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भगदड़ : कब सीखेंगे सबक

04:46 AM Sep 29, 2025 IST | Aditya Chopra
भगदड़   कब सीखेंगे सबक
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा
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देश में भीड़ के दौरान मची भगदड़ में मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। तमिलनाडु के करूर में अभिनेता से राजनीतिज्ञ बने थलपति विजय की रैली में भगदड़ मचने से 39 लोगों की मौत हो गई और अनेक लोग घायल हो गए। पिछले वर्ष दिसम्बर में हैदराबाद में सुपर स्टार अल्लू अर्जुन की फिल्म पुष्पा-2 के प्रीमियम में मची भगदड़ में एक महिला की मौत हो गई थी और कई घायल हुए थे। भगदड़ तब मची जब अल्लू अर्जुन ​​​को देखने के लिए भीड़ बेकाबू हो गई। इसी वर्ष 4 जून को आईपीएल में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलुरु की जीत के जश्न में बैंगलुरु में निकाली गई विक्ट्री परेड में भगदड़ मचने से 11 लोगों की मौत हो गई थी और 50 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। देश में 2023 से 2025 तक मंदिरों, रेलवे स्टेशनों, महाकुंभ और अन्य सार्वजनिक आयोजनों में मची भगदड़ के दौरान लगभग 1500 लोग मारे जा चुके हैं। हर हादसे के बाद मृतकों के परिवारों को मुआवजे की घोषणा कर दी जाती है। जांच के लिए समितियां बना दी जाती हैं और फिर शुरू हो जाता है सिसायत का खेल। हमने इतने हादसों के बावजूद कोई सबक नहीं सीखा। थलपति विजय की रैली में भगदड़ कब और कैसे मची इस की जानक​ारियां सामने आने लगी हैं। मौके पर मौजूद चश्मदीदों और पीड़ितों के परिजन भयावह तस्वीर बयां कर रहे हैं। थलपति विजय को रैली में सुबह 11 बजे आना था लेकिन वह 7 घंटे देरी से पहुंचे। 10 हजार लोगों की भीड़ आने की उम्मीद थी लेकिन शाम तक फिल्म स्टार को देखने के लिए इतनी भीड़ पहंुच गई कि उसको नियंत्रित करने के लिए कुछ नहीं किया जा सका। कई लोग बच्चों के साथ थे और भूखे-प्यासे रहकर भी वे वहीं खड़े रहे और दुखद हादसे का शिकार हो गए। भगदड़ भीड़ प्रबंधन की असफलता की स्थिति में पैदा हुई मानव निर्मित आपदा है। हमने तूफानों से प्राकृतिक आपदाओं से लड़ना सीखा लिया है। तूफान आने की चेतावनी से कुछ घंटे पूर्व ही लाखों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया जाता है लेकिन हम आज तक भीड़ को नियंत्रित करना नहीं सीख पाए। भगदड़ में अधिकांश मौतें दम घुटने से होती हैं।
भगदड़ बेहद खतरनाक और घातक स्थिति होती है। किसी भी जगह पर जब भीड़ उसकी क्षमता से अधिक हो जाती है और लोगों के पास निकलने का रास्ता नहीं होता है। भीड़ की वजह से लोगों को पैर रखने की जगह नहीं मिलती है। ऐसी स्थिति में किसी तरह की अफवाह या दुर्घटना होने पर भीड़ बेकाबू हो जाती है। इसे भीड़ में हलचल भी कहा जाता है। इसकी वजह से ही भगदड़ की स्थिति बनती है। इसी तरह भीड़ में हलचल का मतलब भीड़ का बेतरतीब तरीके से एक से ज्यादा दिशाओं में एक ही समय में आगे बढ़ना है। ऐसे में लोगों को चलने के लिए जगह कम होती है, वो एक-दूसरे के बीच दब जाते हैं। जब लोग एक-दूसरे से बहुत नजदीक होते हैं तो 'फोर्सेज का ट्रांसमिशन' यानी बल का संचरण हो सकता है। इस फोर्स ट्रांसमिशन को आपने भी कभी न कभी तब महसूस किया होगा जब आप एक बहुत भीड़भाड़ वाली किसी लाइन में खड़े हुए होंगे। जब पीछे से अचानक धक्का लगता है तो व्यक्ति खुद भी उस धक्के को अपने से आगे खड़े व्यक्ति को ट्रांसफर कर देते हैं। ऐसे में अपना संतुलन बनाए रखना और अपने पैरों पर खड़े रहना लोगों के लिए बहत मश्किल हो जाता है।
दक्षिण भारत में फिल्मी सितारों के प्रति दीवानगी असाधारण और अद्वितीय है। जो सिर्फ मनोरंजन से कहीं अधिक है। फिल्मी सितारे दक्षिण भारत में एक आईकन, राजनीतिज्ञ और यहां तक कि एक देवता का दर्जा भी पा लेते हैं। उनके नाम पर मंदिर भी बने हुए हैं।
इस असाधारण दीवानगी के पीछे कई कारण हैं। अम्मा जयललिता और करूणानिधि, एनटी रामाराव की पीढ़ी से लेकर मौजूद पीढ़ी के फिल्मी सितारे राजनीति में आते और सफल भी होते रहे हैं। कुछ सुपर स्टार अपने चै​िरटी और सामाजिक कार्यों के लिए भी जाने जाते हैं जिससे वे अपने प्रशंसकों के बीच अधिक सम्मान पाते हैं। दक्षिण भारतीय फिल्में अपनी सांस्कृतिक जड़ों के प्रति ईमानदार रहती हैं जो स्थानीय परम्पराओं, भाषाओं और जीवनशैली को दर्शाती हैं। यही सांस्कृतिक प्रमाणिकता दर्शकों में गहरा भावनात्मक संंबंध पैदा करती है। यही कारण है कि उनकी फिल्में सिर्फ मनोरंजक ही नहीं होती, बल्कि फिल्मों के रिलीज होने पर उत्सव मनाए जाते हैं। रजनीकांत, कमल हसन, अल्लू अर्जुन, प्रभास और जूनियर एनटीआर के प्रति दर्शकों का जुनून देखने को मिलता है। दक्षिण भारत में लोगों की दीवानगी बॉलीवुड से कई मायनों में अलग है। तमिल सुपर स्टार विजय को राजनीतिक पार्टी बनाए कोई ज्यादा समय नहीं हुआ। 10 महीने पहले उन्होंने जब पहली राजनीतिक रैली की थी तो 2 लाख से अधिक लोग शामिल हुए थे। आयोजकों को शायद अंदाजा ही नहीं होगा कि इतनी भीड़ जमा हो जाएगी। हमारे देश में आए दिन जगह-जगह बड़े धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक आयोजन होते रहे हैं।
ऐसे में जरा सी लापरवाही भगदड़ का कारण बन सकती है। हादसों को देखते हुए प्रभावी भीड़ प्रबंधन तंत्र विकसित करने की जरूरत है। भगदड़ प्रशासनिक चूक का परिणाम होती है। देशभर में पुलिस बल को भीड़ प्रबंधन के गुर सिखाने की जरूरत है। उन सभी जगहों पर भीड़ प्रबंधन की तत्काल और अनिवार्य व्यवस्था करनी चाहिए जहां बड़ी भीड़ उमड़ती हो। भीड़ प्रबंधन के ​िदशा-निर्देश पहले से ही उपलब्ध हैं लेकिन उन्हें व्यवहार में नहीं लाया जाता। एक व्यक्ति को स्वतंत्र घूमने के लिए एक वर्ग गज जगह की जरूरत होती है लेकिन हम बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों और हवाई अड्डों की कतारों में भी इतनी जगह नहीं छोड़ते। लोग भीड़भाड़ वाले स्थानों पर छोटे बच्चों को ले जाने से परहेज करें। प्रशासन और लोगों को खुद भी सतर्कता और समझदारी बरतनी चाहिए।

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