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तहव्वुर राणा और पाकिस्तान

26 नवम्बर 2008 को मुम्बई में पाकिस्तानी आतंकवादी हमले के मुख्य अपराधियों में से एक…

11:17 AM Apr 11, 2025 IST | Aditya Chopra

26 नवम्बर 2008 को मुम्बई में पाकिस्तानी आतंकवादी हमले के मुख्य अपराधियों में से एक…

तहव्वुर राणा और पाकिस्तान

26 नवम्बर 2008 को मुम्बई में पाकिस्तानी आतंकवादी हमले के मुख्य अपराधियों में से एक तहव्वुर राणा भारत में आ चुका है जिस पर देश की न्याय प्रणाली के अनुसार मुकद्दमा चलाया जा रहा है। मगर हमें 26 नवम्बर 2008 के इस हमले की पृष्ठभूमि को भी समझना होगा। जिस समय यह हमला हुआ और इसमें 166 विभिन्न राष्ट्रीयता वाले नागरिक मारे गये तो उस समय पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मन्त्री शाह महमूद कुरैशी भारत की चार दिवसीय राजकीय यात्रा पर आये हुए थे। उस समय भारत के विदेश मन्त्री पद की शोभा भारत रत्न स्व. प्रणव मुखर्जी बढ़ा रहे थे। इस दिन प्रणव दा राजस्थान में थे। कुरैशी ने इस हमले में पाकिस्तान के गैर सरकारी संगठनों का हाथ माना था और इस बाबत एक बयान भी दिया था। मगर श्री मुखर्जी ने कुरैशी को यात्रा के बीच ही वापस पाकिस्तान भेज दिया था। उस समय सत्ता पर काबिज मनमोहन सरकार के सभी मन्त्री सकते में थे मगर प्रणव दा ने कहा कि भारत किसी भी सूरत में पाकिस्तान का यह रुख बर्दाश्त नहीं करेगा क्योंकि वहां की सरकार अपने साये में आतंकवादी गुटों को प्रशिक्षण दे रही है। उसकी हरकतें एक आतंकवादी देश जैसी हैं।

स्व. मुखर्जी ने इसके साथ यह भी कहा कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में पाक की फौज के साये में कई आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं। भारत के पास उनके नक्शे तक हैं अतः गैर सरकारी संगठनों का तर्क गले उतरने वाला नहीं है। इस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से किसी भी प्रकार की वार्ता बन्द कर दी और चेतावनी दी कि यदि पाकिस्तान भारत से बात करना चाहता है तो सबसे पहले आतंकवादियों को पालना–पोसना बन्द करे। भारत के विदेश सचिव पद पर उस समय शिवशंकर मेनन थे। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने आतंकवाद को अपनी विदेश नीति का अंग बना लिया है। पाकिस्तान में तब पीपुल्स पार्टी की सरकार थी और इसके प्रधानमन्त्री यूसुफ रजा गिलानी थे। मगर इससे एक महीने पहले अक्तूबर महीने में भारत और अमेरिका के बीच एेतिहासिक परमाणु करार हुआ था जिस पर भारत की ओर से श्री प्रणव मुखर्जी ने ही दस्तखत किये थे। इस करार के बाद भारत दुनिया की मान्यता प्राप्त परमाणु शक्ति बन गया था।

उधर पाकिस्तान अमेरिका से गुहार लगाते-लगाते थक गया था कि उसके साथ भी अमेरिका भारत जैसा समझौता करे जिसे अमेरिकी सरकार ने कोई तवज्जो नहीं दी थी। पाकिस्तान ने भी 1998 में छह परमाणु विस्फोट करके खुद को परमाणु सम्पन्न देश बना लिया था मगर अमेरिकी नजर में इसकी वैधता को लेकर कई प्रकार की शंकाएं थीं। पाकिस्तान की शह पर मुम्बई में हुए हमले का यह एक आयाम माना जा सकता है क्योंकि अक्तूबर महीने में पूरे विश्व में भारत की परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों में शामिल होने की ध्वजा फहरा रही थी। मगर मुम्बई हमले के बाद इस मुद्दे को राष्ट्रसंघ में ले जाकर प्रणव दा ने सबसे बड़ा कमाल यह किया कि उन्होंने पाकिस्तान को आतंकवादी देश होने के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया। उन्होंने पाकिस्तानी आतंकवादियों का एक लम्बा चिट्ठा ( डोजियर) बनाकर दुनिया के विभिन्न देशों को भेजा और सिद्ध किया कि पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का मुम्बई हमले में हाथ है जिसके पाकिस्तान की सरकार के साथ सम्बन्ध हैं। एेसे तथ्य इस्लामी देशों को भी भेजे गये और आश्चर्यजनक रूप से एक भी मुस्लिम देश उस समय पाकिस्तान के पक्ष में आकर खड़ा नहीं हुआ।

स्व. मुखर्जी ने उस समय राष्ट्रसंघ में अपने कनिष्ठ राज्यमन्त्री को भारत का पक्ष रखने के लिए भेजा। वह कनिष्ठ मन्त्री मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में केरल की मुस्लिम लीग पार्टी के थे। उहोंने राष्ट्रसंघ में जाकर गुहार लगाई कि पाकिस्तान में सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा ने हमले के बाद अपना नाम बदल कर जैश-ए-मोहम्मद रख लिया है अतः इस संगठन पर भी राष्ट्रसंघ प्रतिबन्ध लगाये। उस समय कूटनीतिक मोर्चे पर प्रणव दा ने पाकिस्तान को चारों तरफ से इस तरह घेरा था कि इसके प्रधानमन्त्री चिल्लाते फिर रहे थे कि यदि हमने आतंकवादी तंजीमों पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया तो हम आतंकवादी देश घोषित हो जाएंगे। मगर उस समय की एक खबर यह भी थी कि मुम्बई हमले के बाद प्रधानमंत्री स्व. डा. मनमोहन सिंह पाकिस्तान के अधिकृत कश्मीर वाले इलाके में जवाबी हमला करना चाहते थे और आतंकवादी शिविरों को नेस्तनाबूद करना चाहते थे लेकिन उन्हें इस पर सहमति नहीं मिल पाई। हालांकि यह खबर कहीं से भी पुष्ट नहीं हो सकी मगर चर्चा में बहुत थी लेकिन हमले के बाद भारत के भीतर भी राजनीति बहुत गरमा गई थी और तत्कालीन गृहमन्त्री श्री शिवराज पाटिल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। तब के रक्षामन्त्री श्री ए.के. एंटोनी ने भी इस्तीफे की पेशकश कर दी थी मगर इसकी इजाजत उन्हें प्रधानमन्त्री से नहीं मिल सकी।

दूसरी तरफ उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री पद पर आसीन स्व. देशमुख को भी अपना पद छोड़ना पड़ा था। अतः तहव्वुर राणा का अमेरिका से भारत में प्रत्यर्पण कोई सामान्य घटना नहीं है। मगर यह बताना बहुत जरूरी है कि जुलाई 2009 में मिस्र के शर्म अल शेख शहर में पाकिस्तान के प्रति अचानक ही भारत के रुख में परिवर्तन आया और उसने कहा कि आतंकवाद सिर्फ भारत की ही नहीं बल्कि पाकिस्तान की भी समस्या है। यह अचानक परिवर्तन इस शहर में स्व. मनमोहन सिंह के पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री गिलानी के साथ हुई वार्ता के बाद आया था। इसकी वजह क्या थी ? इस बारे में आज तक किसी को नहीं पता।

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Aditya Chopra

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