Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

ऐसे हुआ ‘आप’ का कत्ल

NULL

09:45 PM Mar 17, 2018 IST | Desk Team

NULL

2012 में मनोवैज्ञानिक डेविड थामस की एक चर्चित पुस्तक आई थी। इस पुस्तक का नाम है- नार्सिसिज्म बिहाइंड दा मास्क। नार्सिसिज्म एक मनोवैज्ञानिक कुंठा। कुछ लोग इसे व्यक्तित्व का विकार मानते हैं। शब्द कोष में इस शब्द का अर्थ ढूंढने पर पता चलता है कि नार्सिसिज्म को हिन्दी में आत्मकामी या आत्ममुग्धता कहा जाता है। उस किताब में आत्ममुग्ध व्यक्ति के लक्षण बताए गए हैं जैसे ऐसा व्यक्ति खुद को महान मानता है, दूसरों का इस्तेमाल करता है और काम निकल जाने के बाद उन्हें छोड़ देता है, वह हमेशा भविष्य की बड़ी सफलता, भारी आकर्षण, सत्ता और अपनी बुद्धि एवं विचारों की सफलताओं और कामनाओं में खोया रहता है। ऐसा व्यक्ति सोचता है कि वह जो करता है, सब सही है आैर दूसरे जो कर रहे हैं वह गलत है।

अरविन्द केजरीवाल का व्यक्तित्व और सियासत देखो तो किताब याद आ जाती है। ऐसे लोग जब सियासत की ऊंचाइयां छू लेते हैं तो भयंकर भूलें भी करते हैं और वह औंधे मुंह गिरते हैं। इसे भारतीय राजनीति की विडम्बना ही कहा जाएगा कि धोखे आैर प्रपंच से खड़े किए गए मायाजाल के चलते अरविन्द केजरीवाल जैसे लोग सियासत में बड़ों-बड़ों को चित्त कर देते हैं लेकिन  लेकर राजनीतिक जीवन प्रारंभ करने वाले केजरीवाल झूठ और धोखे की राजनीति में ऐसे उलझ जाएंगे, इसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी। जिस व्यक्ति को एक नए जननायक के तौर पर प्रचारित किया गया, वह अब इस देश के जन के नायक तो दूर एक सच्चे जनप्रतिनिधि भी नहीं निकले। जिस केजरीवाल को एक सकारात्मक परिवर्तन और देश की सियासत में आदर्शवाद के नए मील के पत्थर के रूप में देखा गया और स्थापित किया गया, उस केजरीवाल के ढाेल की पोल इतनी बड़ी है, इसका अनुमान दिल्लीवासियों को नहीं था।

अब दिल्ली से लेकर पंजाब तक ही नहीं बल्कि देशभर में केजरीवाल द्वारा पंजाब के अकाली नेता विक्रमजीत सिंह मजीठिया पर ड्रग्स माफिया होने के लगाए गए आरोपों पर माफी मांगने की चर्चा जारों पर है। पंजाब के आप पार्टी के विधायक पूछ रहे हैं कि आखिर केजरीवाल ने ऐसा क्यों किया? ऐसा नहीं है कि माफीनामे की पटकथा कुछ घंटों में बनी बल्कि इसके लिए तीन-चार माह से बात​चीत चली होगी। माफीनामे का एक-एक शब्द पार्टी की विचारधारा पर प्रहार है। यह पंजाब की जनता से विश्वासघात है, उनकी भावनाओं से खिलवाड़ है। अमृतसर में हजारों लोगों के बीच बादलों और मजीठिया को पंजाब में ‘आप’ की सरकार बनते ही जेल भेजने का ऐलान करने वाले केजरीवाल ने लोगों की भावनाओं का फायदा उठाया। पूरे पंजाब में बड़े-बड़े पोस्टर लगाए गए ‘‘मैं केजरीवाल बोल रहा हूं।’’ व्यापक प्रचार के जरिए आप पार्टी पंजाब विधानसभा में विपक्षी दल भी बन गई। वैसे तो आप के नेता हमेशा मुठभेड़ की सियासत करते रहे हैं, आरोप लगाना और फिर भाग जाना उनकी फितरत है। यह भी सही है कि केजरीवाल पर जितने मानहानि के मुकद्दमे चल रहे हैं, आम आदमी के पास उतने बीघे जमीन भी नहीं होगी।

मुकद्दमों से तंग आकर केजरीवाल ने लिखित माफीनामा विक्रमजीत सिंह मजीठिया को भिजवा दिया लेकिन उन सिद्धांतों, नीतियों का क्या हुआ जो केजरीवाल लेकर चले थे। हो सकता है केजरीवाल कोई कचहरी के चक्कर में न फंस कर 2019 चुनाव की राजनीति करना चाह रहे हों लेकिन ऐसा करके उन्होंने पंजाब में ड्रग्स के खिलाफ अपनी मुहिम को न केवल कमजोर बना डाला बल्कि अपनी ही पार्टी का अपने ही हाथों से कत्ल कर डाला। इस पर प्रतिक्रिया तो होनी ही थी। पंजाब आप के संयोजक भगवंत मान, उपाध्यक्ष अमन अरोड़ा ने अपने पद छोड़ दिए। पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता सुखपाल सिंह खैहरा तो विश्वासघाती के साथ रहने को ही इच्छुक नहीं, क्योंकि इस मामले में केजरीवाल ने उन्हें विश्वास में लिया ही नहीं। यह सही है कि विक्रमजीत सिंह मजीठिया के दामन पर भी कई आरोप हैं लेकिन लोकतंत्र में आरोप साबित  न हो जाएं तब तक व्यक्ति निर्दोष होता है।

आरोपों को साबित करना कानूनी प्रक्रिया है, कानून अपना काम करेगा लेकिन केजरीवाल के माफीनामे के बाद पंजाब के विधायक किस मुंह से जनता के बीच जाएंगे? दिल्ली के लोग इस बात का विश्लेषण कर चुके हैं कि केजरीवाल जिन-जिन मुद्दों को प्राथमिकता देने की बात करते थे, वे उन्हें पूरा करने में विफल रहे हैं। बिजली-पानी पर सब्सिडी की राजनीति ही आप का आधार बन गई है। उन्होंने अपने आभामंडल को इस तरह तैयार किया कि देश की जनता ने उन्हें सबसे बड़ा ईमानदार समझा और देश के बाकी लोग भ्रष्ट हैं लेकिन अब वह खुद आदर्श राजनीति की नौटंकी कर काफी बदल चुके हैं। केजरीवाल ने आम आदमी के नाम पर आम आदमी से छल किया। पंजाब के सभी आप विधायकों ने केजरीवाल की निन्दा ही नहीं की बल्कि विकल्पों पर चर्चा भी की। इसमें से एक है कि पंजाब के विधायक दिल्ली से नाता तोड़ कर एक अलग इकाई का गठन कर लें। अंतिम विकल्प भी यही है। इस तरह केजरीवाल ने अपने ही हाथों से अपनी ही पार्टी की हत्या कर दी। पंजाब के लोग और अप्रवासी भारतीय जिन्होंने आम आदमी पार्टी को दिल खोलकर चंदा दिया, उनमें भी हताशा है। अरविन्द के सहयोगी रहे कुमार विश्वास का कहना सही है-
‘जिनको हमने ‘नजरिया’ समझा
उसने हमें जरिया समझा’

Advertisement
Advertisement
Next Article