हरियाणा के सूर्यकान्त!
हरियाणा के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि इस राज्य का कोई विधिवेत्ता देश का मुख्य न्यायाधीश बन रहा है। बेशक हरियाणा पूरे भारत में खेलों में अपना झंडा फहराता रहा है मगर ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी यह इक्का किसी से पीछे नहीं रहा है। आजादी से पहले पिछली सदी में सर छोटू राम इसी धरती के लाल थे। सर छोटूराम ऐसी हस्ती थे जिन्होंने किसानों से लेकर आम इंसान के जीवन को शिक्षा की रोशनी से भरा था और अंग्रेजों के जमाने के संयुक्त पंजाब प्रान्त ( तब पाकिस्तान का पंजाब और भारत का 1966 से पहले का पूरा पंजाब एक ही प्रान्त हुआ करता था )। सर छोटू राम इस पंजाब राज्य के मन्त्री थे और उन्होंने इस क्षेत्र में शिक्षा से लेकर खेती तक में विशद सुधार किये थे। सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने जिन जस्टिस सूर्यकान्त का नाम अगले मुख्य न्यायाधीश पद के लिए अग्रसरित किया है वह हरियाणा राज्य के ही हैं और बहुत साधारण परिवार से आते हैं। ऐसा भी संभवतः पहली बार ही हो रहा है कि देश के मुख्य न्यायाधीश पद पर विराजने वाले व्यक्ति की पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत सामान्य है और वह अपने परिवार के पहले पेशेवर वकील रहे हैं। इस पद तक पहुचंने में उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि की कोई भूमिका नहीं है और वह अपनी मेहनत, लगन व बुद्धि चातुर्य के बूते पर ही यहां तक पहुंचे हैं। प्रायः भारत के मुख्य न्यायाधीशों की पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत वजनदार रहती आयी है।
न्यायमूर्ति सूर्यकान्त वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं अतः परम्परा के अनुसार उन्हीं को नया मुख्य न्यायाधीश बनाया जाना था। सरकार किसी मुख्य न्यायाधीश के रिटायर होने से पहले उन्हीं से अगले मुख्य न्यायाधीश के नाम की सिफारिश मांगती है। यह परंपरा भी भारतीय न्याय व्यवस्था में सुस्थापित है। जस्टिस सूर्यकान्त की पढ़ाई किसी विशिष्ट ख्याति लब्ध विश्वविद्यालय में न होकर हरियाणा के हिसार के सरकारी पोस्ट ग्रेजुएट कालेज से हुई। उन्होंने 1981 में इस महाविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की और 1984 में महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक से कानून की तीन वर्षीय स्नातक डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने हिसार के जिला न्यायालय में वकालत शुरू कर दी। 1985 में वह चंडीगढ़ चले गये और पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय में वकालत शुरू कर दी। यहां वकालत करते हुए उन्होंने संवैधानिक मामलों व नागरिक मामलों में विशेषज्ञता हासिल की। इसके चलते उन्हें 2001 में उच्च न्यायालय का वरिष्ठ वकील नियुक्त किया गया। वह इसी वर्ष हरियाणा के एडवोकेट जनरल भी नियुक्त किये गये और 2004 तक उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त होने तक इस पद पर काम करते रहे। श्री सूर्यकान्त उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति 2004 में ही हो गये। उनकी सेवाओं को देखते हुए उन्हें 2007 में राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के प्रशासी संभाग का सदस्य नियुक्त किया गया। इस पद पर वह 2011 तक रहे। इसके बाद 2018 में वह हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किये गये परन्तु 2019 में ही उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में नामांकित कर दिया गया।
वर्तमान में वह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहते हुए इसकी विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष भी हैं। इस प्रकार श्री सूर्यकान्त का पूरा जीवन सादगी और सौम्यता से भरा हुआ है। वह सामान्य भारतीय के बौद्धिक व शैक्षिक संघर्ष के भी प्रतीक हैं कि किस प्रकार एक सामान्य वकील अपनी लगन व निष्ठा के बल पर देश के सबसे बड़े विधिक पद पर पहुंचने में सफलता प्राप्त कर सकता है। एक साधारण परिवार में जन्म लेकर और सामान्य विद्यालयों से पढ़ाई पूरी करने वाला युवक भी देश के उच्च से उच्च पद पर पहुंच सकता है, बशर्ते उसमें योग्यता हो। यह इस बात का भी प्रमाण है कि भारत का लोकतन्त्र केवल राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका विस्तार बहुआयामी है और यह जीवन के हर क्षेत्र में अपना प्रभाव डालता है। ऐसा केवल लोकतन्त्र में ही संभव हो सकता है कि एक साधारण परिवार का व्यक्ति देश का मुख्य न्यायाधीश बन सके। यह कोई छोटी बात नहीं है क्योंकि मुख्य न्यायाधीश ही देश के राष्ट्रपति को उनके पद की शपथ दिलाते हैं। अतः भारत में लोकतन्त्र हर गली-मुहल्ले में बोलता है और जीवन के हर क्षेत्र में इसकी अहम भूमिका है। जहां तक हरियाणा का सवाल है तो यह केवल अपने खिलाड़ियों और पहलवानों पर ही नाज नहीं कर सकता है बल्कि अपनी जमीन में पैदा हुए शिक्षाविदों, विज्ञानिकों व वकीलों पर भी नाज कर सकता है। श्री सूर्यकान्त हरियाणा की धरती के ऐसे रत्न हैं जिन पर आने वाली पीढि़यां गर्व करेंगी। उनके जीवन से वर्तमान युवा भी शिक्षा लेंगे। वह आगामी 23 नवम्बर को मुख्य न्यायाधीश का पद संभालेंगे।

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