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पाक कब्जे का कश्मीर भी लेना है!

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को हटाये जाने के बाद पाकिस्तान की सरकार जिस प्रकार का प्रलाप कर रही है उसका कोई आधार इसलिए नहीं है

05:00 AM Aug 20, 2019 IST | Ashwini Chopra

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को हटाये जाने के बाद पाकिस्तान की सरकार जिस प्रकार का प्रलाप कर रही है उसका कोई आधार इसलिए नहीं है

पाक कब्जे का कश्मीर भी लेना है
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जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को हटाये जाने के बाद पाकिस्तान की सरकार जिस प्रकार का प्रलाप कर रही है उसका कोई आधार इसलिए नहीं है क्योंकि 26 अक्तूबर 1947 को इस देशी रियासत के महाराजा हरिसिंह ने इसका विलय नव स्वतन्त्र भारतीय संघ में उसी प्रकार किया था जिस प्रकार ब्रिटिश इंडिया की अन्य सैकड़ों की रियासतों का विलय इसमें किया गया था। अतः  27 अक्तूबर 1947 से इस पूरी रियासत के सारे अख्तियारात तत्कालीन भारत की सरकार के कब्जे में आ गये थे।
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इन्हीं अख्तियारात के तहत भारत की सरकार ने इस राज्य के लिए विशेष संवैधानिक अनुच्छेद-370 का प्रावधान किया था और 35(ए) को भी लागू करके इस राज्य को खास रियायतें दी थीं। यह व्यवस्था अस्थायी या फौरी तौर पर लागू की गई थी इसका मतलब साफ था कि माकूल वक्त आने पर इसे हटाया जा सकता है लेकिन यह पूरा मामला भारत के अन्दर का था जिसका किसी भी तरीके से किसी बाहरी देश से लेशमात्र भी लेना-देना नहीं था  मगर 14 अगस्त 1947 को नवगठित पाकिस्तान की सरकार ने अक्तूबर महीने में ही कश्मीर पर आक्रमण करके इसके उस भूभाग को हड़प लिया जिसे अब पाक अधिकृत कश्मीर कहा जाता है।
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 बेशक उस समय जम्मू-कश्मीर एक स्वतन्त्र रियासत थी मगर उसके शासक महाराजा हरिसिंह ही थे और वे ही उसके मुख्तार थे और उनकी रियासत में पाकिस्तान का हमला पूरी तरह उस समझौते के खिलाफ था जो उन्होंने पाकिस्तान बन जाने के बाद उसकी हुकूमत के साथ किया था जिसे ‘स्टैंड स्टिल पैक्ट’ कहा जाता है। इसके तहत पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर की हैसियत महाराजा की सल्तनत की मानी थी। मगर महाराजा ने 26 अक्तूबर को अपनी सल्तनत का विलय भारतीय संघ में उन्हीं हकूकों और हैसियत के तौर पर किया जो ब्रिटिश हुकूमत ने अखंड हिन्दोस्तान की सभी रियासतों को दिये थे और उनका वजूद कायम रखते हुए ऐलान किया था कि वे चाहें तो भारत और पाकिस्तान की खींची गई सीमाओं के भीतर अपना अस्तित्व इन दो स्वतन्त्र राष्ट्रों में समाहित कर सकती हैं।
ब्रिटिश इंडिया में 700 से अधिक रियासतें थीं जिनमें से 562 के करीब रियासतें भारतीय सीमा के दायरे में आती थीं।
पाठकों को मालूम होना चाहिए कि मध्य प्रदेश की भोपाल रियासत के नवाब ने भी बहुत बाद में अपना विलय भारतीय संघ में किया था। हैदराबाद रियासत के बारे में तो सभी जानते हैं। इसके साथ उत्तर-पूर्व राज्यों की भी कुछ रियासतें थीं जिनका विधिवत विलय पचास के दशक में हुआ।
इनमें सिने संगीत के सम्राट कहे जाने वाले स्व. सचिव देव बर्मन की त्रिपुरा रियासत भी थी। अतः जम्मू-कश्मीर रियासत ही 15 अगस्त 1947 तक स्वतन्त्र रियासत थी ऐसा नहीं है लेकिन इस हकीकत से यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान ने अपने वजूद में आते ही अपनी सीमाओं से मिलती जम्मू-कश्मीर रियासत पर हमला किया और उसे कब्जाने की कोशिश तब की जब उसके पास अपनी फौज खड़ी करने के भी पैसे नहीं थे और भारत ने उसे 100 करोड़ रुपये का ऋण देकर अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद की थी (यह ऋण क्यों दिया गया इसकी तफसील में फिलहाल मैं नहीं जा रहा हूं) अतः कश्मीर में कबायली हमलावरों की मदद से पाकिस्तान के हुक्मरानों ने इस साजिश को अंजाम दिया।
 पाकिस्तान की हैसियत पहले दिन से ही कश्मीर में हमलावर की हो गई जिसका मय सबूत पूरा विवरण राष्ट्रसंघ की साधारण सभा में 1966 में तत्कालीन भारतीय विदेशमन्त्री स्व. मुहम्मद अली करीम भाई चागला ने रखकर पाकिस्तान के चेहरे को पूरी दुनिया के सामने बेनकाब कर दिया और उसे ‘खूंरेज हमलावर’ साबित करते हुए कहा कि पूरा जम्मू-कश्मीर वैधानिक तौर पर और अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक नियमों के तहत भारतीय संघ का हिस्सा है। स्व. चागला हेग स्थित अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के भी अस्थायी न्यायाधीश रह चुके थे अन्तर्राष्ट्रीय कानून के महान ज्ञाता भी थे।
उन्होंने 1966 में ही राष्ट्रसंघ में कह दिया था कि भारतीयता और कश्मीरियत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। स्व. चागला पं. नेहरू के मन्त्रिमंडल में शिक्षामन्त्री भी रहे थे वह संस्कृति क्षेत्र के भी महान अध्येता थे। अतः पाकिस्तान उस कश्मीर से अपना कब्जा हटाये जो उसने जबरन हथिया रखा है। आज लगभग 55 साल बाद फिर एेसा मंजर आया है जब भारत के रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने सीना ठोक कर ऐलान किया है कि अगर पाकिस्तान से बात होगी तो सिर्फ उस कश्मीर के बारे में जो उसने  अवैध रूप से हथिया रखा है।
वरना पाकिस्तान से बात करने का क्या औचित्य है? यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि मोदी सरकार ने कश्मीर राज्य को दो केन्द्र प्रसासित क्षेत्रों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर में बांटने का जो फैसला किया है उससे पाक अधिकृत कश्मीर की हैसियत पर रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि वह उसी कश्मीर वादी का हिस्सा है जिसे 1947 में पाकिस्तान ने कब्जाया था और यहां के निवासियों के लिए अविभाजित जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 24 सीटें खाली पड़ी रहती थीं।
कानूनी मुद्दा यह है कि एक हमलावर मुल्क किस तरह उस मुल्क के अन्दरूनी मामलों में दखल देने की जुर्रत कर सकता है जिसके कुछ लोगों को उसने अपनी गुलामी करने के लिए मजबूर कर रखा हो और उनके इलाके को वह ‘आजाद कश्मीर’ कहकर अपनी हमलावर हैसियत में बदलाव करना चाहता हो। तस्वीर शीशे की तरह साफ है कि पाकिस्तान कश्मीरी जनता की जिन्दगी को तबाह करने के लिए पिछले कई दशकों से दहशतगर्दी का सहारा लेकर धरती की इस जन्नत को जहन्नुम में बदलने की तदबीरें भिड़ाने में सिर्फ इसलिए लगा हुआ है जिससे उसका खुद का वजूद कायम रह सके।
वह कभी मजहब के नाम पर और कभी हिन्दू विरोध के नाम पर अपने तामीर में आने की वजह ढूंढता है और इस फलसफे को कश्मीर में भी पंख पसारते देखना चाहता है मगर उसे यह हकीकत मालूम नहीं है कि पाकिस्तान की ताबीर की सबसे ज्यादा मुखालफत कश्मीरियों ने ही की थी। मगर खुदा की मार उन सियासतदानों पर जिन्होंने जन्नत में बैठे इसके लोगों को सिवाय दुश्वारियां देने के कोई दूसरा काम नहीं किया और यहां के लोगों को भारत की सरकारों द्वारा दी गई दौलत का आपस में ही बंटवारा करके इन्हें 370 का झुनझुना पकड़ाये रखा और कहा कि बेशक भारत बदल जाये मगर तुम 18वीं सदी में ही जीते रहो।
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Ashwini Chopra

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