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अंतरिक्ष में कचरा

है कि अब अंतरिक्ष भी इंसान की दखल से नहीं बचा है। मनुष्य के अंतरिक्ष में पहुंचने के कई फायदे हैं तो नुक्सान भी।

10:33 AM Oct 17, 2024 IST | Aakash Chopra

है कि अब अंतरिक्ष भी इंसान की दखल से नहीं बचा है। मनुष्य के अंतरिक्ष में पहुंचने के कई फायदे हैं तो नुक्सान भी।

यह सही है कि अब अंतरिक्ष भी इंसान की दखल से नहीं बचा है। मनुष्य के अंतरिक्ष में पहुंचने के कई फायदे हैं तो नुक्सान भी। नुक्सान यह कि एक तो वहां कचरा पैदा हो रहा है और दूसरा यह कि अंतरिक्ष युद्ध का खतरा भी बढ़ रहा है। इस पर यकीन करना मुश्किल होगा, पर यह सच है कि मानव निर्मित सबसे पुराना कबाड़ अब भी अंतरिक्ष में है।

वर्ष 2018 में अंतरिक्षीय कचरे की भयावह आशंका ने तब सिर उठाया था जब बताया गया कि चीनी अंतरिक्ष केंद्र थियांगोंग-1 एक कबाड़ के रूप में किसी समय पृथ्वी से टकरा सकता है। चीनी अंतरिक्ष एजंसी से इस केंद्र का संपर्क 2016 में ही खत्म हो चुका था। बाद में पृथ्वी पर ही इसके गिरने की जानकारी मिली। हालांकि करीब नौ टन वजनी अंतरिक्ष केंद्र का वजन धरती की सतह तक पहुंचते-पहुंचते एक से चार टन ही रह जाने की खबर से कुछ राहत मिली थी। पर जब वर्ष 1979 में 75 टन से भी ज्यादा वजनी नासा का स्काईलैब धरती पर गिरा था तब दुनियाभर में घबराहट फैल गई थी लेकिन वह बिना कोई नुक्सान पहुंचाए समुद्र में गिर कर नष्ट हो गया था। अंतरिक्ष कचरा आज एक बड़ी व गंभीर समस्या इसलिए है क्योंकि तैरता हुआ अंतरिक्ष मलबा परिचालन उपग्रहों हेतु संभावित खतरा है क्योंकि इन मलबों से टकराने से उपग्रह नष्ट हो सकते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि अंतरिक्ष में एकत्रित हो रहा कचरे का ढेर भविष्य में धरती पर रह रहे लोगों के साथ-साथ यहां सक्रिय तमाम उपग्रहों, अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष स्टेशन के लिए भी बेहद घातक साबित हो सकता है। इतना ही नहीं इससे हमारी संचार व्यवस्था के भी प्रभावित होने का खतरा पैदा हो सकता है। अंतरिक्ष में तैरते कचरे से टकराने पर अंतरिक्ष यान और एक्टिव सैटेलाइट्स नष्ट हो सकते हैं। इसके साथ ही धरती पर इंटरनेट, जीपीएस, टेलीविजन प्रसारण जैसी अनेक आवश्यक सेवाएं भी बाधित हो सकती हैं। वास्तव में अंतरिक्ष कचरे के बहुत से खतरे हैं और इस पर अंकुश लगाने की पहल की जानी आवश्यक है, क्योंकि धरती के पर्यावरण की भांति ही आज अंतरिक्ष का पर्यावरण भी गड़बड़ाता चला जा रहा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार करीब 8,400 टन कचरा अंतरिक्ष में है जिसमें अधिकतर 18 हजार से लेकर 28 हजार माइल्स प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की कक्षा में घूम रहे हैं। अगर एक भी ऑब्जेक्ट कहीं गिरा तो वहां भारी तबाही मचा सकता है।

नासा के अनुसार अंतरिक्ष में इस समय 20 हजार से भी ज्यादा छोटे-बड़े उपकरण कचरा बन चुके हैं और पृथ्वी की निचली कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं। नासा के अनुसार भारत के 206 टुकड़े हैं। इनमें 89 टुकड़े पेलोड और 117 टुकड़े रॉकेट के हैं जबकि भारत से लगभग 20 गुना ज्यादा मलबा चीन का है, उसके लगभग 3,987 टुकड़े अंतरिक्ष में घूम रहे हैं। ये आब्जेक्ट 0.11 सेमी से कई मीटर तक बड़े हो सकते हैं। यहां जर्मन डेटाबेस कंपनी स्टेटिस्टा ने उन देशों की एक लिस्ट जारी की है जो अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा कचरा पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं। इस लिस्ट के अनुसार अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा कचरा फ़ैलाने में रूस नंबर वन पर है। रूस की 7 हजार से अधिक रॉकेट बॉडी कचरे के तौर पर स्पेस में घूम रही हैं। लिस्ट में दूसरे नंबर पर अमेरिका है। 5,216 स्पेस कचरे के टुकड़ों के साथ अमेरिका अंतरिक्ष में मलबे को बढ़ा रहा है। अमेरिका के बाद लिस्ट में तीसरे नंबर पर चीन का नाम है। चीन ने 3,845 मलबे के टुकड़ों को अंतरिक्ष में छोड़ा हुआ है जो भविष्य में स्पेस मिशनों के लिए चुनौती बन सकते हैं। वर्ष 2001 में कोलंबिया स्पेस शटल की दुर्घटना में भारतीय मूल की कल्पना चावला समेत सात अन्य अंतरिक्ष यात्रियों की जान चली गई थी। हालांकि इस दुर्घटना के अलग-अलग कारण बताए जाते हैं लेकिन कुछ रिपोर्टों में यह भी आशंका जताई गई थी कि अंतरिक्ष में भटकते एक टुकड़े से टकराने की वजह से यह भीषण त्रासदी हुई थी। सवाल है कि इस समस्या का हल क्या है? वैज्ञानिकों का कहना है कि अंतरिक्ष से यह कबाड़ बटोर कर वापस पृथ्वी पर लाना ही इसका एकमात्र समाधान है। हालांकि आज भी ऐसी कारगर तकनीक ईजाद नहीं हो पाई है जिससे अंतरिक्ष का कबाड़ साफ किया जा सके। पर भविष्य में प्रक्षेपित होने वाले उपग्रहों और बूस्टर राकेटों के इंजनों में ऐसी तकनीक कायम की जा सकती है कि इस्तेमाल के बाद वे अंतरिक्ष में न ठहरें, बल्कि वापस पृथ्वी पर आ गिरें। एक सस्ता विकल्प यह हो सकता है कि अपना मिशन पूर्ण कर लौट रहा कोई शटल थोड़ा-बहुत कचरा भी बटोर कर अपने साथ लेता आए।

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