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ऐ अंधेरे, देख ले

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11:13 PM Nov 18, 2017 IST | Desk Team

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‘ऐ अंधेरेः देख ले तेरा मुंह काला हो गया,
मां ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया।’
‘‘इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।’’
मुनव्वर राणा के यह शब्द बहुत गहरे हैं। मां की आवाज में बहुत ताकत होती है, हम अगर शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है लेकिन कुछ लोग इसे समझ नहीं पाते, मां की बस एक छोटी सी​ परिभाषा है, मां की गोद ही इस दुनिया में सबसे सुरक्षित जगह है। मां का प्यार, मां के वचन, मां की कसम और मां की पुकार, मां के आंसू किसी भी व्यक्ति को अच्छे रास्ते पर चलने के लिए प्रेरणादायी हैं। धर्मांध जेहादियों के चक्रव्यूह को मां की ममता ने भेद दिया। आठ दिन पहले फुटबालर से लश्कर आतंकी बनकर बंदूक थामने वाले माजिद इरशाद ने सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। माजिद इरशाद एक बार फिर मोहब्बत और सुनहरे भविष्य की ओर लौट आया।

आयशा बेगम आंसू बहा रही थी, माजिद की बहनें खामोश थीं। उम्मीद नहीं थी कि अनंतनाग और उसके सटे इलाकों में फुटबाल का उभरता सितारा माना जाने वाला इरशाद लश्कर का पोस्टर ब्वाय बनने के बाद कभी घर लौटेगा, वह भी जीवित और एक सामान्य जीवन जीने के लिए। मां ने बेटे से मार्मिक अपील की थी कि ‘‘वह लौट आए आैर उसे मार डाले, बाद में फिर चला जाए।’’ खुदा ने उनकी दुआ कबूल कर ली और माजिद वापिस लौट आया। माजिद के दोस्तों ने भी सोशल मीडिया पर उसे लौट आने की गुजारिश की। सुरक्षा बलों ने भी मां के आग्रह पर बहुत ही उदार रुख अपनाया। माजिद की मां आयशा बेगम ने कहा है कि ‘‘खुदा ने मुझे मेरा जिगर लौटा दिया। खुदा ने बड़ी रहमत की है। मैं दुआ करती हूं कि किसी का बेटा गलत रास्ते पर न जाए, जिसके भी बेटे ने बंदूक उठाई है, वह उसे छोड़ मां-बाप के साथ आ जाए।’’ जम्मू-कश्मीर के बेटे माजिद ने आत्मसमर्पण कर भारत के लोकतंत्र और देश के संविधान में आस्था दिखा कर आतंकवाद से मुक्त एक नया जीवन जीने का संकल्प लिया। उसका यह कदम जम्मू-कश्मीर के सियासतदानों, हुर्रियत के लोगों और आतंकवादी संगठनों के मुंह पर करारा तमाचा है जिन्होंने हमेशा कश्मीर के अवाम को गुमराह किया। खुद करोड़ों कमाए और पाकिस्तान की साजिशों के चलते बच्चों के हाथों में पत्थर पकड़वाए और बंदूकें थमा दीं। माजिद की वापिसी अलगाववादियों की भाषा बोलने वाले लोगों को एक सबक है। पाकिस्तान को भी समझ लेना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर के युवक भारत के साथ खड़े हैं, पाकिस्तान के साथ नहीं। जम्मू-कश्मीर के युवक-युवतियां भी डाक्टर, आईएएस, बेहतरीन संगीतकार, क्रिकेटर, फुटबालर बन रहे हैं, जरूरत है उन्हें सही मार्गदर्शन की। जीवन में कभी-कभी ऐसे क्षण आते हैं जब कोई युवा भावनात्मक तरीके से आहत होता है तो वह भावनाओं में बहकर गलत दिशा पकड़ लेता है। माजिद के साथ भी ऐसा ही हुआ। माजिद ने अपने दोस्त यावर के अंतिम संस्कार में ​हिस्सा लेने के बाद बंदूक थामने का फैसला किया था। यावर भी कुछ दिन पहले ही लश्कर में शामिल हुआ था, उसकी मौत ने माजिद को मानसिक रूप से इतना आहत कर डाला कि उसने आतंकी बनने की ठान ली, लेकिन मां के आंसुओं ने उसके कदम रोक दिए।

कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा छेड़ी गई तथाकथित आजादी की जंग का खामियाजा सबसे ज्यादा मुस्लिम परिवारों को भुगतना पड़ा है, जिन्होंने कभी आतंकियों तथा पाक के बहकावे में आकर सड़कों पर निकल आजादी समर्थक प्रदर्शनों में भाग लिया था। आजादी का सपना तो पूरा नहीं हुआ और न होगा लेकिन परिवारों की दुनिया में अंधकार झा गया। कश्मीर में कोई परिवार ही ऐसा बचा होगा जिसके एक या दो सदस्य या अन्य परिजन आतंकवादियों और सुरक्षा बलों की गोलियों से न मारे गए हों। तीन दशकों के आतंकवाद के दौर में कश्मीर में अनुमानतः 50 हजार से अधिक लोग मारे गए जिनमें से 40 हजार से अधिक कश्मीरी मुस्लिम हैं। आतंक के दौर में जो महिलाएं आतंकियों के सामूहिक बलात्कार का शिकार हुईं वे भी सभी मुस्लिम ही थीं, जिनकी अस्मत इस्लाम के लिए जंग लड़ने वालों ने लूट ली। इस्लामी आतंकवाद से कश्मीर के मुस्लिम कितने त्रस्त हैं, इसके कई उदाहरण हैं। मरने वालों में हिन्दू भी हैं परन्तु उनकी संख्या नगण्य इसलिए है क्योंकि 1990 में जब आतंकवाद चरमोत्कर्ष पर पहुंचा था तो तब हिन्दू परिवार पलायन कर गए थे।

कश्मीर के युवा इतने जख्म सहकर भी आतंकी क्यों बन रहे हैं? इस सवाल के कई राजनीतिक दबाव हो सकते हैं लेकिन गंभीरता से सोचें तो एक कारण यह भी है कि हम कश्मीर के युवकों को देश की मुख्यधारा से नहीं जोड़ पाए। इस संबंध में न तो सरकारों ने कोई संजीदगी दिखाई, न ही कश्मीरी अवाम ने। कश्मीर अवाम को तो आतंकवाद ने बंधक बनाकर रखा हुआ है। कश्मीर का मानव कैसे बदले, यह बड़ी चुनौती है। माजिद का घर लौटना कश्मीरी युवाओं के लिए प्रेरणा का काम कर सकता है। सुरक्षा बलों और पुलिस ने भी उस पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की। वह फुटबाल या किसी भी अन्य क्षेत्र में करियर में उड़ान भरने को स्वतंत्र है, उसके लिए सारा आकाश खुला है। माजिद जैसे कई नौजवान कश्मीर में आतंकियों के जाल में फंस जाते हैं लेकिन अगर मां चाहे तो घर वापिसी जरूर संभव है। घाटी ही हर मां को यह एक संदेश है। केन्द्र और राज्य सरकार को भी कश्मीरी युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कुछ अहम कदम उठाने होंगे, ताकि उन्हें लगे कि उनका भविष्य स्वर्णिम है।

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