गुरु ग्रन्थ साहिब की पूजा नहीं अध्यन जरुरी
गुरु ग्रन्थ साहिब एक मात्र ऐसा ग्रन्थ है जिसे जीवित गुरु का दर्जा प्राप्त है अन्यथा इसके अतिरिक्त दुनिया का ऐसा और कोई धार्मिक ग्रन्थ नहीं है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि गुरु ग्रन्थ साहिब को स्वयं गुरु साहिबान ने अपने जीवनकाल के दौरान लिखा है, अन्य ग्रन्थों की रचना देवी, देवते, पैगम्बरों के संसार से जाने के बाद उनके अनुयाईयों के द्वारा की गई है। वैसे देखा जाए तो गुरु ग्रन्थ साहिब सभी धर्मों के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसमें जहां सिख गुरु साहिबान की बाणी दर्ज है वहीं अन्य धर्मों के संत महापुरुष, भक्तों की बाणी इसमें देखने को मिलती है। इसमें ज्ञान की वह बातें दर्ज हैं जिन्हें वैज्ञानिक आज मानते हैं, गुरु साहिबान ने सैकड़ों वर्ष पूर्व ही लिख दिया था। इस ग्रन्थ का सही मायने में अध्यन करने के बाद इन्सान का जीवन बदल सकता है। आज जो लोग इसे सिखांे का ग्रन्थ समझकर इसका अपमान करते हैं, बेअदबी तक करते हैं अगर उन्हें इस बात की जानकारी मिल जाये कि इस ग्रन्थ में तो उनके भगवान, पीर पैगम्बर का भी सम्मानपूर्वक जिक्र है तो शायद वह कभी भी ऐसी गल्ती ना करें। मगर अफसोस कि राजनीतिक लोग अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए आवाम को भ्रमित कर इसे केवल सिखों का ग्रन्थ साबित करते आए हैं। सिखों में भी नामधारी समाज है जो सिखी वेश मेें भले ही रहता है, गुरुद्वारों में जाकर पाठ पूजा भी करता है पर वह गुरु ग्रन्थ साहिब को गुरु नहीं मानता। आज स्थिति ऐसी बन चुकी है सिखों के बड़े बुजुर्गों को छोड़ दें अन्य सिख गुरु ग्रन्थ साहिब को केवल माथा टेकने तक सीमित रह गये हैं, बहुत कम सिख हैं जो कि इसे सही मायने में गुरु मानकर इसमें दर्ज बाणी का पाठ करते हैं, उसे समझकर अपने जीवन को बाणी के अनुसार जीने का प्रयत्न करते हैं।
सिख समुदाय को भावनाओं में नहीं बहना चाहिए
अक्सर देखा जाता है कि सिख समुदाय बहुत जल्द ही भावनाओं में बहकर बिना जांच पड़ताल के दूसरों की मदद के लिए आगे आ जाता है और फिर अगर सामने वाला व्यक्ति सिख समुदाय से ही हो तो समुदाय के सभी लोग उसके समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं भले ही उसने किसी भी तरह का अपराध क्यों ना किया हो। ऐसा ही एक वाक्य उस समय सामने आया जब अमरीका में हरजिन्दर सिंह नामक एक ट्रक ड्राईवर के द्वारा गलत ढंग से गाड़ी चलाते हुए तीन अमरीकी नागरिकों ंको टक्कर मार दी जिससे उनकी मौत हो गई। इसके बाद सेे हरजिंदर सिंह को बचाने के लिए एक वेबसाइट के माध्यम से आनलाइन अभियान चलाया है। इसमें विभिन्न देशों के लगभग 11 लाख 61000 लोगों ने हरजिंदर सिंह के प्रति नरमी बरतने की अपील की है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने तो देश के विदेश मंत्री को इस मामले में दखल अंदाजी करते हुए हरजिन्दर सिंह को बचाने की अपील की गई। मगर शायद मौहतरमा बादल यह भूल गई कि अमरीका का अपना कानून है उसमें भारत किसी तरह की दखल अंदाजी नहीं कर सकता। अमेरिकी कानून के अनुसार यदि किसी दुर्घटना में एक व्यक्ति की मौत होती है तो दोषी ड्राइवर को एक मौत के लिए 15 वर्ष की जेल की सजा होती है और हरजिन्दर की गाड़ी से 3 लोगों की मौत हुई ऐसे में उसे 45 साल की सजा हो सकती है हालांकि अमरीकी अदालत ने अभी इस मामले में कोई फैसला नहीं सुनाया है। भारत में बसते सिख समुदाय के लोगों के द्वारा गुरुद्वारों में उसकी सजा कम करने के लिए अरदास की जा रही है।
वहीं सोशल मीिडया के कई प्लेटफार्म से ऐसी जानकारी भी मिल रही है कि हरजिन्दर सिंह खालिस्तानी संगठन सिख फार जस्टिस के कार्यक्रमों में भी जाता रहा है और एक तस्वीर में तो वह खालिस्तानी झण्डा उठाये खड़ा है। उसके ट्रक से भी कुछ आपत्तिजनक लोगों की तस्वीर मिलने की बात भी कही जा रही है जो अपने आप में कई तरह के सवाल खड़े करता है। सिख ब्रदर्सहुड इन्टरनैशनल के सैक्रेटरी जनरल गुणजीत सिंह बख्शी का मानना है कि अगर वाक्य में ही हरजिन्दर सिंह का सम्बन्ध खालिस्तानी संगठनों से है तो ऐसे शख्स की तरफदारी करना खालिस्तानीयों को समर्थन के सामान है जो शायद कोई भी आम सिख कभी नहीं चाहेगा। वही ंकुछ सिख बुद्धिजीवी मानते हैं राजनीति से प्रेरित होकर कुछ सिख नेता इस मामले को बिना वजह तूल दे रहे हैं। इसलिए किसी की भी पैरवी करने से पूर्व उसका पूरा भगौल जानना जरुरी होता है।
पाकिस्तान में हिन्दू सिख धार्मिक स्थल दयनीय स्थिति में
देश के बंटवारे के समय हिन्दू और सिख भाईचारे के अनेेक धार्मिक स्थल पाकिस्तान में चले गए जिसमें से कुछ एक को छोड़कर बाकी बहुत ही दयनीय स्थिति में है और ज्यादातर का तो नामो निशान ही मिटा दिया गया है। उसी में एक है लाहौर स्थित गुरुद्वारा शहीद गंज भाई तारु जिसे 250 साल पूर्व बनाया गया था। भाई तारु सिंह जिनकी शहादत की मिसाल भी अनोखी हैं उन्होंने अपने धर्म में पक्के रहते हुए अपने केश कटवाने से मना कर दिया तो जालिम मुगल हकूमत ने उनकी खोपड़ी ही उतार दी। मुगल साम्राज्य के अत्याचारपूर्ण शासनकाल के दौरान, उन्हें अपने विश्वास पर अडिग रहने के कारण बेरहमी से यातनाएं दी गईं। लेकिन उन्होंने झुकने के बजाय अपनी खोपड़ी कटवाना पसंद किया और अपने अंतिम सांस तक अपने विश्वास पर अडिग रहे। यह गुरुद्वारा उसी स्थान पर बनाया गया जहां उन्हें शहीद किया गया था, और पीढ़ियों से, दुनिया भर के सिख यहां आकर प्रार्थना करते थे, आत्मचिंतन करते थे और उनके बलिदान से प्रेरणा लेते थे। लेकिन आज यह पूजनीय स्थल बंद रहकर लाहौर की एक व्यस्त बाजार में दुकानों और दीवारों के पीछे छिपा हुआ है। इसकी अधिकतर भूमि पर कब्जा कर लिया गया है। सिखों के लिए केवल एक छोटा-सा कोना ही अब सुलभ है, जबकि बाकी हिस्से पर अवैध कब्जा हो चुका है। दुकानों ने पवित्र भूमि को घेर लिया है। मगर अफसोस कि विदेशी धरती पर बैठे खालिस्तानियों को यह सब दिखाई नहीं देता यां जानबूझकर देखना ही नहीं चाहते क्योंकि अगर उन्होंने इस सबके लिए आवाज उठाई तो पाकिस्तान से मिलने वाली आर्थिक सहायता बंद हो सकती है जिससे खालिस्तानीयों की दुकानें चल रही हैं।