कोई लौटा दे मेरे बचपन के दिन
जी हां, जब से हमने अपने वरिष्ठ नागरिक के फेसबुक पेज पर बचपन की यादें…
जी हां, जब से हमने अपने वरिष्ठ नागरिक के फेसबुक पेज पर बचपन की यादें कम्पीटीशन शुरू किया है, जिसमें चाहे कोई अपने बचपन का किस्सा सुनाए, जिसे वो भूल नहीं सकते या कोई बचपन की कोई कविता, पोयम या एक्टिंग करके गाए या बच्चों जैसी ड्रेस पहने और 2 मिनट की वीडियो बनाकर भेजें।
मैंने सोचा था कम ही वीडियो आएंगी, परन्तु यह क्या वीडियो की तो बरसात ही हो गई। हमारे जज तो हर बार अपना सिर पकड़ लेते हैं कि इतना टैलेंट किसको फस्र्ट, सैकंड करें, किनको फस्र्ट दस में सलैक्ट करें।
अरे भाई मैं तो हमेशा यही कहती हूं कि आयु तो केवल एक संख्या है। सभी दिल से जवान और बच्चे ही हैैं, इसलिए मेरे सारे सदस्य चाहे वो 80, 90, 60, 70 साल के हैं, मुझे तो वह बच्चे ही दिखाई देते हैं। क्या वीडियो बना रहे हैं।
हां सबकी एक ही बात है कि कोई लौटा दे मेरे बचपन के दिन। वाक्य हमारे समय में बचपन बहुत भोलाभाला दिल से होता था, कोई चिंता नहीं होती थी। साधारण तरीके से आस-पड़ोस के बच्चे के साथ खेलना सीधी-सादी गेम होती थी। स्टापू, केरम बोर्ड, लूडो, खो-खो, गुल्ली-डंडा, दौड़-दौड़ाई, छुपम-छुपाई। शाम को सारे बच्चे पार्क में या गली-मोहल्ले में इकट्ठे होते थे, खूब खेलते थे, बरसात में नहाना, मिट्टी में खेलना, छुट्टी के बहाने ढूंढना। यही नहीं जब मां सुबह स्कूल के लिए उठाती थी तो अक्सर पेट दर्द का बहाना बनाना। यही नहीं खेलते-खेलते किसी का शीशा टूटना और मां से डांट खाना, परन्तु आगे से चूं नहीं करते थे।
बचपन कितना प्यारा होता था। गुड्डे-गुडिय़ा बनाते, उनकी शादी करते, फिर बारात और डोली का एक्शन करना, डोली में रोना, बारात में डांस करना। यही नहीं रामलीला करना, कोई राम बनता कोई सीता बनता, बचपन में सब मिलकर रहते थे, खूब खेलते थे। जब बरसात होती घर में माल-पूड़े बनते, पकौड़े बनते, खीर बनती। यही नहीं कोई मेहमान आता तो सब खुश होते थे कि उनके लिए पकवान बनेंगे तो हम भी मस्ती करेंगे। कोई दिखावा नहीं होता था, सिर्फ पढ़ाई में कम्पीटिशन जरूर होता था। एक-एक नम्बर के लिए मेहनत होती थी।
कोई गूगल नेट नहीं था। या तो मां-बाप पढ़ाते थे या भाई-बहन। अभी सारी ब्रांचें एक से बढ़कर एक हिस्सा ले रही हैं। कइयों का तो बहुत ही मजेदार परन्तु दिल से सभी भाग ले रहे हैं और कोई तो बच्चे बनकर भाग ले रहे हैं।
अगले अंक में एक-एक व्यक्ति से बातचीत करूंगी, उनकी परफोर्मेंस बताऊंगी। कमाल ही कर दी कोई कराल रहा है, कोई बच्चे की निक्कर, फ्रॉक पहनकर एक्टिंग कर रहा है। मेरे पास उनकी प्रस्तुति के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं। मेरी नजर में जो प्रतिभागी हैं व सभी श्रेष्ठ हैं। किसी की किसी से तुलना नहीं की जा सकती। इसलिए मैंने 15 तारीख तक समय बढ़ा दिया है, क्योंकि सब अपने बचपन में लौट आएं और हमारे बच्चे भी देखें, कैसा था हमारा बचपन। निश्चल पारदर्शितापूर्ण साफ मासूमियत थी। ईश्वर करे हम सब ऐसे ही खुशियां मनाते रहें। लोगों में खुशियां बांटते रहें। व्यस्त रहें, मस्त रहें, स्वस्थ रहें।