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हिन्द महासागर में तनाव

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12:15 AM Feb 23, 2018 IST | Desk Team

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भारत मूलतः एक सागरीय देश है। जोथल के चोल साम्राज्य और वर्तमान साढ़े सात हजार किलोमीटर लम्बी समुद्री सीमा वाला राष्ट्र भारत विश्व में अकेला ऐसा उदाहरण है जिसके नाम पर एक पूरा महासागर अफ्रीका से पूर्वी एशिया तक हिलोरे लेता है। हिन्द महासागर का देश जिसकी सीमाओं की परिभाषा ही सिंधु से होती रही है, उसका सागर चैतन्य आजादी के बाद वर्षों तक सोता रहा लेकिन भारत का सागर चैतन्य अब जाग चुका है। हिन्द महासागर का भारत के लिए सामरिक महत्व बहुत अधिक है। यह क्षेत्र किसी भी स्थिति में चीन या किसी अन्य शक्तिशाली देश के हवाले नहीं किया जा सकता इसलिए हिन्द महासागर में भारत की धाक होनी ही चाहिए।

हिन्द महासागर भारत का प्रभाव क्षेत्र है आैर बने रहना चाहिए। इसकी हर लहर पर भारत की संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों की छाप है। हिन्द महासागर पर प्रभावी नियंत्रण के बिना कोई देश वैश्विक शक्ति का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकता। हिन्द महासागर में अपनी सैन्य उपस्थिति को बढ़ाने के लिए कई ताकतें हमेशा किसी न किसी बहाने की तलाश में रहती हैं। मालदीव में राजनीतिक संकट के चलते ड्रैगन यानी चीन ने 11 युद्धक जहाज पूर्वी हिन्द महासागर में भेज दिए हैं। इस दौरान भारतीय नौसेना और चीनी नौसेना के बीच की दूरी काफी कम रह गई। इसके जवाब में भारत ने अपने 8 युद्धक जहाज हिन्द महासागर में भेजे हैं, जो चीनी गतिविधियों पर नजर रख सकेंगे। मालदीव में अपना प्रभाव छोड़ने के लिए भारत और चीन के बीच होड़ रही है। चीन लगातार ऐसी कार्रवाइयों को अन्जाम देता रहा है, चाहे वह हिन्द महासागर में अपने युद्धपोत भेजना हो या फिर डोकलाम में अपनी सेना को भेजना। इस तरह की कार्रवाइयों से क्षेत्र में तनाव बढ़ चुका है। इससे भारत की चिन्ता भी बढ़ गई है। चीन की हर कोशिश है कि भारत मालदीव से दूर रहे आैर ​​किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं करे। इसके साथ ही चीन यह भी चाहता है कि हिन्द महासागर में भारतीय नौसेना को सीमित कर दिया जाए आैर उस पर निगाह रखी जाए। मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को चीन का करीबी माना जाता है जबकि पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को भारत के करीब माना जाता है। वह मालदीव में लगे आपातकाल के बाद भारत से सैन्य मदद की मांग कर चुके हैं।

भारत अब तक मालदीव के घटनाक्रम को बहुत धैर्य से देख रहा है। भारत 1962 वाला भारत नहीं है, यह हिन्द महासागर में अपनी पकड़ मजबूत करने के साथ-साथ प्रशांत क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है। भारत अमेरिका आैर अन्य क्षेत्र के दूसरे देशों के साथ अपने सम्बन्ध मजबूत कर रहा है और अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ा रहा है। हिन्द महासागर या दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारत के हितों की रक्षा के लिए अनेक देश शुभचिन्तक बने हुए हैं। जापान, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, वियतनाम और अन्य देशों का भारत को समर्थन मिल रहा है जो चीन की दादागिरी के खिलाफ हैं। भारतीय नौसेना सेशल्स के समुद्री इलाकों की निगरानी करती है और वर्ष 2016 में भारत ने एक राडार सिस्टम लगाया था। भारत ने अपने समुद्री बेड़े को बढ़ाया है। इसमें व्यापारिक और जंगी बेड़ा दोनों शामिल हैं। भारत ने बीते दशक में अमेरिका से 15 अरब डॉलर से ज्यादा के हथियार खरीदे हैं। इसमें एयरक्राफ्ट, समुद्र में निगरानी के लिए मशीनें, जहाज पर हमला करने वाली मिसाइलें आैर हेलिकॉप्टर शामिल हैं।

भारत के लिए प्रशांत महासागर के देशों के साथ सम्बन्ध बनाने से अधिक आवश्यक हिन्द महासागर क्षेत्र की रक्षा करना है क्योंकि चीन इस क्षेत्र में अपना विस्तार कर रहा है। वह अफ्रीका, पश्चिम एशिया एवं अन्य क्षेत्रों में अपनी सैन्य चौकियां स्थापित करने की सम्भावना तलाश रहा है। चीन पाकिस्तान के ग्वादर, श्रीलंका के हम्बनटोटा, मालदीव और म्यांमार के जरिए भारत को घेर चुका है इसीलिए भारत ने सिंगापुर से नौसेना समझौता, बंगलादेश से सागर तटीय नौवहन समझौता किया वहीं ईरान में चाबहार बंदरगाह का विकास किया। अब भारत चाबहार की एक बंदरगाह का संचालन भी करेगा। इससे चीन की पीड़ा भी बढ़ी है। चीन भारत पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाना चाहता है। भारतीय नौसेना को मजबूत बनाना जरूरी है। हिन्द महासागर में चीनी युद्धपोतों का मकसद भारत और आस्ट्रेलिया को मालदीव से दूर रखना है। भारत की चेतावनी के बावजूद मालदीव में राष्ट्रपति यामीन ने आपातकाल की अवधि बढ़ाने का फैसला किया है, यह भारत को उकसाने वाली कार्रवाई है। बेहतर होगा मालदीव का घरेलू संकट समझदारी से हल हो, कोई दूसरा देश हस्तक्षेप नहीं करे, अगर करे तो सब कुछ संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में हाे ताकि चीन दादागिरी नहीं कर पाए।

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