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महाकुम्भ की कहानी...

महाकुंभ का भव्य आयोजन आखिरकार समाप्त हो गया। राज्य सरकार के कई अधिकारी…

09:21 AM Mar 13, 2025 IST | Kumkum Chaddha

महाकुंभ का भव्य आयोजन आखिरकार समाप्त हो गया। राज्य सरकार के कई अधिकारी…

महाकुंभ का भव्य आयोजन आखिरकार समाप्त हो गया। राज्य सरकार के कई अधिकारी अब राहत की सांस लेंगे। कुंभ मेला एक प्राचीन हिंदू तीर्थयात्रा है, जिसकी परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। इस बार का आयोजन जिसे महाकुंभ कहा गया। एक विशेष खगोलीय संयोग, त्रिवेणी योग के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण था। यह संयोग 144 वर्षों बाद घटित हुआ। ऐसी मान्यता है कि इस पावन क्षण में पवित्र संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है लेकिन इस वर्ष, 13 जनवरी से 26 फरवरी के बीच यह एक अभूतपूर्व उत्सव में बदल गया ‘विश्व इतिहास में अप्रत्याशित और अविस्मरणीय’ ऐसा दावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया। उनके अनुसार इस वर्ष के महाकुंभ में 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने भाग लिया। रिपोर्ट्स के अनुसार अंतिम शाही स्नान के दिन श्रद्धालुओं पर पुष्पवर्षा भी की गई। महाशिवरात्रि जो भगवान शिव को समर्पित है, के दिन यह आयोजन संपन्न हुआ।

राज्य सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस आयोजन की सफलता पर गर्व महसूस कर रहे हैं। राज्य विधानसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार 7500 करोड़ रुपये के निवेश से 3 लाख करोड़ रुपये का व्यापारिक लाभ हुआ।

इस पहलू पर योगी सही साबित हुए। महाकुंभ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक विशाल आर्थिक अवसर भी था जिसमें आस्था से अधिक व्यापार हावी रहा। यह आयोजन उन विशिष्ट अतिथियों के लिए सुगम था जो वास्तविक श्रद्धालुओं की तुलना में अधिक सुविधाओं का लाभ उठा रहे थे।

जहां विशिष्ट लोगों के लिए खास इंतजाम किए गए थे, वहीं आम श्रद्धालुओं को गंगा स्नान के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। इस आयोजन में वीआईपी और आम लोगों के बीच स्पष्ट अंतर देखने को मिला। संपन्न और प्रभावशाली लोगों के लिए यह एक आरामदायक आध्यात्मिक यात्रा थी, जबकि गरीब और आम श्रद्धालु इसके कठिनाइयों से भरे पहलुओं का सामना कर रहे थे।

हालांकि इसे योगी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि भी माना जा सकता है, क्योंकि इसने एक विशाल जनसमूह का सफल प्रबंधन किया। करोड़ों लोगों ने इस आयोजन में हिस्सा लिया और आस्था की डुबकी लगाई। जहां कुछ के लिए यह एक आनंददायक यात्रा थी, वहीं अधिकांश श्रद्धालुओं के लिए यह एक आध्यात्मिक और जीवन में एक बार आने वाला अनुभव था। तमाम कठिनाइयों के बावजूद जिन्होंने यह यात्रा पूरी की उन्हें कोई पछतावा नहीं था।

28 जनवरी से कुछ दिन पहले संगम घाट पर हुई भगदड़ के संदर्भ में प्रशासन के तथाकथित ‘मूवमेंट प्लान’ पर भी सवाल उठे। प्रशासन ने वीआईपी मूवमेंट के लिए 28 पांटून पुलों को बंद कर दिया जिससे हजारों श्रद्धालु संकरी गलियों में धकेल दिए गए। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए केवल एक पुल दोपहर तक खुला रखा गया जिससे पवित्र स्नान के लिए उमड़ी अभूतपूर्व भीड़ के बीच भयंकर अव्यवस्था फैल गई।

उस शाम लाउडस्पीकरों पर घोषणा हुई कि मौनी अमावस्या का शुभ मुहूर्त आरंभ हो गया है और श्रद्धालुओं को घाट की ओर बढ़ना चाहिए। लोग घाट की ओर बढ़ने लगे लेकिन जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गई स्थिति बेकाबू हो गई।

लोग एक-दूसरे को धक्का देने लगे, कई गिर पड़े, बच्चे कुचले गए, घायल लोगों के शव चारों ओर बिखरे नजर आए। धार्मिक मंत्रोच्चार की जगह चीख-पुकार ने ले ली। कुछ लोग खंभों पर चढ़ गए तो कुछ ने घाट के पास जगह बनाने के लिए दूसरों को कुचल दिया।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भगदड़ में 30 लोगों की मृत्यु हुई लेकिन गैर-सरकारी स्रोतों के अनुसार यह संख्या 70 से अधिक थी। सबसे दर्दनाक था एक युवा महिला का कथन -मैं बच गई लेकिन मेरी मां नहीं रही। गैर सरकारी रिपोर्टें यह भी दावा करती हैं कि भगदड़ की घटनाएं एक से अधिक बार हुईं।

इस स्थिति को दो नज़रियों से देखा जा सकता है, पहला कि कई अनमोल ज़िंदगियां खो गईं और दूसरा कि इतने विशाल स्तर के आयोजन में इस तरह की घटनाएं स्वाभाविक रूप से हो सकती हैं। यह स्वीकार करना होगा कि यह आयोजन विशाल पैमाने पर हुआ और भक्तों की भावनाओं ने इसे कई बार अनियंत्रित भी बना दिया। इसी के साथ इस आयोजन से जुड़े राजनीतिक पहलू को भी नकारा नहीं जा सकता। विपक्षी दल भाजपा पर निशाना साधने का कोई अवसर नहीं चूक रहे हैं, जबकि भाजपा के भीतर भी आंतरिक राजनीति अपने चरम पर है।

योगी के विरोधी जो उनकी कार्य क्षमता को लेकर पहले से ही ईर्ष्या रखते हैं, उनकी किसी भी चूक को उजागर करने के लिए तत्पर थे। दुर्भाग्यपूर्ण भगदड़ और कुछ टेंटों में लगी आग ने महाकुंभ की भव्यता को कुछ हद तक प्रभावित किया लेकिन यह कहना मुश्किल है कि क्या इन घटनाओं ने मुख्यमंत्री के रूप में योगी की प्रतिष्ठा पर कोई स्थायी प्रभाव डाला। संभावना यही है कि आने वाले समय में श्रद्धालु इस महाकुंभ को उस ऐतिहासिक आयोजन के रूप में याद करेंगे जिसे योगी ने संभव बनाया, भले ही कुछ परिवार अपने प्रियजनों के नुक्सान का शोक मना रहे हों।

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