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साउथ एशिया में ‘​​स्प्रिंग’

04:45 AM Sep 13, 2025 IST | Arjun Chopra
पंजाब केसरी के डायरेक्टर अर्जुन चोपड़ा

दक्षिण एशिया के देशों में जबरदस्त उथल-पुथल का दौर जारी है, जिससे भू-राजनीतिक स्थितियां बदल रही हैं, उससे 2011 के अरब स्प्रिंग की यादें ताजा हो गई। पहले बंगलादेश में शेख हसीना का तख्ता पलट किया गया, अब जेन जेड के आंदोलन ने नेपाल में तख्ता पलट कर दिया। इससे पहले श्रीलंका के आर्थिक संकट के चलते सत्ता परिवर्तन हुआ। इन देशों में जनविद्रोह के कई कारण रहे लेकिन इन जन बगावत के पीछे वैश्विक शक्तियां भी जिम्मेदार रहीं। दक्षिण एशिया कहां जा रहा है, यह एक बड़ा सवाल है। पाकिस्तान में सत्ता और तख्ता पलट तो एक ​िनयमित परम्परा की तरह चल पड़ा है। भारत में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हैं आैर लोकप्रिय सरकार में लोगों का विश्वास है।
इस कड़ी में जब हम दक्षिण एशियाई वसंत की बात करते हैं, तो हम दक्षिण एशियाई क्षेत्र पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान आदि जैसे देशों में विद्रोहों, विरोध प्रदर्शनों या आंदोलनों की एक सम्भावित या वास्तविक लहर के बारे में सोचते हैं जो माैजूदा राजनीतिक ढांचों को चुनौती देते हैं, या वर्तमान शासन व्यवस्था के प्रति असंतोष व्यक्त करते हैं। ये आंदोलन हमेशा अरब वसंत के समान पैटर्न की तरह समान कुंठाओं से प्रेरित होते हैं। जैसे भ्रष्टाचार, राजनीतिक उत्पीड़न, आर्थिक मुद्दे या असमानता यह आक्रोश राजनीति व्यवस्था पर बदलाव के लिए चोट करता है।
इस कड़ी में श्रीलंका में 2022 में एक बड़ा आर्थिक संकट देखा गया जो राजनीतिक अशांति में बदल गया। देश को खाद्य, ईंधन आैर दवाओं की भारी कमी के साथ-साथ आसमान छूती मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ा। यह अांशिक रूप से सरकारी कुप्रबंधन और खराब आर्थिक नीतियों के कारण था। 2022 की शुरूआत में राष्ट्रपति मोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग को लेकर नागरिक सड़कों पर उतर आए। संसद पर भी प्रदर्शनकारियों ने कब्जा कर लिया था। परिणाम यह निकला कि विरोध प्रदर्शन इतने व्यापक और तीव्र हो गए कि राजपक्षे अंततः देश छोड़कर भाग गए और उनकी सरकार गिर गई। श्रीलंका का संकट महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने इस बात पर प्रकाश डाला कि आर्थिक कुप्रबंधन दक्षिण एशिया में राजनीतिक स्थिरता को कितनी गहराई से प्रभावित कर सकता है।
पाकिस्तान में राजनीतिक विरोध और अस्थिरता की बात करें तो वहां राजनीतिक भ्रष्टाचार, सैन्य प्रभाव और आर्थिक अस्थिरता के खिलाफ पिछले कुछ वर्षों में कई प्रोटैस्ट हुए हैं। 2022 में इमरान खान का अपदस्थ होना और इसके बाद पूर्व क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान को अविश्वास प्रस्ताव में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया। उनके समर्थकों, जिनमें से कइयों ने उनके अपदस्थ होने को सैन्य आैर विदेशी शक्तियों से जुड़ी एक बड़ी साजिश का ​िहस्सा माना, ने उनकी सत्ता में वापसी की मांग करते हुए ​विरोध प्रदर्शन शुरू कर ​िदया। इन विरोध प्रदर्शनों ने पाकिस्तानी राजनीति में नागरिक सरकार, सैन्य प्र​ितष्ठान और जनता के बीच गहरे विभाजन को उजागर किया। इसी तरह 2014 में भी इमरान खान और राजनेता ताहिर-उल-कादरी के नेतृत्व में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था, जिसका उद्देश्य नवाज शरीफ की सरकार को सत्ता से हटाना था आैर उस पर चुनावों में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था। हालांकि इससे सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ, लेकिन इसने राजनीतिक परिदृश्य को हिलाकर रख दिया। आज भी वहां लोकतंत्र खतरे में है।
बंगलादेश में पिछले कुछ दशकों में राजनीतिक विरोध प्रदर्शन एक नियमित घटना रही है। अवामी लीग (एएल) और बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के बीच अक्सर टकराव होता रहा है। सन् 2013 में शाहबाग आंदोलन के दौरान युवा कार्यकर्ता शाहबाग में एकत्रित हुए आैर 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पाकिस्तान के साथ सहयोग करने के आरोपी युद्ध अपराधियों के लिए मृत्युदंड की मांग और भारी उठा-पटक हुई। जबकि इससे पूर्व 2018 में ढाका में हजारों छात्र सड़कों पर उतर आए और एक सड़क दुर्घटना में दो छात्रों की मौत के बाद सुरक्षित सड़कों की मांग की। ये विरोध प्रदर्शन जन सुरक्षा, शिक्षा और भ्रष्टाचार के प्रति सरकार की उपेक्षा की व्यापक आलोचना में बदल गया। शेख हसीना देश छोड़कर आज पुराने ​मित्र भारत की ‘शरण’ में हैं लेकिन वहां जनाक्रोश पूरी तरह से कंट्रोल नहीं कहा जा सकता।
सच्चाई तो यह है कि हमारे पड़ोसी देश नेपाल में राजशाही और अधिनायकवाद के विरुद्ध जन विद्रोहों का इतिहास रहा है। 1990 का जन आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था जिसने नेपाल के राज्य को लोकतांत्रिक सुधार लागू करने और कुछ शक्तियां त्यागने के लिए सफलतापूर्वक मजबूर किया, जिसके परिणामस्वरूप एक संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई।
याद करो जब वहां 2006 में एक ओर आंदोलन के परिणामस्वरूप राजशाही का खात्मा हुआ और नेपाल एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया। आज की तारीख में वहां जेन जेड सरकार के खिलाफ तख्ता पलट के लिए सड़कों पर हैं। वहां अंतरिम सरकार के गठन की तैयारियां भी चल रही हैं लेकिन आंदोलनकारियों का जेन जेड ग्रुप दोफाड़ हो चुका है।
यद्य​िप अरब​ स्प्रिंग के परिणामस्वरूप कुछ देशों (जैसे ट्यूनीशिया और मिस्र) में शासन परिवर्तन हुए लेकिन परिणाम मिश्रित रहे। कुछ राष्ट्र लोकतंत्र की ओर बढ़े, जबकि अन्य गृहयुद्ध या अधिनायकवादी शासन में उतर गए। दक्षिण एशिया में, ऐसे आंदोलनों को समान चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है तथा आंदोलनकारी सीधे सरकार से टक्कर ले रहे हैं। राजनीतिक अस्थिरता हिंसा या कुछ मामलों में सैन्य हस्तक्षेप का कारण बन सकती है। ऐसा लगता है कि दक्षिण एशिया स्प्रिंग केवल सत्ता परिवर्तन की दास्तान नहीं बल्कि जनता की आवाज की बुलंदी का भी उदाहरण है जो लोकतंत्र बहाली की मांग करती है और इसमें परिवर्तन की आहट या उम्मीद भी दिखाई देती है।

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