अंतरिक्ष की बेटी सुनीता-तुम्हारी जय हो
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत की बेटियों ने देश और विदेश में हमारा नाम रोशन
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत की बेटियों ने देश और विदेश में हमारा नाम रोशन किया है लेकिन कुछ उपलब्धियां ऐसी हैं जो पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण बन चुकी हैं। एक ऐसी ही हमारी बेटी है सुनीता विलियम्स जिसने अंतरिक्ष की दुनिया में ऐसा रिकॉर्ड स्थापित किया है कि पूरी दुनिया उससे कुछ सीखने के लिए उतावली है। एक बार नहीं दो बार अंतरिक्ष जाना और सुरक्षित लौटकर आना और वह भी तब जबकि हमारे देश की पहली बेटी कल्पना चावला अंतरिक्ष से लौटते समय हादसे का शिकार हो गयी हों। महज 8 दिन के लिए अंतरिक्ष जाना और फिर वहां 286 दिन परिस्थितियों में फंसने के बाद वापिस लौटना यह काम आसान नहीं है। भारत की बेटी जो कि अंतरिक्ष परी बन चुकी है। गुजरात के मेहसाणा में गांव झूलासन में पैदा हुई और फिर अमरीका जाकर बस गयी। उपलब्धि हासिल करने के साथ-साथ बड़ी चुनौतियां झेलना और आगे भी झेलने के लिए तैयार रहना यह काम आसान नहीं है। मजबूत जज्बा चाहिए तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो दिन पहले देश की इस बेटी के नाम अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि मैं पत्र लिखने के लिए खुद को रोक न सका और मानता हूं कि अंतरिक्ष में जाना कितने बड़े धैर्य, साहस और असीम जज्बे का कमाल है। देश की इस बेटी के नाम एक सैल्यूट तो बनता है। इसीलिए मैं कहती हूं कि सुनीता तुम्हारा देश और दुनिया में स्वागत है और पूरी दुनिया आज आपको अपना प्रेरणास्रोत मान रही है।
सच बात यह है कि कभी इसी भारत में बेटियों के जन्म लेने पर चेहरे पर क्रोध के भाव आ जाते थे और इन बच्चियों को बोझ मानकर गर्भ में ही रौंदकर मार दिया जाता था लेकिन आज की तारीख में भ्रूण हत्या जैसी क्रूर मनोदशा पर भी भारत ने काबू पाया तो इसके लिए सरकार के प्रयासों को बधाई दी जानी चाहिए। मेरा शुरू से ही यह मानना रहा है कि बचपन में ही जब हम अपनी छतों पर खुले आसमान के नीचे तारों की छांव में जब सो रहे होते थे तो आसमान और अंतरिक्ष को लेकर कितने ही सुनहरे स्वप्न और ख्वाब ले रहे होते थे कि सितारों की यह दुनिया कैसी है? इस नन्हीं कल्पना को साकार करने के लिए कितनी मुश्किलें सुनीता विलियम्स ने झेली होंगी, यह सोचने वाली बात है। उसका हौसला सचमुच चट्टानों की तरह अडिग है। किसी रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट पर या अपनी यात्रा के दौरान 10-12 घंटे फंसने पर हम लोग कितना असहज हो जाते हैं लेकिन 282 दिन तक अंतरिक्ष की दुनिया में रहना कितनी मजबूत शक्ति सुनीता ने दिखाई होगी यह एक आम बात नहीं। मैं समझती हूं कि देश की बेटियां सचमुच इस जुझारू और चट्टान जैसे दिल वाली सुनीता से सीख सकते हैं। मेरी बड़ी इच्छा है कि मैं अंतरिक्ष की इस परी सुनीता विलियम्स से यह पूछूं कि जब हम जमीन से अंतरिक्ष को देखते हैं वह तो हम जानते ही हैं लेकिन अंतरिक्ष से पृथ्वी की तरफ देखते हैं तो वह कैसी लगती है। समय आने पर सुनीता विलियम सब बतायेंगी जो आज भारत की ही नहीं पूरी दुनिया के साथ-साथ अंतरिक्ष की भी बेटी है।
जब नासा ने अंतरिक्ष यात्रा के लिए अपनी तैयारियों को 10 साल पहले अंजाम देना शुरू किया तो सुनीता विलियम्स की कल्पना शक्ति कितनी मजबूत रही होगी कि उसने इसे व्यवहार में उतारते हुए खुद को एक दावेदार बताया। कितने लंबे-चौड़े इंटरव्यू और टेस्ट हुए होंगे जिसके दम पर उसका चयन हुआ। जीवन में कुछ करना है तो मजबूत इरादों के दम पर एक इंसान सब कुछ पा सकता है, अगर वह सुनीता विलियम्स को आदर्श मान लें तो। हमारी कल्पना शक्ति बहुत विशाल होती है और इसी के दम पर हम बहुत उम्मीदें भी रख लेते हैं। हमारा इसरो यानि कि इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन जो कि चंद्रमा तक पहुंच चुका है, 1984 में हमारे राकेश शर्मा अंतरिक्ष तक पहुंच चुके हैं, अब हमारे देशवासियों को अंतरिक्ष ले जाने की दिशा में नासा की तर्ज पर और भी बहुत कुछ करें तो देश के लिए यह एक अच्छी संभावनाओं के द्वार खोलेगा। सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष यात्रा को लेकर जो कि बहुत ही कठिन और चुनौतीपूर्ण रही है, के बारे में सब जान चुके हैं लेकिन मानव की अंतरिक्ष के लिए सोच और एक दूसरी दुनिया में रहकर पृथ्वी की तरह खुद को कठिन ढांचे में डालकर जीना आसान नहीं है। सुनीता जहां गौरव का केंद्र है वहीं वैज्ञानिकों के लिए एक खोज का विषय भी है कि उसने यह कठिनतम यात्रा किस फौलादी जज्बे के दम पर पाई। मैं इसे देश की उपलब्धि भी मानती हूं और पूरी नारी जाति के लिए सम्मान और गौरव का केंद्र बनने पर सुनीता विलियम्स को अपनी लेखनी समर्पित करती हूं और यही कहती हूं कि सुनीता तुम्हारी जय हो।