थर्ड पार्टी बीमा का सुप्रीम आदेश
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सुप्रीम कोर्ट ने एक सितम्बर 2018 से नए वाहनों को खरीदने के साथ 5 वर्ष के लिए थर्ड पार्टी बीमा करवाना अनिवार्य कर दिया है। यह अपने आप में महत्वपूर्ण फैसला है। अब बाइक पर न्यूनतम 1,000 से 14,000 और कार पर 5,000 से 25,000 रुपए अतिरिक्त खर्च करने पड़ेंगे। कई कम्पनियों ने तो पॉलिसियों की कीमतों की घोषणा कर दी है। अगर वाहन मालिक ऑन डैमेज कवर पॉलिसी चाहता है तो प्लान के मुताबिक अलग पॉलिसी लेनी होगी। अब तक वाहन पर एक ही पॉलिसी लेनी होती थी। बिना बीमा वाली गाड़ियों से होने वाली दुर्घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया क्योंकि भारत की सड़कें मृत्युपथ बनती जा रही हैं। देश के करीब 21 करोड़ वाहन हैं। इनमें से केवल 6.5 करोड़ गाड़ियों का ही बीमा है। अनुमान के मुताबिक रोड पर चलने वाले 50-55 फीसदी वाहनों के पास बीमा है और वह हर वर्ष रिन्युअल भी कराते हैं। यात्री कर की बात करें तो करीब 70-80 फीसदी कारों का बीमा है। देश के कुल वाहनों की संख्या में करीब 70 फीसदी हिस्सा दोपहिया वाहनों का है जिनका बीमा सबसे कम यानी केवल 40-50 फीसदी ही है। बीमा न होने की स्थिति में पीडि़त पक्ष के अधिकारों की रक्षा नहीं हो पाती। मामले अदालतों में लम्बित पड़े रहते हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि बिना किसी बीमा वाले वाहन से दुर्घटना होती है तो पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए उस वाहन की नीलामी कर दी जाएगी। यह फैसला एक महिला ऊषा देवी की याचिका पर आया जिसके पति की 2015 को बरनाला में एक टिप्पर (निर्माण कार्य के लिए इस्तेमाल होने वाला वाहन) से हुई सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी, जबकि उसका 7 वर्ष का बेटा घायल हो गया था। एमसीटी में वाहन का बीमा नहीं होने की बात सामने आई। पीड़ित पक्ष ने याचिका दाखिल करते हुए कहा कि वाहनों का बीमा है या नहीं, यह देखने का दायित्व राज्य सरकार का है। ऐसे में मुआवजा देने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है लेकिन हाईकोर्ट तक निर्णय पीड़ित पक्ष के खिलाफ रहा। फिर ऊषा देवी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार राज्य सरकारों के 12 सप्ताह के भीतर मोटर वाहन अधिनियम में इस नियम के लिए संशोधन करना होगा।
भारत में सड़क दुर्घटनाओं में मौतों की संख्या आतंकवाद के कारण होने वाली मौतों से चार गुणा अधिक है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक सड़क दुर्घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। हर तीन मिनट में सड़क दुर्घटना होती है। हर साल एक वर्ष में एक लाख लोगों की मौत हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कम्पनियों को फटकार लगाते हुए कहा कि ‘‘आप उनको देखिये, वह सड़क दुर्घटनाओं में मर रहे हैं। भारत की जनता मर रही है, उनके लिए कुछ बेहतर कीजिये।’’ वाहन मालिक खुद को तो सुरक्षित रखना चाहते हैं। अपने नुक्सान की चिन्ता उन्हें रहती है लेकिन दुर्घटना में पीड़ित पक्ष के प्रति उनकी कोई संवेदना जुड़ी नहीं होती। थर्ड पार्टी बीमा की लाइबिलिटी कवर के नाम से जानी जाती है। यह बीमा तीसरे पक्ष से सम्बन्धित होता है। अगर किसी वाहन का थर्ड पार्टी बीमा कराया हुआ है आैर कोई दुर्घटना होती है तो तीसरी पार्टी को बीमा कम्पनी आर्थिक नुक्सान की भरपाई करती है इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने थर्ड पार्टी बीमा अनिवार्य कर दिया है। लोगों की अवधारणा है कि थर्ड पार्टी बीमा से बीमा कराने वालों को कोई फायदा नहीं होता लेकिन बीमा कराने वाले को भी कोई घाटा नहीं होता क्योंकि यह बीमा पॉलिसीधारक को सभी वाहन दुर्घटनाओं में आर्थिक नुक्सान से बचाता है। इन खर्चों में अस्पताल और कानूनी खर्च शामिल होते हैं। कई बार ऐसा होता है कि क्षतिग्रस्त होने वाले की हैसियत आपसे कई गुना ज्यादा होती है आैर आप उसे हर्जाना देने की स्थिति में नहीं होते हैं तो एेसे में बीमा कम्पनी उसे क्लेम देती है। बीमा कम्पनियां थर्ड पार्टी बीमा को हतोत्साहित करती हैं लेकिन अब वह ऐसा नहीं कर पाएंगी। थर्ड पार्टी बीमा के बिना गाड़ी चलाना अपराध है।
परिवहन मंत्रालय ने भी बीमा कम्पनियों से कहा है कि वह उन गाड़ियों की जानकारी दें जिनका बीमा है। इसके बाद बिना बीमा वाली गाड़ियों को पकड़ने में मदद मिलेगी। जैसे ही यह डाटा अपडेट हो जाएगा उसके बाद इसे एक प्लेटफॉर्म पर डाला जाएगा। इस डाटा की मदद से राज्यों के ट्रांसपोर्ट विभाग और ट्रैफिक पुलिस वाले बिना बीमा वाली गाड़ियों को आसानी से पकड़ सकेंगे। लोग लाखों रुपए की महंगी चमचमाती गाड़ियां तो खरीद लेते हैं लेकिन बीमा के प्रति लापरवाही बरतते हैं। देश हो या समाज या फिर परिवार, हर किसी को नियमों के मुताबिक चलना ही पड़ता है। सड़कों पर अराजकता फैलाने की अनुमति किसी को भी नहीं दी जा सकती। कानून का पालन तो करना ही होगा। इसके लिए मोटर वाहन एक्ट में जरूरी संशोधन करने ही होंगे।