Murshidabad हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट का SIT जांच से इनकार
संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 के अधिनियमित होने के बाद हुए हिंसक प्रदर्शनों की विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराने की मांग वाली जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं पाया और याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का सुझाव दिया। शीर्ष अदालत की पीठ ने अपने आदेश में कहा, “हमें संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं दिखता, क्योंकि याचिकाकर्ता के पास संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का एक वैकल्पिक, प्रभावी उपाय है।”
SC dismisses PIL seeking SIT probe on violent protests in Murshidabad over Waqf Act
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— ANI Digital (@ani_digital) May 13, 2025
याचिका सतीश कुमार अग्रवाल ने दायर की थी, जिन्होंने मुर्शिदाबाद निवासियों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने के लिए अपने कर्तव्यों/जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में राज्य अधिकारियों की विफलता को चिह्नित किया। याचिकाकर्ता के वकील, अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा ने अपनी दलीलें शुरू करते हुए अदालत को बताया कि राज्य के अधिकारी उस हिंसा की जांच करने में विफल रहे, जिसके कारण हिंदू समुदाय के लोगों की मौत हुई। वकील ने कहा, “क्योंकि पश्चिम बंगाल राज्य का पुलिस प्रशासन हिंदुओं के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने में अपने कर्तव्य/जिम्मेदारी का निर्वहन करने में बुरी तरह विफल रहा है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में 8 अप्रैल, 2025 से 12 अप्रैल, 2025 तक हुई हत्या, आगजनी और लूट की भयावह घटना ने लोगों के पलायन को जन्म दिया है।”
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हालांकि अदालत ने वकील को कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का दृढ़ता से सुझाव दिया, जिसमें कहा गया कि यह मामला पूरी तरह से पश्चिम बंगाल से संबंधित है और शीर्ष अदालत के लिए इस तरह की याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं है। न्यायालय ने कहा, “हमें बताएं कि आपको उच्च न्यायालय जाने से कौन रोक रहा है। यह संवैधानिक न्यायालय है जिसके पास संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय से भी बेहतर शक्तियां हैं। मामला केवल एक राज्य से संबंधित है..इससे उच्च न्यायालय को क्या संदेश मिलता है?”
वकील ने न्यायालय को इस संबंध में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के बारे में भी बताया, जिसमें आरोप लगाया गया है कि विभिन्न मानवाधिकार उल्लंघन हुए हैं। वकील ने कहा, “एनएचआरसी की रिपोर्ट बहुत परेशान करने वाली है।” प्रस्तुतियों पर विचार करने के बाद न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय जाने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा, “यदि याचिकाकर्ता को अपने जीवन और स्वतंत्रता पर कोई खतरा महसूस होता है, तो वह ऑनलाइन याचिका दायर कर सकता है।
सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (वीसी) के माध्यम से भी हो सकती है। हम उच्च न्यायालय (अधिकारियों) को याचिकाकर्ता को कुछ विशेष सुविधाएं देने का निर्देश देते हैं।” पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि इस तरह की याचिकाएं केवल तमाशा खड़ा करने के लिए शीर्ष न्यायालय में दायर की जाती हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “ये सब केवल हंगामा खड़ा करने के लिए किया जा रहा है। यह सब शोर मचाने के लिए किया जा रहा है, हम यह सब जानते हैं।”