भाषा विवाद पर Pawan Kalyan का बड़ा बयान, बोलें-हिंदी हमारी मौसी है..झिझक क्यों...
साउथ फिल्मों के सुपरस्टार और अब आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने हाल ही में हैदराबाद में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान हिंदी भाषा को लेकर एक बड़ा और सधा हुआ बयान दिया। उन्होंने न सिर्फ हिंदी को अपनाने की वकालत की, बल्कि उसे देश को जोड़ने वाला एक मजबूत माध्यम भी बताया। उनके इस बयान की खूब चर्चा हो रही है, क्योंकि आमतौर पर दक्षिण भारत में हिंदी को लेकर थोड़ी दूरी या झिझक देखी जाती है।
पवन कल्याण का भाषण
हैदराबाद के “दक्षिण संवाद” कार्यक्रम की गोल्डन जुबली मनाई जा रही थी। इस खास मौके पर पवन कल्याण बतौर चीफ गेस्ट शामिल हुए। अपने भाषण में उन्होंने हिंदी को लेकर खुलकर बात की और कहा, “अगर हम विदेशी भाषाएं सीख सकते हैं, तो हिंदी सीखने में झिझक क्यों?”
उन्होंने कहा कि जब हमें किसी नौकरी या काम के सिलसिले में जर्मनी या जापान जाना होता है, तो हम जर्मन और जापानी भाषा सीख लेते हैं। फिर जब हिंदी हमारी अपनी देश की भाषा है, तो इसे सीखने और अपनाने में शर्म क्यों आती है?
‘हिंदी हमारी मौसी जैसी भाषा है’
पवन कल्याण ने अपने विचारों को और स्पष्ट करने के लिए एक अलग example भी दिया। उन्होंने कहा, “अगर तेलुगु हमारी मां है, तो हिंदी हमारी मौसी है। हम विदेशी भाषाओं को तो तुरंत अपना लेते हैं, लेकिन हिंदी से दूरी बनाकर रखते हैं, ये ठीक नहीं है।” यह तुलना सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है और लोगों को सोचने पर मजबूर कर रही है।
दिलों को जोड़ने का माध्यम है हिंदी
पवन कल्याण ने कहा कि हिंदी कोई थोपी गई भाषा नहीं है। यह एक ऐसी भाषा है, जिसे देश के लगभग हर कोने में समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि भाषा का काम लोगों को जोड़ना होता है, तोड़ना नहीं। हमारे देश में विविध भाषाएं और बोलियां हैं, लेकिन हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो अलग-अलग राज्यों को एक सूत्र में बांध सकती है। उन्होंने APJ अब्दुल कलाम का उदाहरण देते हुए कहा कि वे तमिलनाडु से थे, लेकिन उन्हें हिंदी बहुत पसंद थी। उन्होंने हमेशा यही कहा कि भाषा दिलों को जोड़ने का जरिया होती है। ऐसे में हमें भी यह समझना होगा कि हिंदी को अपनाना कोई शर्म की बात नहीं, बल्कि एक कदम है राष्ट्रीय एकता की ओर।
सोशल मीडिया पर हिंदी का इस्तेमाल
पवन कल्याण ने खुद का उदाहरण देते हुए कहा कि वह सोशल मीडिया पर अक्सर हिंदी में पोस्ट करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हिंदी अधिकतर लोगों द्वारा समझी जाती है और इससे संवाद आसान हो जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि यह जरूरी नहीं कि हर कोई हिंदी को अपनी पहली भाषा बनाए, लेकिन इसका सम्मान करना और इसे समझना हर भारतीय की जिम्मेदारी है।
विरोधियों को मिला जवाब?
यह बात भी दिलचस्प है कि पवन कल्याण के इस बयान को उस संदर्भ में भी देखा जा रहा है, जहां दक्षिण भारत के कई नेताओं ने हिंदी की आलोचनी की हैं।
कई बार केंद्र सरकार पर यह आरोप भी लगता रहा है कि वह हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है। लेकिन पवन कल्याण ने साफ कर दिया कि हिंदी थोपने की बात नहीं है, बल्कि इसे समझने और अपनाने की बात है। उन्होंने कहा, “यह कोई मजबूरी नहीं है, बस एक पहल है आपसी समझ बढ़ाने की।”
फैंस और दर्शकों की प्रतिक्रिया
पवन कल्याण के इस बयान को सोशल मीडिया पर काफी सराहा जा रहा है। उनके फैंस उन्हें एक जिम्मेदार नेता के तौर पर देख रहे हैं, जो न सिर्फ मनोरंजन के क्षेत्र में बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर भी अपनी राय रखने में सक्षम हैं। हिंदी भाषी दर्शक भी उनके बयान से काफी प्रभावित नजर आए।
वर्क फ्रंट पर क्या चल रहा है?
पवन कल्याण के फिल्मों की बात करें तो वह जल्द ही अपनी फिल्म ‘हरी हरा वीरा मल्लू’ के साथ बड़े पर्दे पर वापसी करने वाले हैं। यह एक पीरियड ड्रामा फिल्म है जिसमें वह योद्धा के रोल में नजर आएंगे। हालांकि इसकी रिलीज डेट अभी तय नहीं हुई है लेकिन फैन्स बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इस फिल्म के कई पोस्टर और टीज़र पहले ही रिलीज हो चुके हैं, जिन्हें दर्शकों ने खूब पसंद किया है।
पवन कल्याण का यह बयान न केवल भाषा को लेकर सोच बदलने वाला है, बल्कि यह उस मानसिकता पर भी चोट करता है जो यह मानती है कि हिंदी अपनाना क्षेत्रीय अस्मिता के खिलाफ है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि अपनी भाषा से प्यार करना और दूसरी भाषा को सम्मान देना, दोनों साथ-साथ हो सकते हैं।
हिंदी को लेकर उनकी सोच एक प्रगतिशील भारत की तस्वीर पेश करती है—जहां भाषाएं दीवार नहीं, पुल बनें। और यही सोच भारत को विविधता में एकता की मिसाल बनाती है।