टॉप न्यूज़भारतविश्वराज्यबिजनस
खेल | क्रिकेटअन्य खेल
बॉलीवुड केसरीराशिफलसरकारी योजनाहेल्थ & लाइफस्टाइलट्रैवलवाइरल न्यूजटेक & ऑटोगैजेटवास्तु शस्त्रएक्सपलाइनेर
Advertisement

बोलो संविधान की जय!

NULL

07:34 AM Apr 11, 2019 IST | Desk Team

NULL

भारत का जो लोकतान्त्रिक ढांचा बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने आजाद भारत के लोगों को सौंपा है वह केवल कानून की किताब नहीं है बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में बराबरी की हिस्सेदारी तय करने वाला ऐसा शाहकार है जिसमें आम आदमी स्वयं कह उठे कि उसका ही शासन उस पर लागू है इसीलिए संविधान को स्वीकार करने वाले कोई और नहीं बल्कि ‘हम भारत के लोग’ हैं। इसी शासन को स्थापित करने की पहली जिम्मेदारी बाबा साहेब ने चुनाव आयोग को दी और तय किया कि हर पांच साल बाद होने वाले चुनावों में उसकी भूमिका सर्वाधिकार सम्पन्न ऐसी संस्था की होगी जिसके समक्ष राजा और रंक बराबरी पर तुलेंगे अर्थात चुनाव प्रक्रिया चालू होने पर वह सत्तारूढ़ दल से लेकर विपक्ष के हरेक दल को एक नजर से देखते हुए उनके उतारे गये सभी प्रत्याशियों के लिए एक समान वातावरण देगा और प्रधानमन्त्री पद पर काम करने वाला व्यक्ति भी उसी पलड़े पर तोला जायेगा जिस पर एक निर्दलीय उम्मीदवार तुलता है।

चुनावी रण में प्रधानमन्त्री से लेकर मुख्यमन्त्री तक अपने सरकारी औहदों को एक तरफ रखकर ही राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों के रूप में चुनाव प्रचार करेंगे और सभी के लिए एक जैसा पैमाना होगा परन्तु इसके साथ इस निदेशक सिद्धान्त के तहत ऐसे व्यावहारिक नियम समाहित थे जो स्वयमेव ही इस तरह लागू होंगे कि चुनावी रणक्षेत्र में प्रत्येक राजनैतिक दल और प्रत्याशी खुद को बराबरी पर खड़ा समझे। जिस तरह भारतीय परंपरा के अनुसार युद्ध में सूर्य छिपने के बाद सेनाएं अपनी बैरकों में लाैट जाती थीं और आमने-सामने युद्ध होने पर पीठ पर वार करना युद्ध नियमों के खिलाफ समझा जाता था उसी प्रकार लोकतान्त्रिक भारत के चुनावी युद्ध के समय यह नियम सख्ती से लागू था कि सत्ता में रहने वाले किसी भी राजनैतिक दल की सरकार की निगरानी में काम करने वाला कोई भी सरकारी संस्थान या विभाग ऐसा कोई नया काम नहीं करेगा जिसका प्रभाव राजनैतिक विरोधियों पर पड़े। इसकी व्यवस्था इस प्रकार की गई कि चुनाव आयोग को चुनावी समय में ऐसी खुद मुख्तारी दी गई जिससे सामान्य प्रशासन के सभी अंग उसके मातहत काबिज सरकारों के जरिये काम करें। मध्य प्रदेश और दिल्ली में मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबियों पर आयकर छापों को लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त श्री सुनील अरोड़ा ने इस बारे में इस विभाग के मुखिया और वित्त सचिव को तलब करके उनसे इस बाबत सफाई मांगी। यह उनका संवैधानिक कर्तव्य था जिसका उन्होंने बेबाकी से पालन किया।

संविधान में चुनाव आयोग के अधिकारों की बाबत यह धारा बाबा साहेब ने बेवजह ही नहीं जोड़ी थी कि चुनावी समय में भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी कोई दखल नहीं दे सकता और आयोग का फैसला ही अन्तिम होगा मगर स्वतन्त्र न्यायपालिका अपना काम करती रहेगी और अपना धर्म निभाती रहेगी। अतः आज राफेल लड़ाकू जहाज खरीदी मामले पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने साफ कह दिया है कि इस सम्बन्ध में दायर पुनर्विचार याचिका पर नये सबूतों की रोशनी में आगे विचार होगा। न्यायालय ने सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया है कि जो नये सबूत उसके सामने पेश किये गये हैं वे रक्षा मन्त्रालय से चोरी हुई एक फाइल से लिए गये हैं।

विद्वान न्यायाधीशों ने कहा है कि सबूत केवल सबूत होते हैं। सवाल यह है कि वे सच्चे हैं या नहीं। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने आज उस फिल्म के रिलीज होने पर भी रोक लगा दी है जिसे लेकर फिल्म अभिनेता विवेक ओबेराय राजनैतिक धमाचौकड़ी मचाये हुए थे और अपनी कला की स्वतन्त्रता की दुहाई दे रहे थे। यह फिल्म प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के जीवन पर बनाई गई है। यह बात गौर करने वाली है कि इसके चुनावी विवाद से जुड़े होने की वजह से ही सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला चुनाव आयोग पर छोड़ दिया था। आज चुनाव आयोग ने इसे आदर्श चुनाव आचार संहिता के विरुद्ध मानते हुए चुनाव समाप्त होने तक जारी करने पर रोक लगा दी है और इसके साथ ही नमो टीवी पर भी रोक लगा दी है। यह है बाबा साहेब का वह संविधान जो हमें हमारी सरकार बनाने के लिए एक बराबर और एक समान अवसर उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग को सौंपता है।

श्री सुनील अरोड़ा इससे पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित कई अन्य नेताओं के बयानों की भी जांच कर रहे हैं। यह है चुनाव आयोग जो हमें बाबा साहेब ने दिया है। इतना ही नहीं उन्होंने सरकारी प्रचार माध्यम दूरदर्शन को भी उल्टे हाथों लेते हुए निर्देश जारी किया है कि प्रत्येक राजनैतिक दल को निर्धारित नियमों के तहत ही अपने प्रचार में जगह दे मगर यह इस देश के राजनैतिक दलों की भी जिम्मेदारी है कि वे अपनी सत्ता लिप्सा के लिए आयोग को इस कदर परेशान न करें कि उसके पास शिकायतों का अम्बार ही लगा रहे। सबसे पहले उन्हें ही उस लोकतन्त्र का सम्मान करना चाहिए जिसके माध्यम से वे सत्ता पाने में सफल हो पाते हैं। इसलिए संविधान का पालन करते हुए हम जो विजय प्राप्त करेंगे वही लोगों की विजय होगी वरना छल से चक्रव्यूह बनाकर अभिमन्यु की हत्या करने की विजय को हम जानते हैं कि आज भी भारत के गांवों में क्या कहा जाता है। इसलिये सभी को सबसे पहले संविधान की जय बोलनी चाहिए और चुनाव आयोग का आदर व सत्कार करना चाहिए।

Advertisement
Advertisement
Next Article