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डिजिटल अरेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट गम्भीर

04:38 AM Dec 03, 2025 IST | Aditya Chopra
डिजिटल अरेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट गम्भीर
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

सूचना प्रौद्योगिकी के युग में साइबर अपराध एक गंभीर चुनौती बन गया है। इसमें हैकिंग, डेटा चोरी, वित्तीय धोखाधड़ी, साइबरबुलिंग और मैलवेयर फैलाने जैसे अवैध कार्य शामिल हैं। ऑनलाइन बैंकिंग का उपयोग करने वाले व्यक्तियों से लेकर दैनिक कार्यों के लिए कंप्यूटर पर निर्भर व्यवसायों तक, कई लोग साइबर अपराधों का अनुभव करते हैं। उदाहरणों में फ़िशिंग ईमेल के माध्यम से पहचान की चोरी, फ़ाइलों को नुक्सान पहुंचाने वाले वायरस और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर उपयोगकर्ताओं को लक्षित करने वाले ऑनलाइन घोटाले शामिल हैं। इन अपराधों के परिणामस्वरूप वित्तीय नुक्सान, भावनात्मक संकट और प्रतिष्ठा को नुक्सान होता है। दुनियाभर की सरकारें सख्त कानून बना रही हैं और साइबर सुरक्षा बुनियादी ढांचे में निवेश कर रही हैं लेकिन व्यक्ति भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उपकरणों को अपडेट करना, एंटीवायरस सॉफ्टवेयर का उपयोग करना और संवेदनशील जानकारी को ऑनलाइन साझा करने से बचना साइबर अपराध को रोकने में मदद कर सकता है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया बैंकों और वित्तीय संस्थानों और ईडी जैसी जांच एजेंसियों द्वारा बार-बार लोगों को आगाह किए जाने के बावजूद डिजिटल अरेस्ट के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। डिजिटल अरेस्ट से ठगी का शिकार होने वाले शिक्षित वर्ग, पूर्व पुलिस अधिकारी, सेवानिवृत्त और मौजूदा नौकरशाह, युवा और वृद्ध महिलाएं भी हो रही हैं। डिजिटल अरेस्ट की पूरी प्रक्रिया लगभग तय है। आपको एक कानून प्रवर्तन अधिकारी का फोन आता है जो आपको एक गम्भीर अपराध में फंसा हुआ बताता है। फिर फोन करने वाला आपको वीडियो काल के जरिए दूसरे आला अफसरों से मिलाने की पेशकश करता है। बदले में वह कानूनी लहजे में आरोपों की व्याख्या करता है और आपके दावों को न्याय व्यवस्था से पुष्ट करता है। जांच के दौरान आप को घर या यहां तक कि किस कमरे में आप हैं वहां से बाहर न निकलने और किसी और से बात न करने के लिए कहा जाता है। आपको कड़े निर्देश दिए जाते हैं कि आपको अपना लेपटॉप कैमरा या फोन बंद नहीं करना है। आपकी रोजमर्रा गतिविधियों पर कभी-कभी तो कई दिनों तक सवालों की झड़ी लगाकर नजर रखी जाती है। इसके बाद आती है गिरफ्तारी या आगे की कानूनी लड़ाई के बदले में एक बड़ी रकम। तब तक आप डरे, सहमे थक चुके होते हैं और बचने के लिए आप पैसे ट्रांसफर कर देते हैं। फोन अचानक खामोश हो जाता है। पूछताछ करने वाले चले जाते हैं और आपकी जिन्दगी भर की कमाई का पैसा बिना कोई निशान छोड़ गायब हो जाता है। एक सरकारी अनुमान के अनुसार पिछले वर्ष भारतीयों को लगभग 1 लाख 20 हजार से ज्यादा ऐसे घोटालों में 19 अरब रुपए का नुक्सान हुआ। चिंताजनक बात यह है कि 2022 और 2024 के बच डिजिटल गिरफ्तारी, धोखाधड़ी के दर्ज मामलों की संख्या लगभग तीन गुणा हो गई है। साइबर अपराधी सीमाहीन व्यापार के समान अवसर प्रदान करने वाले अपराधी हैं। उनका दायरा बहुत बड़ा है। अनुमान लगाया जा रहा है कि 2025 में वैश्विक साइबर अपराध की आर्थिक लागत 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होगी। डिजिटल गिरफ्तारी धोखाधड़ी भारतीयों को सबसे अधिक नुक्सान पहुंचाती नजर आ रही है। पीडि़तों में शिक्षाविद, बैंकर, व्यवसायी और डॉक्टर भी शामिल हैं। साइबर अपराध के आघात से उभरने में असमर्थ कुछ लोग आत्महत्या भी कर चुके हैं। यद्यपि साइबर अपराधों से निपटने के लिए भारत में कानून कड़े किए गए हैं। इसके बावजूद लोग स्कैम का शिकार हो रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ते डिजिटल अरेस्ट घोटाले का संज्ञान लेते हुए सीबीआई को डिजिटल अरेस्ट के सभी मामलों की जांच का निर्देश दिया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि साइबर अपराधियों के संगठित गिरोह काम कर रहे हैं और उनके तार संभव है कि बैंकिंग क्षेत्र से भी जुड़े हुए हैं। शीर्ष अदालत ने सीबीआई जांच को मजबूत करने के लिए कड़े निर्देश भी दिए हैं। सीबीआई को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत बैंकरों की भूमिका की जांच करने की पूरी छूट होगी, जहां डिजिटल गिरफ्तारी घोटाले के उद्देश्य से बैंक खाते खोले गए हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से इस न्यायालय की सहायता करने के लिए कहा गया है कि क्या ऐसे संदिग्ध खातों की पहचान करने और अपराध की ऐसी आय को रोकने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता या मशीन लर्निंग को लागू किया जा सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी मध्यस्थ नियम 2021 के तहत अधिकारियों को जांच के दौरान आवश्यकतानुसार सीबीआई के साथ सहयोग करने का आदेश दिया गया है। जिन राज्यों ने अपने-अपने राज्यों में जांच के लिए सीबीआई को सहमति नहीं दी है। उन्हें जांच के लिए सहमति देने का निर्देश दिया गया है। ताकि सीबीआई अखिल भारतीय स्तर पर व्यापक कार्रवाई कर सके। ऐसे अपराधों की गंभीरता और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि ये अपराध भारत के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर भी हो सकते हैं। सीबीआई को आवश्यकता पड़ने पर इंटरपोल प्राधिकारियों से सहायता के लिए अनुरोध करना चाहिए। दूर संचार सेवा प्रदाता एक ही नाम से कई सिमकार्ड जारी कर लापरवाह रवैया अपना रहे हैं। कोर्ट ने सिमकार्ड का दुरुपयोग रोकने के लिए ​भी निर्देश दिए हैं। धोखाधड़ी के लिए साइबर अपराधी अलग-अलग शब्द गढ़ते रहते हैं। जैसे पार्ट टाइम नौकरियों के घोटाले में प्रलोभन देकर अभ्यर्थियों से रकम वसूली जाती है। लोग भी कानून प्रवर्तन और न्यायपालिका के साथ उलझने के डर से अपनी मेहनत की कमाई गंवा रहे हैं। साइबर अपराधी बड़े-बड़े जजों के नाम का इस्तेमाल भी करने से नहीं चूक रहे। भारतीयों के लिए ​िकसी अंजान नम्बर से आया एक फोन काल ही उनकी जिन्दगी में उथल-पुथल मचाने के लिए काफी है। बेहतर यही होगा कि लोग जागरूक बनें और ऐसे फोन कॉल आने पर हड़बड़ाहट में कोई कदम न उठाएं तभी इससे बचा जा सकता है।

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Aditya Chopra

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