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उच्चतम न्यायालय ने एक व्यक्ति पर उड़ीसा उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई जमानत की इस शर्त को खारिज कर दिया है कि वह किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होगा। शीर्ष अदालत ने जमानत की शर्त खारिज करते हुए कहा कि यह उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने उच्च न्यायालय के 18 जनवरी के आदेश के खिलाफ बरहामपुर नगर निगम के पूर्व महापौर शिवशंकर दास की याचिका पर यह आदेश पारित किया।
उच्च न्यायालय ने जमानत की शर्त वापस लेने के अनुरोध वाली दास की अर्जी खारिज कर दी थी। दास की जमानत शर्त में कहा गया था कि वह सार्वजनिक तौर पर कोई अप्रिय स्थिति उत्पन्न नहीं करेंगे और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे।
उच्च न्यायालय ने अगस्त 2022 में दास को जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए यह शर्त लगाई थी। शीर्ष अदालत ने 22 मार्च के अपने आदेश में कहा, हमने पाया है कि ऐसी शर्त लगाने से अपीलकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा और ऐसी कोई शर्त नहीं लगाई जा सकती। इसमें कहा गया है, ''इसलिए, हम उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई शर्त को खारिज करते हैं।
दास ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर, जमानत पर रिहाई का निर्देश देते हुए 11 अगस्त, 2022 के आदेश में लगाई गई शर्त में संशोधन का अनुरोध किया था।
दास के वकील ने उच्च न्यायालय को बताया था कि अपीलकर्ता को एक राजनीतिक व्यक्ति होने के नाते आगामी आम चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति दी जा सकती है।
राज्य ने उनके अनुरोध पर आपत्ति जताई थी और कहा था कि जमानत पर रिहा होने के बाद उन पर एक हमला किया गया था। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘दोनों पक्षों को सुनने और वर्तमान स्थिति पर विचार करने के बाद, क्योंकि यह एक तथ्य है कि वह न केवल अन्य मामलों में शामिल थे, बल्कि उन पर एक हमला भी किया गया था, अपीलकर्ता को राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति देते हुए जमानत की शर्तों को संशोधित करना अनुचित होगा क्योंकि इससे अपीलकर्ता से जुड़े इलाके में कानून और व्यवस्था की स्थिति और खराब होगी।