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Supreme Court ने पॉक्सो केस में आरोपी को दी गई सज़ा की रद्द, जानें क्यों लिया ये फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो केस में सज़ा को न्यायहित में किया रद्द

03:13 AM May 23, 2025 IST | Shivangi Shandilya

सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो केस में सज़ा को न्यायहित में किया रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो केस में आरोपी की सज़ा रद्द की, क्योंकि पीड़िता ने खुद को पीड़ित नहीं माना और आरोपी से विवाह कर लिया है। कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत विशेष अधिकारों का उपयोग करते हुए केस समाप्त किया।

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी शुक्रवार को एक अहम फैसले की सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपी को दी गई सज़ा को समाप्त कर दिया. जस्टिस अभय एस. ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ‘न्याय के हित’ में यह निर्णय आवश्यक था. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जिस युवती को इस केस में कानूनन पीड़िता माना गया था, वह खुद को पीड़ित नहीं मानती और आरोपी से उसका भावनात्मक जुड़ाव है.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने यह माना कि पीड़िता और आरोपी ने आपसी सहमति से विवाह किया है और अब उनका एक बच्चा भी है. युवती कोर्ट के समक्ष यह कह चुकी है कि यदि उसे किसी बात से तकलीफ हुई है, तो वह सिर्फ कानूनी प्रक्रिया से हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर अनुच्छेद 142 के तहत विशेष अधिकारों का उपयोग करते हुए निचली अदालत में चल रहे केस को समाप्त कर दिया.

हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति

इससे पहले 18 अक्टूबर 2023 को कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस मामले में आरोपी को बरी कर दिया था. जस्टिस चित्तरंजन दास और पार्थसारथी सेन ने आपसी सहमति को आधार बनाकर यह फैसला सुनाया था. हालांकि, इस दौरान उन्होंने युवाओं को लेकर कुछ विवादास्पद टिप्पणियां भी की थीं, जिसमें उन्होंने लड़कियों को ‘2 मिनट के आनंद’ से बचने और अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की सलाह दी थी.

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सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान

हाई कोर्ट की इन टिप्पणियों पर विवाद खड़ा होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया और इसे ‘In Re: Right to Privacy of Adolescent’ नाम से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया. सुप्रीम कोर्ट ने 20 अगस्त 2024 को हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया था और टिप्पणियों की आलोचना करते हुए आरोपी को पॉक्सो के तहत दोषी करार दिया था. सज़ा पर निर्णय के लिए अदालत ने एक कमिटी भी गठित की थी.

इस आधार पर लिया अंतिम फैसला

कमिटी की रिपोर्ट आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि लड़की की मंशा आरोपी को जेल भेजने की नहीं है. वह अपने पति से प्रेम करती है और उनके साथ जीवन बिताना चाहती है. अदालत ने यह भी माना कि इस मामले में आरोपी को जेल में रखना ‘न्याय के मूल सिद्धांतों’ के खिलाफ होगा. इसलिए कोर्ट ने केस को पूरी तरह बंद कर दिया.

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