहन किया जाता है, मगर मध्य प्रदेश में कई स्थान ऐसे है जहां रावण का दहन नहीं होता, बल्कि उसकी पूजा की जाती है।

11:55 AM Oct 15, 2021 IST | Ujjwal Jain

देवी की नौ दिन चली आराधना के बाद दशहरे के दिन असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक रावण के पुतलों का दहन किया जाता है, मगर मध्य प्रदेश में कई स्थान ऐसे है जहां रावण का दहन नहीं होता, बल्कि उसकी पूजा की जाती है।

कुछ ऐसी जगहें जहां दशहरे पर रावण का दहन नहीं बल्कि दशानन लंकेश की होती है पूजा
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देवी की नौ दिन चली आराधना के बाद दशहरे के दिन असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक रावण के पुतलों का दहन किया जाता है, मगर मध्य प्रदेश में कई स्थान ऐसे है जहां रावण का दहन नहीं होता, बल्कि उसकी पूजा की जाती है।
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यहां रावण को माना जाता है दामाद  
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राज्य के ऐसे इलाकों में हम आपको ले चलते हैं ऐसे गांवों में जहां दशहरे के मौके पर रावण का वध नहीं बल्कि पूजा होती है। रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका मंदसौर को माना जाता है। यही कारण है कि यहां के लोग रावण केा अपना दामाद मानकर पूजा करते है। यहां एक रावणरुंदी नाम का स्थान है। प्रचलित कहानियों के अनुसार मंदसौर का पहले नाम दशपुर हुआ करता था, क्योंकि यहां के राजपरिवार में जन्मी बालिका का नाम मंदोदरी का दामाद दशानन था।
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रावण की प्रतिमा के आगे महिलाएं करती है घूंघट 
यहां के नामदेव समाज के लोग रावण को अपना दामाद मनाते हुए दशहरे में पूजा करते है और साथ ही रावण की प्रतिमा के पैर छूकर सुख समृद्धि का आशीर्वाद मांगते है। वहीं शाम को प्रतीकात्मक तौर पर दहन की बजाय रावण का वध करते है। यहां की खास बात यह है कि इस क्षेत्र की महिलाएं रावण की प्रतिमा के सामने घूंघट करती है क्यांकि यहां दामाद के सामने घूंघट करने की परंपरा है ।
यहां रावण को मानते है पूजनीय, बुलाते है ‘बाबा’ 
इसी तरह विदिशा जिले की नटेरन तहसील के रावण नाम का गांव है, जहां दशहरे के मौके पर रावण की पूजा की जाती है । यहां के लोग रावण को पूज्यनीय मानते है और उन्हें रावण बाबा कहकर पुकारते है। यहां हर पुनीत कार्य या मंगल कार्य करने से पहले रावण की पूजा की जाती है।
प्रतिमा पर चन्दन का लेप और प्रतिदिन स्नान 
इस रावण गांव में रावण की विशाालकाय प्रतिमा है, जो जमीन पर लेटी हुई है। यहां मंदिर का स्वरुप दिया जा चुका है। यहां दशहरे के दिन प्रतिमा का स्नान कराने के बाद चंदन से लेप किया जाता है, साथ ही नाभि में तेल लगाया जाता है, क्योंकि भगवान राम ने उसकी नाभि में तीर मारा था, तेल इसलिए लगाया जाता है ताकि उसे पीड़ा न हो।
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